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apne vajood ki talash me.........
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रविवार, 22 मई 2022

मेरी बगिया

 *मेरी बगिया*








अक़्सर अपनी ख्वाहिशों के समंदर में,


खो जाती हूँ,


मन के भीतर दबी,


इच्छाओं के चक्रव्यूह में,


खुद को उलझा पाती हूँ,


मन उड़ जाना चाहता है,


स्वच्छंद पंछी सा,


उन्मुक्त गगन की ,


ऊंचाइयों में,


जैसे,खो जाना चाहता हो,


आसमान की,


बुलंदियों में,


लेकिन, ख्वाहिशें तो,


अधूरी ही रह जाती हैं,


जैसे तितली,


मंडराती रहती,


मोह और नेह बरसाती,


रंग बिरंगे फूलों से भरी,


बगिया में,


वैसे ही मेरा मन बसता,


मेरे परिवार रूपी बगिया में,


मन कितना ही ख्वाहिशों की

उड़ान उड़े,


थम सा जाता है,


अपनों की ख्वाहिशों के सामने,


क्योंकि अपनों की,


पूरी होती ख्वाहिशों से महकती,


उनकी खुशियाँ,


मेरी बगिया की ,


रौनक बढ़ा देती,


उनकी ख्वाहिशों को पूरी होते,


अपनी बगिया महकते देख,


एक आस सी जागती है दिल में,


कि ख्वाहिशें तो पूरी भी होती हैं,


और एक बार फिर,


मैं अपनी ख्वाहिशों के समंदर में,


खो जाती हूँ,


इस उम्मीद के साथ,


कि महकते बगिया में,


एक खूबसूरत फूल,


मेरी ख्वाहिशों का भी होगा,





*✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻*


22-05-2022

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बुधवार, 20 अप्रैल 2022

ब्यूटीपार्लर

 ब्यूटी पार्लर




रोहन आज शिवानी को अपने मम्मी पापा से मिलवाने लेकर आया। आते ही शिवानी ने झुक कर रोहन के मम्मी पापा के पैर छुए और शालीनता से वहीं बैठ गई। शिवानी रोहन के ही साथ उसकी कम्पनी में जॉब करती थी। आज भी वह ऑफिस के फॉर्मल कपड़ों में ही थी और रोहन ने आज ही उसे ऐसे ही कपड़ों में अपने मम्मी पापा से मिलाने ज़िद करके उसे अपने घर ले आया। हल्का साँवला रंग उस पर करीने से पहने फॉर्मल जीन्स और कुर्ती में भी शिवानी सौम्य लग रही थी। रोहन का कहना था कि तुम जैसी हो वैसे ही मम्मी पापा तुम्हें स्वीकार करें तो अच्छा है। बड़ी ही शालीनता से उसने रोहन के मम्मी पापा के पूछे सवालों का जवाब दिया। जब रोहन की मम्मी किचन में गई तो शिवानी भी साथ चल दी। ड्रॉइंग रूम में बैठे रोहन और उसके पापा अभी तक चिंतित ही थे कि पता नहीं रोहन की माँ शिवानी को स्वीकार करेगी या नहीं। तभी रोहन की माँ और शिवानी गर्म पकौड़ियों और हलवा लेकर आ गए। सबने मिलकर पकौड़ियों और हलवे का आनंद लिया।  रोहन प्रश्नवाचक निगाहों से अब भी अपने माँ पापा को ही देख रहा था कि रोहन की माँ ने शगुन का टीका लगाते हुए शिवानी से कहा,"आंतरिक गुणों के ब्यूटीपार्लर से सजी शिवानी हमें बहुत पसंद है।" ये सुन कर रोहन और शिवानी एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे। शिवानी रोहन की माँ का पैर छूने झुकी ही थी कि उन्होंने शिवानी को गले से लगा लिया।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


19-04-2022

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मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

जीतेगा कौन


 


जीतेगा कौन




दुनिया के इस भ्रम जाल में,


असल चेहरा,


ना किसी का नज़र आता,


कौन किसकी गरदन दबोचे,


कौन किसी का फ़न काट दे,


कौन किस पर अचानक टूट पड़े,


कौन किसी पर कब पलटवार कर दे,


कौन कब किसका शिकार कर दे,


या खुद शिकारी बन किसी की जान ले ले,


कभी डरकर पीछे हट जाते,


तो कभी किसी को दबोच लेते,


जब जिसका पलड़ा भारी होता,


खुद को विजेता समझता,


पर कौन जीता कौन हारा,


इसका फैसला तो वक़्त ही करता,


इंसानी चेहरों के भीतर छिपे,


जानवरों के चेहरे बहुतेरे,


हर कोई लड़ता,


अपनी जीत के लिए,


पर हार होती किसकी,


ये समझ ना पाते,


वो जीते या मानवता हारी,


इसका जवाब भी,


दे ना पाते, 





✍️तोषी गुप्ता✍️


18-04-2022

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बहाना

 बहाना



रहो लाख तुम व्यस्त ,


अपने कार्यों में,


जब मैं आवाज़ लगाऊं,


सुनो, ज़रा मेरा मोज़ा ढूंढ देना,


मिल नहीं रहा,


और हाँ,


रुमाल भी नहीं मिल रहा,


और एक ही पल में,


तुम दौड़ी चली आती,


कपड़ों के ढेर में,


सलीके से वहीं रखा, 


मोज़ा और रुमाल,


मेरे हाथों में थमा देती,


बहाना मेरा,


तुम्हें बुलाने का,


तुम भी ख़ूब समझती,


शायद मन ही मन,


मेरी इस आवाज़ का इंतज़ार भी करती,


तभी तो ,


मेरी एक आवाज़ पर ही,


सारा काम छोड़,


तुम मेरे सामने होती,


सब कुछ समझते हुए भी,


तुम्हारा,


ना समझने का ये अंदाज़,


दिल को भा जाता,


और नया बहाना बना,


तुम्हें बुलाने का,


मेरा इरादा,


और भी पक्का हो जाता,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻



18-04-2022

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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

कशमकश ***

 कशमकश




राह पर चलते ,


कभी ज़िन्दगी में,


ऐसा मोड़ भी आ जाता है,


दोराहे में खुद को,


खड़ा पाकर,


खुद पर तरस आता है,


ना चाहते हुए भी,


अनचाही राह को,


चुनने का वक़्त जब आता है,


मन को मजबूत कर,


उन राहों में अनमने ही बढ़ना हो जाता है,


कर के हालात से समझौता,


एक-एक पल जब बीतता है,


हर अगला कदम ,


कई कई बार थम कर बढ़ पाता है,


मग़र ज़िन्दगी कभी रुकती कहाँ है,


ज़िन्दगी के इस सफ़र में बस,


चलते ही जाना है,


बना कर ग़म को अपना,


खुशियों  की चाबी ढूंढते जाना है,


ज़िन्दगी का हर एक पल,


दिल से जीते जाना है,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


08-04-2022

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शुक्रवार, 25 मार्च 2022

अनन्त यात्रा

 




अनन्त यात्रा




क ख ग से शुरू करके ,


चल पड़ी एक अनंत यात्रा,


बढ़ते - बढ़ते जाना,


ये तो है बस अथाह यात्रा,


नित नयी सीख लेकर,


जब पहुँची किसी मंज़िल पर,


लगा कि यही तो वो मज़िल है,


जहाँ पहुँचना चाहा था कभी,


लेकिन ये क्या,


ऊपर देखा तो जाना,


ये तो अगली मंज़िल की,


पहली पायदान ही है,


आगे लंबा सफ़र अभी बाक़ी है,


फिर चल पड़ती,


उस नयी मंज़िल की,


राह पर,


नयी सीख लेकर,


नित नये ज्ञान लेकर,


ख़ुद का कद बढ़ाती,


नित नये ज्ञान के आभूषण से,


ख़ुद को सँवारती,


अब किसी मंज़िल पर पहुँच,


देख लेती हूँ ऊपर की ओर,


और समझ जाती हूँ,


कि मंज़िल ये नहीं,


ये तो सिर्फ राह में आया पड़ाव है,


मंज़िल तो अभी दूर है,


और इस राह पर अभी, 


आगे बढ़ते जाना है,


अपने ज्ञान का भंडार बढ़ा,


अभी उसे औरों तक,


पहुँचाना है,


अपने अनुभव से लोगों में,


ज्ञान भी बाँटते जाना है,


साथ ही निरंतर,


इस अनन्त अथाह यात्रा पर,


आगे बढ़ते जाना है,





✍️तोषी गुप्ता✍️


25-03-2022

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दिन में तारे नज़र आए

 दिन में तारे नज़र आए




सुनीता का मोबाइल बज रहा था। अपना चश्मा संभालते सुनीता ने मोबाइल उठाया। 




"हैलो, कौन?"




"जी, मैं  ***   से बोल रहा हूँ" (जिस कंपनी का सिम सुनीता जी उपयोग करती थी, उस कंपनी का नाम लेते हुए सामने वाले ने कहा ) "




"हाँ, कहिए।"




"जी, मैम, आपके सिम की एक्सपायरी हो चुकी है, इसका रिन्यूअल करवाना होगा, नहीं तो आपका सिम ब्लॉक हो जाएगा।"




सुनीता जी अब घबराते हुए बोली "जी,बंद हो गया तो मैं अपने बच्चों से बात कैसे करूंगी" 




"घबराइए नहीं, सिम रिन्यूअल करवा लीजिए।"




"लेकिन कैसे, मैं तो कहीं आती जाती भी नहीं"




"नहीं मैम, आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं, ये आपके मोबाइल से ही रिन्यू हो जाएगा, बस जैसा मैं बताते जाऊं वैसा करते जाइये।"




"जी, बताइए"




फिर उस आदमी ने प्लेस्टोर से कोई एप्पलीकेशन डाउनलोड करवाया और मैसेज में आये ओटीपी देने के लिए कहा।




तभी अचानक सुनीता जी की बेटी का फोन कॉल वेटिंग में दिखाने लगा। 




सुनीता जी ने देखा और उस आदमी का कॉल होल्ड कर अपनी बेटी का कॉल कनेक्ट किया। 




"क्या हुआ माँ, आप नेट बैंकिंग क्यों यूज़ कर रहीं।" बेटी ने पूछा,




"नहीं बेटा, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, हाँ,,,, एक कॉल आया है,,,,," फिर सुनीता जी ने उस कॉल वाली पूरी घटना बता दी। 




"माँ, आप तुरंत उसका कॉल कट करो और उसका नम्बर ब्लॉक करो, और जिस नम्बर से कॉल आया है वो मुझे बताओ, मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करती हूँ। 




दरअसल अपनी माँ का नेट बैंक अकाउंट उसने अपने नम्बर से कनेक्ट कर रखा था। और सुनीता जी के खाते से अमाउंट ट्रांसफर का ओटीपी उनकी बेटी के मोबाइल नंबर पर गया था। फिर उसने उस कॉल के खिलाफ एक शिकायत साइबर सेल में की। 




इधर सुनीता जी अपनी बेटी के कहे अनुसार उस आदमी के कॉल को कट कर उसे ब्लॉक कर चुकी थी। थोड़ी देर बाद उनकी बेटी का कॉल आया, तब उसने सुनीता जी को सारी बातें बताई कि किस तरह आज वो एक ठगी का शिकार होते होते बच गई। पूरी बात सुनकर सुनीता को दिन में तारे नज़र आने लगे। बेटी ने फिर ऐसे ठगी से बचाव के कई तरीके बताए, तब थोड़ा संभलते हुए सुनीता जी ने अपनी बेटी को आश्वासन दिया कि आगे वो पूरी सावधानी रखेगी और किसी के द्वारा बोले गए किसी भी ऐप को ना तो अपने मोबाइल में डाउनलोड करेगी, ना ही कोई ओटीपी किसी को देगी। आज उनकी बेटी की सूझ-बूझ से उनका बैंक एकाउंट सुरक्षित है यह सोचकर सुनीता जी ने राहत की सांस ली।






✍️तोषी गुप्ता✍️


24-03-2022

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बुधवार, 16 मार्च 2022

एक कप चाय की प्याली

 एक कप चाय की प्याली




ससुराल में निशा का पहला दिन उसकी परीक्षा का दिन ही था। सुबह 6 बजे नहा धोकर ही किचन में आने का फ़रमान उसे कल रात ही दे दिया गया था। प्रिय के साथ पहली रात की खुशी के साथ निशा को सुबह जल्दी उठने की भी चिन्ता थी। फ़रमान के अनुसार ही निशा सुबह 6 बजे ही नहा धोकर नीचे किचन पहुँच गई। निशा का कमरा पहली मंजिल पर तो किचन और हॉल भूतल पर था । ससुराल में पहले भगवान की पूजा करने का नियम था उसके बाद बाकी के काम, तो सारी पूजा विधि से पहले पूजा की गई और उसे सिखाया भी गया। फ़िर दौर शुरू हुआ सुबह की चाय का। सासूमाँ और ससुर जी की चाय पहले बनी। निशा को भी साथ में चाय लेने बोला गया, उसका भी मन हुआ चाय पीने का पर संकोच के कारण उसने ना कर दी और उसे इंतज़ार भी था अपने पति विकास का। धीरे-धीरे एक - एक करके उसकी ननद, फिर दोनों देवर उठ के आये। सबके लिए बारी - बारी से चाय बनाती निशा को भी अब चाय की तलब होने लगी।उसे सुबह चाय पीने की आदत थी लेकिन वो तो विकास का इंतज़ार कर रही थी।अब तक तो उसने काम वाली बाई को भी चाय बनाकर पिला दी। विकास अपनी नींद पूरी करके ही आये। डायनिंग हॉल में विकास के साथ निशा भी अपनी चाय की प्याली ले आई। चाय की पहली चुस्की से मानो उसकी जान में जान आई। आज पहली बार उसे अहसास हुआ कि एक चाय की प्याली कितनी अहम होती है।  विकास ने चुपचाप अपनी चाय ख़त्म की। फिर तैयार हो ऑफिस के लिए निकल गया। शाम को ऑफिस से आया तो निशा के सर में हल्का दर्द था। निशा ने विकास को बताया कि यदि वो सुबह समय पर चाय ना पिये तो उसे सरदर्द होने लगता है। विकास ने उसे दावा देकर सुला दिया, और खुद थोड़ा मार्केट से आने की बात कहकर चला गया। वो आया तो निशा सो चुकी थी। अगली सुबह विकास ने निशा को उठाया। निशा ने देखा कि विकास चाय की प्याली हाथ में लिए खड़े हैं। विकास ने कहा, "चलो जल्दी से चाय पी लो, फिर बाकी के काम करना।" निशा ने आश्चर्यचकित हो के विकास से पूछा। विकास ने इलेक्ट्रिक टी मेकर की ओर इशारा किया और मुस्कुराते हुए बोले, अब जल्दी से चाय खत्म करो, और तैयार होके नीचे जाओ, माँ चाय के लिए तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।" निशा की आँखों में खुशी के आँसू के साथ विकास के लिए आदर के भाव भी बढ़ गए।




✍️तोषी गुप्ता✍️


15-03-2022

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मंगलवार, 15 मार्च 2022

अब सुधार लिया खुद को

 अब सुधार लिया खुद को




बचपन से अब तक,


ज़िन्दगी में कई मोड़ आये ऐसे,


जब लोगों की नज़र से ,


लगता  है कि मैं ग़लत हूँ,


और फिर मैं सुधार लेती खुद को,




भरी महफ़िल ठहाकों से गूँज पड़ी,


जब किसी बात पर,


मैं भी अपनी हंसी रोक ना सकी,


अचानक किसी ने टोका,


इतनी ज़ोर से लड़कियाँ नहीं हंसती,


सुधार लिया खुद को,


अब हर बात पर ,


केवल मुस्कुरा देती हूँ,,,




 बैठ कर सारा परिवार साथ,


चर्चा चल रही थी ख़ास,


बोल पड़ी अचानक मैं भी,


दे डाली अपनी भी राय,


अचानक किसी ने टोका, 


बड़ों के बीच में नहीं बोलते,


सुधार लिया ख़ुद को,


अब जब कोई दूसरा कोई फैसला करे, 


चुपचाप मान लेती हूँ ,




दिन सर पर चढ़ आया,


सबकी चाय से शुरू,


नाश्ते के बाद ,


अब भोजन का समय भी होने को था,


सोचा एक रोटी पहले खा


सुबह से तेज होती भूख को शांत कर लूँ,


अचानक किसी ने टोका,


घर के बड़ों को खिलाने के पहले ,


खुद नहीं खाते हैं,


सुधार लिया खुद को,


अब ज्यादा भूख लगे ,


तो पानी पीकर भूख शांत कर लेती हूँ,




सबने अपनी पसंद के कपड़े लिए,


मैं भी लपक ली गहरे रंग की साड़ी एक,


कांधे पर डाल निहार रही थी खुद को,


अचानक किसी ने टोका,


उम्र के हिसाब से पहना करो,


इतने गहरे रंग इस उम्र में अच्छे नहीं लगते,


सुधार लिया अब खुद को,


अब बिना आईने में खुद को देखे,


ओढ़ लेती हूँ बस ,


कोई बेरंग सी साड़ी,




हर पल, हर कदम,


अचानक टोके जाने के बाद,


खुद को सुधार(?) लेने के बाद,


अब यही लगता है,


जब सब कुछ ग़लत ही है,


तो सुधारा कैसे जा सकता है?





✍️तोषी गुप्ता✍️


14-03-2022

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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

एक जिम्मेदार इंसान

 *एक जिम्मेदार इंसान*



जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद अक़्सर, 


थक सी जाती हैं ज़िन्दगी,


मशीन से चलते हाथ,


थम से जाते हैं,


जिम्मेदारियों के बोझ से कंधे,


झुक से जाते हैं,


खींच जाती है चेहरे पर,


झुर्रियों की लकीरें,


वक़्त से पहले ही,


उसमें झलकने लगती है,


उम्र के ढलान की निशानियाँ,


उस वक्त भी वो,


हाथों में हाथ बांधे,


सोचता रहता है,


लेखा जोखा करता रहता है,


क्या बचा है और,


जो वो कर नही पाया,


और जो किया है,


उसे और अच्छे से,


कैसे निभा पाता,


सबकी थाली में मीठा देते देते,


वो ये अहसास ही नहीं कर पाता,


कि उसकी थाली में तो,


नमक भी कम ही रह गया,


एक जिम्मेदार इंसान,


अब भी खुश है,


क्योंकि उसके अपने,


उनकी थाली में मिले,


मीठे से खुश हैं,




✍️तोषी गुप्ता✍️


11-03-2022

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गुरुवार, 10 मार्च 2022

ज़िन्दगी का कैनवास***

ज़िन्दगी का कैनवास



बिखर सी गई मानो ज़िन्दगी


जब आइने के सामने


खुद को देखा


लगा मानो


पत्थर से शीशा तोड़


हज़ार टुकड़ों में फेंक दी गई हो


ख़्वाहिशें मेरी


सपने मेरे


हथेलियों से ढांप लिया 


अपना चेहरा


जो आज


मेरे ही लिए था 


अनजाना,,, अनदेखा,,,


ना  देख पाने लायक


वो आँखों का गल जाना


नाक का खिसक जाना


होंठो का पता न चलना


और,,,, चेहरे में सिकुड़न


लगा जैसे


चेहरा नहीं


दिल ही किसी ने


बेरूप कर दिया हो


दिल से ना खेलने देने का


ये अंजाम होगा 


कभी सोचा ना था


और किसी का दिल


इतना भी कठोर होगा


ये देखा ना था


उस दिन आईने में 


खुद को देखकर


स्वीकार लिया


जो चला गया 


वो वापस नहीं मिल सकता


सूरत गई है


सीरत तो साथ है


तो मन में विश्वास भर


ठान लिया बस


कर लिया एक वादा खुद से


जो भी हो जाये


ज़िन्दगी में नये मिले


इस कैनवास में


नई उम्मीदें उकेरना है


बेरंग हो चुकी 


इस ज़िन्दगी के कैनवास को


फिर रंगों  से सजाना है




✍️तोषी गुप्ता✍️


10-03-2022

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मंगलवार, 8 मार्च 2022

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता तब, जब महिला को महसूस हो हर कदम पर सुरक्षा और मान-सम्मान

 *अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता तब, जब महिला को महसूस हो हर कदम  पर सुरक्षा और मान-सम्मान*


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आज के दिन जहाँ महिलाओं का विशेष दिन उन्हें तरह - तरह से सम्मानित करके  उन्हें उचित मान-सम्मान देकर मनाया जाता है वहीं ज़रूरत है कि हर दिन महिलाओं को उचित मान-सम्मान जीवन के उस हर कदम पर मिले, जहाँ वो खुद को आज असुरक्षित महसूस करती है। महिलाओं का ये मान-सम्मान महज़ मंच के नाटकीय रूप में ना होकर, वास्तविक जीवन में महिलाओं के प्रति वास्तविक आदर और उनको उचित अवसर प्रदान कर के हो। जहाँ महिलाएँ ना केवल हर कदम पर स्वयं को सुरक्षित महसूस करे बल्कि अपना हर अगला कदम निर्भीकता से इस आत्मविश्वास से बढ़ाए कि  रुग्ण पुरूषोचित्त मानसिकता से परे  उसे ना केवल मौखिक तौर पर सम्मान मिलेगा बल्कि पुरुषों की नज़र मात्र से नारी अस्मिता पर प्रहार करने की बजाय पुरुषों की नज़र में भी उन्हें अपने प्रति वही सुरक्षा और मान- सम्मान महसूस हो जैसे कि उसे अपने पिता या भाई से प्राप्त होता है। जिस दिन महिलाओं को अपने दैनिक जीवन में इस सुरक्षा और मन-सम्मान का अनुभव होने लगेगा उस दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का यह विशेष दिन मनाने का औचित्य सार्थक हो जाएगा।



✍️श्रीमती तोषी गुप्ता✍️


08-03-2022


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अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष-2

 साल दर साल हम आज का ये खास दिन मानते आ रहे हैं,,,, बदला आज भी कुछ ख़ास नहीं,,,, 


जब तक घर के भीतर और घर के बाहर दोनों जगहों पर हम स्वयं को पूर्ण सुरक्षित महसूस नहीं करतीं ,,,,


जब तक पुरुषों की रुग्ण सोच भरी मानसिकता से परे हम स्वयं आगे नहीं बढ़ जातीं,,,,


जब तक पुरुषों की तीर सी चुभती नज़र मात्र से हमारी अस्मिता सुरक्षित नहीं हो जाती,,,,


जब तक हमारी सफलता बिना भेदभाव केवल हमारी योग्यता के बल पर सुनिश्चित नहीं की जाती,,,,


जब तक हमारी देह से परे हमें स्पर्शहीन प्रेम और मान सम्मान नहीं मिल जाता,,,,, 


जब तक हमारे हर कदम पर हमें लोगों का निःस्वार्थ साथ नहीं मिल जाता,,,,


जब तक हमें लोगों की अभद्र और अपशब्द भरी बातों से छुटकारा नहीं मिल जाता.....


जब तक नाटकीय मंचों से परे वास्तविकता में लोगों के बीच हमारा वास्तविक आस्तित्व स्वीकार नहीं किया जाता,,,,


तब तक पूरे वर्ष के मात्र एक आज के  दिन उत्सव मनाते रहिए,,,, क्योंकि उसके बाद तो हर दिन ख़ास होगा, हर दिन उत्सव का होगा, हर दिन महिला विशेष का होगा,साल के पूरे 365 दिन महिलाओं के वास्तविक आस्तित्व का होगा,,,, इसी आशा के साथ,,,,,,,, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,,,,,




✍️तोषी गुप्ता✍️


08-03-2022

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष -1

 हर दिन खास होता है, हो भी क्यों न ,,, हर दिन की शुरुआत  सूरज की नयी किरणों से जो होती है। इसी तरह आज का दिन भी खास है, और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस होने के कारण ये दिन और खास हो गया। सूरज की नयी किरणों के साथ, उम्मीद की नयी किरणें भी जागी, कि सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में भी स्त्रियों की वास्तविक स्थिति में ज़रूर कुछ सकारात्मक बदलाव आएंगे। वास्तिविकता के धरातल पर एक नज़र डालेंगे तो आप पाएंगे कि आज भी छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं। एक ओर जंहा सरकार विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चलाकर स्त्रियों को स्वरोज़गार या महिला समूहों के द्वारा आत्मनिर्भर बनाने प्रयत्न करती हैं वहीं उच्च मध्यम वर्गीय घरों की स्त्रियां आज भी अपनी उच्च शिक्षा और योग्यता के बावजूद सिर्फ इसलिए दहलीज़ के बाहर कदम नहीं रख सकती क्योंकि इसके पहले उस घर की किसी महिला ने नौकरी नहीं की या घर की आर्थिक जिम्मेदारी नहीं संभाली। आज भी इन सम्भ्रांत घरों के पुरुष प्रधान मानसिकता के पीछे घर की बुज़ुर्ग महिलाओं की घोर रूढ़िवादी मानसिकता के चलते कई बहुएं अपनी शिक्षा और योग्यता का ना सही उपयोग कर पाती और ना ही उस योग्यता को निखार पातीं। आज के दौर में सिर्फ आत्मनिर्भर होने या नौकरी करने की मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत नहीं बल्कि कोशिश ये हो कि घर में हर निर्णय पर घर की सभी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए। हर स्तर पर महिलाओं की स्थिति मजबूत करने की ज़रूरत है। लेकिन उससे पहले ज़रूरत है कि वे महिलाएं स्वयं अपनी स्थिति को मजबूत बनाने प्रयास करें। क्योंकि किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति तब तक संभव नहीं जब तक वो स्वयं से प्रेरित ना हों।पुनः  महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,,,,,



✍️तोषी गुप्ता✍️


08-03-2018

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नारी शक्ति सम्मान

 नारी शक्ति सम्मान




पूरे समारोह में सबकी नजरें सचिन और शिखा पर ही थी। एक दूजे का हाथ थामे सचिन और शिखा जैसे एक दूजे के लिए ही बनें हों। सक्सेसफुल बिज़नेसमैन सचिन और उसकी पत्नी शिखा जो अक़्सर पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचना भेजती रहती। आज महिला दिवस पर उसके साहित्यिक योगदान पर उसे राज्य शासन द्वारा "नारी शक्ति सम्मान" से पुरस्कृत किया जा रहा था। स्त्री विमर्श और नारी सशक्तिकरण की अद्भुत लेखिका के रूप में उभरी थी शिखा। जब उसे मंच पर पुरस्कार मिल रहा था, तब अपनी जगह पर खड़े होकर उत्साह से ताली बजाते सचिन की ओर सबकी नजरें जमी हुईं थी। समारोह से घर लौट शिखा उस सम्मान को अपने हॉल में सजाने लगी।  



"अरे शिखा छोड़ो भी ये सब, जोरों की भूख लगी है जल्दी से खाना निकालो", सचिन ने कहा,



 समारोह की खुशियों में तक खोई शिखा ने जल्दी से सब्जी गर्म की और गर्म गर्म पराठे परोसने लगी। अभी दूसरा पराठा सेक ही रही थी शिखा की ज़ोर से सचिन की आवाज़ आई,



"ये क्या है शिखा", 



दौड़ती हुई शिखा सचिन के पास आई और , तड़ाक,,,,,, एक झन्नाटेदार चांटे से शिखा सहम गई। 



जले हुए पराठों को एक तरफ सरकाते सचिन गुस्से से थाली छोड़ अपने कमरे की तरफ चला गया। सन्न खड़ी शिखा को आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मिला नारी शक्ति सम्मान मुँह चिढ़ाता नज़र आया और सचिन के हाथों के निशान उभरे उसके लाल गालों पर उसकी आँखों से दो बूँद लुढ़क पड़े।




✍️तोषी गुप्ता✍️


07-03-2022

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महिला दिवस का सम्मान

 महिला दिवस का सम्मान



निर्माणाधीन बड़े कॉम्प्लेक्स के पहले माले तक बनी लकड़ीयों की टेढ़ी मेढ़ी सीढ़ी पर सावधानी से पैर रखती छः माह की गर्भवती माला की नज़र नीचे बड़ी-बड़ी गाड़ियों से उतरते लोगों पर पड़ी। सूट बूट में उतरते कुछ पुरुषों के साथ कुछ झक सफेद कुर्ता पायजामा धारी भी थे। काला चश्मा और महंगे परिधानों में ऊंची एड़ी के फैशनेबल जूते पहनी महिलाएँ भी साथ थीं तो कुछ समाजसेवी टाइप नेत्रियां भी साथ थीं। इन सबके साथ उनके आगे पीछे कैमरा लेकर दौड़ते कुछ लोग जो हर एंगल से उनकी तस्वीर लेने आतुर थे। 


इधर ठेकेदार पसीने से लथपथ तुरंत दौड़ा उनकी ख़ातिरदारी के लिए। आनन फानन में कुर्सियों की व्यवस्था की गई और उस निर्माणाधीन कॉम्प्लेक्स के सभी मजदूरों को वहां इकट्ठा होने कहा गया। महिला मजदूरों को प्रथम पंकियों में जगह दी गई। कुछ लोगों की नज़र माला पर पड़ी तो बड़े लोग उसे बुलाकर अपने साथ कुर्सी पर बिठा लिए। ठेकेदार ने स्वयं माला के लिए कुर्सी लगाई। उसे और उसके महिला मजदूरों को खूब सारे उपहार भी मिले सभी बड़े लोगों ने उन उपहारों को देते हुए माला के साथ फोटो खिंचाई। उन बड़े लोगों की बातों से पता चला आज महिलाओं का कोई ख़ास दिन है। ये सब देखकर माला की आँसू आ गए, कल की ही तो बात थी जब उसने ठेकेदार से विनती की थी कि छठा महीना चल रहा है, उसे कोई हल्का काम दे दिया जाए, और ठेकेदार ने बुरी तरह झिड़कने के साथ उसे घर पर रहने की सलाह दी थी। माला बस यही सोच रही थी कि काश ये ख़ास दिन रोज़ होता तो रोज़ उसे इतना ही आराम और मान-सम्मान मिलता।



✍️तोषी गुप्ता✍️


07-03-2022

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सोमवार, 7 मार्च 2022

नारी मन की चाह ***

 *नारी मन की चाह*




मोहताज़ नहीं है नारी,एक दिन के सम्मान की,


वो तो चाहे ये सम्मान,हर दिन ,हर पल , हर क्षण, हर कदम, हर नज़र मान की,




ना वो चाहे नाटकीय मंच का अभिमान,


वो तो चाहे वास्तविक जीवन में स्वाभिमान, 




ना वो चाहे स्वयं पर पुरुषोचित्त रुग्ण मानसिकता का अधिकार,


वो तो चाहे हर कदम एक सुरक्षित साथ का हमराह,




ना वो चाहे कहलाना खुद को अबला नारी,


वो तो चाहे वक्त पड़े तो बन जाये वो दुर्गा भी और काली,




ना वो चाहे जीवन ढोना, बन स्वामी की दासी,


वो तो चाहे संवार देना जीवन, बन कर अर्धांगिनी,




ना वो चाहे बाँधा जाए उसे हर पल सीमाओं में,


वो तो चाहे उड़ना ऊंचे, असीम संभावनाओं के आकाश में,




ना वो चाहे प्रताड़ना ऐसी नर आरोपित आक्षेप,


वो तो चाहे सदैव खड़े रहना, संग नर के सापेक्ष,




ना वो चाहे उठे कोई प्रश्न उसके अस्तित्व पर,


वो तो चाहे मान मिले,उसे उसके नारीत्व पर,




वक्त ये आन पड़ा, ये मर्म समझा जाये,


नारी मन की मासूम चाह ये,हर दिल महसूस किया जाये,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


07-03-2022

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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

मेहनतकश स्त्रियाँ

मेहनतकश स्त्रियाँ 


बड़ी मजबूत होती हैं, 

ये मेहनतकश स्त्रियां, 

सूरज की किरणों की, 

ओस की बूंदों पर पड़ने से पहले,

 उठ जाती ये स्त्रियाँ, 

संवार लेती है अपनी छोटी सी दुनिया, 

झाड़ बुहार लीप कर, 

अपना छोटा सा आँगन सजाती, 

अपने घर के ज़रूरी काम समेट, 

खुद को भी संवारती, 

जल्दी जो जाना है उसे काम पर, 

घर के बच्चों का सुबह का खाना भी तैयार करना है,


जिसे खाकर वो दिन भर घर मे रहने वाले हैं,

 उन छोटे छोटे बच्चों को बस इतना पता है, 

माँ काम पर जाएगी, तो वापसी में साथ मे,

 कुछ खाने का लाएगी, 

सभी घरों से मिले हुए, 

खाने की थोड़ी थोड़ी मात्रा, 

उसके बच्चों का मन भर देती, 

उन व्यंजनों की खुशबू, 

और वो मेहनतकश स्त्री खुश हो जाती, 

अपने बच्चों की खुशी देखकर, 

छोटी वाली बच्ची तो, 

अभी घुटने पर ही चल रही, 

और उससे बड़ा दौड़ रहा, 

इन दोनों को संभाल रही सबसे बड़ी,

 जो अभी दूसरी में ही तो है, 

लेकिन कहाँ जा पाती स्कूल भी, 

बहन भाई को भी तो संभालना है,

 मेहनतकश स्त्री लाख हिदायतें देती बच्चों को, 

पड़ोस में भी बोल जाती,

 थोड़ा देखना बच्चों को, 

अपने दिल के टुकड़ों को , 

दिन भर के लिए छोड़, 

फिर चल पड़ती , 

सूरज की हल्की पड़ती , 

किरणों के साथ, 

जहाँ उसकी बाट जोहती उनकी मालकिन,

और साथ ही उस घर की परी , 

जो लगभग उसकी बड़ी बेटी की उम्र की ही थी, 

उसे सजाती-संवारती , 

कभी कभी उस परी में, 

अपनी बेटी का भी अक्स देख लेती,

 और खुश हो जाती, 

उसकी चोटी बनाती, 

उसे कपड़े पहनाती , 

उसके जूते के बंद बाँधती, 

उसके हर नखरे उठाती, 

दिन भर उस घर को संवारती, 

आखिर उस घर से ही तो जुड़ा है, 

उसका अपना घर आँगन, 

इस घर को संवारती , 

अपना घर सजाने के लिए, 

दिन भर इस घर में खटती, 

अपने घर को बनाने के लिए, 

लौटते में मालकिन का दिया हुआ भोजन, 

घर ले आती अपने दिल के टुकड़ों के लिए, 

जिसे उसकी मालकिन ने दिया था,

 उसे खाने के लिये, 

एक कौर मुंह मे डाल झटपट , 

रख लेती उसे अपनी पोटली में, 

यह कहकर कि काम बहुत है दीदी, 

अभी काम कर लूं, बाद में खाऊँगी, 

दीदी जानती और मुस्कुरा देती, 

दिन ढले वो लौटती अपने बच्चों के पास, 

बच्चे खुश से लपक पड़ते उसकी पोटली, 

और खुश हो एक-एक टुकड़े का स्वाद लेते,

 मेहनतकश स्त्री फिर लग जाती, 

अपनी दुनिया सहेजने में, 

उसका पति जो उसके काम पर जाने तक, 

औंधा मुँह पड़ा था खाट पर, 

जाने कहाँ है, 

पर आएगा रात को नशे में धुत्त, 

और तार-तार कर देगा उसकी आत्मा, 

फिर भी अगली सुबह , 

सूरज की किरणों के , 

ओस की बूंदों पर पड़ने से पहले, 

उठ जाएगी ये मेहनतकश स्त्री, 

और दमकेगी अपनी मेहनत की आभा से, 

क्योंकि बड़ी मजबूत होती हैं, 

ये मेहनतकश स्त्रियाँ... 




✍️तोषी गुप्ता✍️ 

24-02-2022

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शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

फ़र्ज़

फ़र्ज़


          ऑपरेशन थियेटर के बाहर जलती लाल बत्ती बंद होते ही सबकी नजरें ऑपरेशन थियेटर की दरवाजे की ओर ताक रही थी। डॉक्टर को आता देख अब तक मायूसी में बैठे सब उनकी तरफ दौड़े। डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, बधाई हो अनुज का ऑपरेशन सफ़ल हुआ। खुशी से सबकी आंखों से आँसू बहने लगे।

               


                   अनुज के माता-पिता के साथ वहां मौजूद विराज के माता-पिता की आँखों से भी बरबस ही आँसू निकल पड़े। एक एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल और ब्रेन डेड घोषित विराज का दिल आज अनुज के शरीर में धड़क रहा था।


                    अनुज के माता-पिता ने भीगी आंखों से विराज के माता-पिता का धन्यवाद किया और फिर आपस में इशारा कर सहमति जता दोनों ने मरणोंपरांत अपने अंगदान के एक-एक फॉर्म में हस्ताक्षर कर हॉस्पिटल में जमा कर दिया। दोनों इस फ़र्ज़ को पूरा कर अब मुस्कुरा रहे थे मानो उन पर से कोई कर्ज़ उतर गया हो।



✍️तोषी गुप्ता✍️


18-02-2022

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हारा वही ,जो लड़ा नहीं,

 हारा वही , जो लड़ा नहीं



ज़िन्दगी हर क़दम पर इम्तेहान लेती है,


वक़्त के करवटों में अधूरे ख़्वाब समेटती है, 


कठिनाइयों के दौर में भी उम्मीद जगाए रखती है,


मेहनत की कड़ी धूप पर सफलता की छांव भी बिखेरती है, 



जीवन के इस सफ़र में हर मोड़ में एक नया फ़साना है,


कभी हारकर जीतना है, कभी जीतकर हारना है,


कैसा भी हो सफ़र मज़िल की राहों का,

हर स्थिति में बस बढ़ते ही जाना है, 


मिल भी जाये राह में कभी असफलता,

ख़ुद की कमी दूर कर नये उत्साह से आगे बढ़ना है,



एक हौसला ही है जो हमें संबल देता है,


अन्धेरे कमरे में भी रोशनी की आस से टिमटिमाता है,


पतझड़ के मौसम में नव कोपल की आस रखता है,


हर हार से लेकर सीख जीतने की नयी उम्मीद जगाता है,




हर कदम पर मिले सफ़लता ये ज़रूरी तो नहीं,


मिली असफलता उसको ,जिसने कोशिश किया नहीं,


हर क़दम पर मिले जीत ये ज़रूरी तो नहीं,


मग़र हारा वही है, जो लड़ा नहीं,



✍️तोषी गुप्ता✍️


18-02-22


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रविवार, 13 फ़रवरी 2022

 कागज़ की नाव

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बुधवार, 19 जनवरी 2022

मुझे गर्व है, स्त्री हूँ मैं,

 *मुझे गर्व है, स्त्री हूँ मैं,*




मुझे गर्व है, स्त्री हूँ मैं,


क्योंकि, इस सृष्टि की जननी हूँ मैं,



अपनी कोख़ से जन्में सृजन की सृजनकर्ता हूँ मैं,


समस्त सृष्टि की पालनहार हूँ मैं,



एक माँ के रूप में ममतामयी बनकर,


बच्चों के हर दुख की बलैया लेती,



बेटी के रूप में स्नेहमयी बनकर,


खुद की मुस्कान का कारण बनती,



बहन के रूप में सखा बनकर,


हर मुश्किल घड़ी से बचाती,



तो पत्नी के रूप में हमराही बनकर चलती


सारे सुखदुख की बराबर भागी बनती,



लोपामुद्रा, घोषा, गार्गी,अपाला, मैत्रेयी के रूप में,


प्राचीन भारत को समृद्ध करती,



सावित्रीबाई,सरोजनी,कल्पना, इंदिरा,किरण के रूप में,


नव भारत का मान बढ़ाती,



पल पल संसार को संवारती स्त्री हूँ मैं,


मुझे गर्व है स्त्री हूँ मैं,




✍🏻तोषी गुप्ता✍️


18-02-21

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नारी सशक्तिकरण और सक्षमता के आयाम

 *नारी सशक्तिकरण और सक्षमता के आयाम*



सहती है, डरती है ,सिसकती है नारी,


जब प्रताड़ित करती उसे दुनिया सारी,


फिर पहचान कर स्वयं की शक्ति,


नई ऊर्जा उसमें संचारित होती,


कुचलकर हर दमन का सर,


तब एक नई कली प्रस्फुटित होती,


खुले आसमाँ में खुद अपनी तकदीर लिखती,


नई स्फूर्ति, नई हिम्मत से एक नया इतिहास गढ़ती,




सच ही है, स्त्री स्वयं में इतनी सशक्त हैं कि वह सृष्टि के समस्त सकारात्मक पहलुओं का विकास कर सकती है, वहीं सृष्टि में व्याप्त समस्त नकारात्मकता का समूल नाश कर सकती है। ज़रूरत है तो स्त्री को स्वयं को पहचानने की। उसे स्वयं में प्रवाहित होती ऊर्जा को पहचानने की और समय आने पर उसका उचित प्रयोग करने की  नितांत आवश्यकता है। और ये हम नारियों की स्वयं की जिम्मेदारी है कि हम अपनी शक्ति को , अपनी ऊर्जा को, अपनी सक्षमता को अक्षुण्ण रखें और उसे समृद्ध करें। और ये संपूर्ण बातें तभी संभव है जब हम अपनी सोच में स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को शामिल करें , उसे स्वीकार करें और उसे अनुभव करें, क्योंकि हर अच्छे कार्य की शुरुआत सोच से होती है, और अब इन सबको अपनी सामान्य सोच में शामिल करने का वक्त आ गया है। आज के वक्त की मांग भी यही है, कि यत्र, तत्र, सर्वत्र, स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को प्रोत्साहित किया जा रहा है।




प्रकृति ने जब स्त्री और पुरुष की रचना की तब दोनों को समान बनाया, लेकिन कोमलांगी होने के कारण सदैव स्त्री कमतर आंकी जाती रही, और उस सोच का असर यह हुआ कि कदम कदम पर स्त्री को पुरुषोचित सोच का शिकार होना पड़ा। इतिहास में वैदिक काल को स्त्रियों का स्वर्णयुग माना जाता है जहाँ स्त्रियां पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर, शिक्षा, राजधर्म , वैदिक कार्य आदि सभी में पुरुषों की समान भागी हुआ करती थीं। लोपामुद्रा, घोषा, गार्गी, मैत्रेयी, अपाला ऐसे ही न जाने कितनी विदुषियों ने भारतीय संस्कृति में अपनी अक्षुण्ण छाप छोड़ी है, लेकिन समय बितने के साथ और भारतीय संस्कृति में विदेशी संस्कृतियों के आगमन के साथ कि स्त्रियों की स्थिति भारतीय समाज में बदलने लगी। जहां स्त्रियों को अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए घर में कैद होना पड़ा और वहीं से स्त्रियों की दयनीय स्थिति का प्रारंभ हुआ। लेकिन समय बदलने के साथ भारतीय नारियों की स्थिति में भी परिवर्तन शुरू हुआ। रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, रानी अहिल्याबाई होल्कर, जीजा बाई, रानी कर्णावती, रानी पद्मावती, रानी रुद्रम्मा देवी, रानी अवंति बाई आदि जैसी भारतीय वीरांगनाओं ने भारत के इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय संस्कृति की सदैव रक्षक रहीं। वहीं सावित्रीबाई फुले, पंडित रमाबाई, बहिन सुब्बालक्ष्मी, गंगाबाई, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजनी नायडू  आदि जैसी महिलाओं ने आधुनिक भारत में स्त्रियों को उनके यथोचित अधिकारों को दिलाने के लिए अनेक समाज सुधारक कार्य करके समाज में स्त्रियों की स्थिति सुधारने सकारात्मक कदम उठाए जिसका असर यह हुआ कि विश्वपटल में स्त्री क्रांति विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ और जगह जगह स्त्री सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने लगे। वर्तमान में भारतीय महिलाएं सभी क्षेत्रों में पूरी दुनिया में परचम लहरा रही हैं , कल्पना चावला, चंद कोचर, अमृता प्रीतम, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल, किरणबेदी, अरुंधति रॉय, साइना नेहवाल, नैना लाल किदवई, ऐश्वर्या रॉय जैसी महिलाओं ने स्वयं को विश्वपटल पर साबित कर अनेकानेक महिलाओं की प्रेरणा बनीं।


 


सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहराने के बाद भी स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता की राह में अभी ढेरों समस्याएं बनी हुई हैं। अपने आप को समाज में साबित करने और अपनी जगह बनाने में उसे आज भी कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। ऐसी ही कुछ समस्याओं और उनके समाधान के बारे में हम आज प्रकाश डालेंगे।



उच्चशिक्षा की प्राप्ति :- सामान्य स्तर पर नारी शिक्षा पर क्रियान्वित कई योजनाओं के चलते अब वर्तमान में लोग नारी शिक्षा के प्रति तो जागरूक हो गए हैं लेकिन अभी इस जागरूकता का असर सिर्फ सामान्य शिक्षा तक ही है। उच्चशिक्षा के लिए स्त्रीयों की राहें अभी भी मुश्किल ही हैं। आज भी उच्चशिक्षा के लिए घर से दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करना कई स्त्रियों के लिए मुश्किल ही है।



समाधान :- समाज में जड़ों तक जाकर जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। जैसे कि नारी शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किया गया वैसे ही अब नारी उच्च शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। लोगों को अब यह समझाए जाने की आवश्यकता है वर्तमान महंगाई के दौर में जहां एक व्यक्ति की आय से घर चलाने में परेशानी हो रही है ,भविष्य में नितांत आवश्यक है, कि घर में एक से अधिक आय के स्त्रोत हों। और यदि घर की स्त्री उच्चशिक्षित हो तो वह घर में आय के स्त्रोत का भी जरिया बन सकती है। स्वयं स्त्री को यह समझने की ज़रूरत है कि सिर्फ साक्षर होना या सामान्य शिक्षा ग्रहण करना बस आज के परिवेश में आवश्यक नहीं बल्कि उच्चशिक्षा प्राप्त कर अब उसे आय के स्त्रोत का जरिया भी उसे बनना होगा।



तकनीकी प्रशिक्षण :- तकनीकी प्रशिक्षण वाले क्षेत्रों में आज भी स्त्रियों की कम पहुँच है, क्योंकि सामान्यतः स्त्रियों को तकनीक के मामले में पुरुषों से कमतर आंका जाता है जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं। भारत में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में टेसी थॉमस, ऋतु करिधल, परमजीत खुराना, मुथैया वनिता जैसी महिलाओं ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान दिया है, लेकिन इन सबके बाद भी तकनीकी प्रशिक्षण वाले क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति नगण्य रहती है।



समाधान :-  शालेय स्तर से ही लड़कियों को तकनीकी शिक्षा लड़कों के साथ ही और लड़कों के बराबर ही दी जाए। इससे लड़कियों में बचपन से ही तकनीकी सूझ उन्नत होगी और लड़कों के साथ और लड़कों के बराबर ही तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के कारण लड़कों में भी इस सोच का विकास होगा कि लड़कियां भी तकनीकी प्रशिक्षण में लड़कों से कहीं काम नहीं है। लड़के और लड़कियों की इस उन्नत सोच और सूझ का असर भविष्य में दिखेगा जब लड़कियां तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर वो बड़े पदों पर आसीन होंगीं।


घर के प्रति जिम्मेदारी :- महिलाओं की सक्षमता में बड़ा हाथ परिवार के सहयोग का होता है ऐसे में महिलाओं की जिम्मेदारी घर के प्रति और अधिक बढ़ जाती है और वो बाहर और घर के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए घर के प्रति और भी संवेदनशील हो जाती है। कई बार ये संवेदनशीलता स्त्री सक्षमता की कमज़ोर कड़ी साबित होने लगती है।


कामकाजी महिलाओं को दोहरी जिम्मेवारी का निर्वहन करना होता है। ऐसी स्थिति में कभी बाहर की तो कभी घर की जिम्मेदारियां हावी हो जाती हैं।



समाधान :- यदि स्त्री स्वयं चाहे तो इस मुश्किल राह से वह स्वयं भी बाहर निकल सकती है। स्त्रियों का चीजों और रिश्तों के प्रति संवेदनशील होना उसका स्वभाव है। लेकिन ये स्त्री को स्वयं करना होगा कि किसी भी रिश्ते को वह अपनी कमजोरी ना बनने दें बल्कि उसको अपनी शक्ति बनाए।



सुरक्षा :- वैसे तो आजकल स्त्री सुरक्षा के हर संभव उपाय हर कदम पर किये जा रहे हैं, लेकिन फिर भी महिलाओं को अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहना पड़ता है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार जहाँ देश में 8 करोड़ महिलाएं यौन उत्पीड़न का सामना कर रही हैं। हर 15 मिनट में 1 महिला छेड़छाड़ की शिकार होती है और हर 29 मिनट पर 1 महिला के बलात्कार का मामला होता है। ये तमाम प्रकार की घटनाएं स्त्री सक्षमता को प्रभावित करती है।



समाधान :- स्त्री सुरक्षा के लिए स्वयं स्त्री को सजग तथा सक्षम रहना होगा। एक स्त्री/लड़की को दूसरी स्त्री/लड़की के लिए मजबूत सहारा बन के आगे आना पड़ेगा। अक़्सर ये देखा गया है कि एक स्त्री पर हो रहे गलत हरकत पर दूसरी मौन रहती है जबकि ऐसी स्थिति में दूसरी स्त्री को पहली स्त्री का साथ देकर विरोध की आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। साथ ही लड़कियों/ महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर भी सीखना चाहिए जिससे वक्त आने पर वो स्वयं अपनी रक्षा कर सके।



पुरुषप्रधान क्षेत्र:- आज भी कई क्षेत्रों को समाज में पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता है, और जहां आज भी स्त्रियों को पहुंचाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, फिर चाहें वो लड़ाकू विमानों की पायलट गुंजन सक्सेना हो या प्रसिद्ध उद्यमी शोभना भरतिया। सभी को अपने क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ऐसे पुरुष प्रधान क्षेत्र में महिलाओं की कम उपस्थिति है।



समाधान :- स्त्रियों को स्वयं कोशिश करनी चाहिए कि वो हर परिस्थिति में हर मुश्किल का सामना कर सके चाहे वो उस समय अकेली लड़की हो या फिर कुछ ही लड़कियां हों। और ये भी , कि लड़कियाँ हर परिस्थिति में हर मुश्किल कार्य कर सकती हैं। सृष्टि ने ऐसा बनाया है कि वह हर संभव कार्य कर सकती है और किसी भी मामले से वह पुरुषों से कमतर नहीं है। तो चाहे कोई कार्य पुरुष प्रधान क्यों न हो , बुद्धि और श्रम दोनों ही मामले में वो उस कार्य को कर सकती है।



राजनीति /प्रशासनिक/निगम क्षेत्र :- पहले स्त्रियां घर के बाहर जाकर साधारण कार्य करती थीं। जिसमें उनको किसी पुरुष के निम्न कर्मचारी के रूप में कार्य करना होता था। लेकिन अब स्त्रियां हर क्षेत्र में उच्च अधिकारी के रूप में भी कार्य कर रहीं है। राजनीति/प्रशासनिक/निगम क्षेत्रों में भी वो अब प्रमुख के रूप में कार्य कर रही हैं, जहां उन्हें यदा कदा पुरुषोचित अहम का शिकार होना पड़ता है। कहीं पुरुषों के मुकाबले कम वेतन तो कहीं यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है।इसलिए अभी भी महिलाओं की भागीदारी जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है।



समाधान:- स्त्रियों को अपने व्यक्तित्व के हर पहलू का निखार करना होगा। साथ ही उन्हें स्त्रियों के अधिकारों एवं कानूनी सुविधा एवं सुरक्षा की भी जानकारी होनी चाहिए, जिससे कि मुश्किल समय में स्त्री स्वयं अपनी रक्षक पहले बन सके।



महिलाओं का पारस्परिक द्वेष :- अक़्सर ये देख गया है कि महिलाएं ही महिलाओं के प्रति दुर्भावना रखती है। एक महिला ही दूसरी महिला की सबसे बड़ी दुश्मन साबित होती हैं और एक दूसरे की राह में रोड़ा अटकाती हैं। चाहे घर के अंदर हो या फिर घर के बाहर , वक औरत ही दूसरी औरत की सबसे बड़ी प्रतिद्वन्दी नज़र आती हैं। स्त्रियों के इन स्त्रियोचित व्यवहार के कारण भी स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री सक्षमता प्रभावित होती है।



समाधान:- स्त्री जागरूकता ही इसका एकमात्र उपाय है। महिलाओं में आपसी दुर्भावना को समाप्त कर या कम करके ही स्त्री सम्पूर्ण विश्व पटल पर शीर्ष में होंगी इस बात को स्त्रियों को स्वयं समझना होगा और उसी रणनीति के आधार पर ही कार्य करना होगा।  



समाज में व्याप्त और भी कारक हैं जो स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को सीधे प्रभावित करते हैं। लेकिन अब वक्त है इन समस्याओं का समाधान कर स्त्री  स्वयं अपनी सक्षमता को मजबूत करे। भारत में यदि हम स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री सक्षमता की बात करें तो भारत में शासन द्वारा बहुत सारे सशक्तिकरण और सक्षमता की योजनाएँ चलाई जा रही हैं और उसका लाभ भारत की हर स्त्री तक पहुँचाएं जाने का प्रयास शासन कर रही है लेकिन यह तभी संभव है जब स्त्री स्वयं अपनी सशक्तिकरण और सक्षमता की आवश्यकता को पहचाने और इस ओर पहल करे। स्त्रियों  के लिए सारा आसमान खुला हुआ है, ज़रूरत है तो बस उन्हें स्वयं के आत्मविश्वास को पहचान कर आगे बढ़ने की । और जिन स्त्रियों ने ज़िन्दगी में स्वयं एक मुकाम हासिल कर लिया है ये उनका भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे अन्य स्त्रियों की प्रेरणास्त्रोत बनकर उन्हें सशक्त बनने, सक्षम बनने में अपनी महती भूमिका निभाएं । तभी एक सक्षम नारी वर्ग का विकास हो सकेगा। हर स्तर पर नारी को स्वयं की महत्ता स्वीकार करनी होगी और यह मानना होगा कि हम सशक्त हैं, और सक्षम होना हमारी स्वयँ की जिम्मेदारी है।




✍️तोषी गुप्ता✍️


18-02-2021

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हिंदी मेरी पहचान

 हिंदी मेरी पहचान




संस्कृत से जन्मी हिन्दी


हृदय को छू जाती है,


मन में आते भावों को


उचित शब्द दे जाती है,


भाषा की संतुष्टि,


हिन्दी से जो आती है,


पढ़ूँ भी हिन्दी,लिखूँ भी हिन्दी


हर सोच हिन्दी को भाती है,


है हिंदी जब मातृभाषा,


यूँ तो सबको आती है,


फिर क्यों बोलने में कुछ को,


अक़्सर शरम आती है,


मातृभाषा का अपनी सम्मान करो,


ये भाषा भी राष्ट्रभक्ति सिखाती है,


हिन्दी तो है अब राष्ट्रभाषा,


जो भारत की शान बढ़ाती है,


हिन्दी मात्र भाषा नहीं,


ये भावनाओं का उद्गार है,


आने वाली पीढ़ी को,


यह अमूल्य उपहार है,


मेरी संवेदनाओं को शब्द देती,


यह हिन्दी मेरी पहचान है,


अमूल्य विरासत में मिली


यह हिन्दी मेरा अभिमान है,





✍️तोषी गुप्ता✍️


27-08-2021

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अधूरी ख़्वाहिशें

 अधूरी ख्वाहिशें





ये अधूरी ख्वाहिशें,


बहुत तकलीफ़ देती हैं,


ना जीने देतीं हैं,


और ना रातों को सोने देती हैं,


रात में ये अधूरी ख्वाहिशें,


जाग सी जाती हैं,


हर पल इन ख्वाहिशों को पूरा करने,


नये ताने-बाने बुनती,


एक के बाद एक ख्वाहिशों की,


जैसी एक रील चल पड़ती,


जैसे फ़िल्म में एक सीन के बाद,


दूसरे सीन की दूसरी रील चलती,


एक ख्वाहिश को पूरा करने के सपने संजोते ही,


दूसरी ख्वाहिश कसमसाती हुई,


अपना सर उठाती और मन दौड़ चलता,


पुनः दूसरी ख्वाहिश को पूरा करने सपने संजोने


इस तरह जैसे सारी रात गुजर जाती


और सुबह हो जाती,


फिर उन अधूरी ख्वाहिशों के साथ,


दिन में फिर सर उठाती,


 इन ख्वाहिशों की उलझी लताएँ


और मन चल पड़ता इन ख्वाहिशों को पूरा करने,


और जैसे ही एक ख्वाहिश पूरी होती,


दूसरी ख्वाहिश मुस्कुराती हुई नयी खड़ी हो जाती,


और मन फिर भागता,


इस नयी ख्वाहिश को पूरा करने,


इस तरह हर रोज अधूरी ही रह जाती हैं


 कुछ ख़्वाहिशें , अधूरी ख़्वाहिशें बनकर,




✍️तोषी गुप्ता✍️


19-01-2022

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नई जेनरेशन

नई जेनरेशन



शिवानी अपने पति के साथ बैंगलोर में रहती थी। उसे ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी मिली तो अपने मम्मी पापा को सरप्राइज़ देने अपने मायके आ गई। उसने धीरे से घर का मुख्य दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई। अंदर का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था चुपके से शिवानी अंदर गई। देखा हॉल में कोई नहीं था लेकिन माँ पापा के कमरे से आ रही आवाज़ों को सुनकर शिवानी वहीं ठिठक गई।



"पूनम, जितना ये घर मेरा है उतना तुम्हारा भी है। तो इस घर के प्रति तुम्हारी भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है।" 



"देखो प्रकाश, मैं पहले भी कह चुकी हूँ, कि घर के सारे खर्चे तुम्हें ही करने होंगे। मैं मानती हूँ कि इस घर के प्रति मेरी भी जिम्मेदारी है और वो मैं अच्छे से निभा रही हूँ, लेकिन मैं अपनी सैलरी ऐसे घर के खर्चों में नहीं लगा सकती" 



"पूनम , तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही। अभी तक तो मैंने कभी तुमसे तुम्हारी सैलरी का एक भी रुपये खर्च करने के लिए नहीं कहा। अब जब मेरा कारोबार कोरोना की वजह से धीमा हो गया है तो घर के लोन की किश्तें चुकाने ही तो बोल रहा हूँ।" प्रकाश ने एक बार फिर पूनम को समझाने की कोशिश की।



"मैंने एक बार कह दिया मैं अपनी सैलरी नहीं दूंगी तो नहीं दूंगी।" कहते हुए पूनम गुस्से से कमरे से बाहर हॉल में आ गई।



हॉल में अचानक शिवानी को देख पूनम हतप्रभ रह गई और थोड़ा झेंपते हुए कहा, "अरे बेटा, तुम कब आई, पता ही नहीं चला।" खुशी से पूनम ने अब शिवानी को गले से लगा लिया।



"बस अभी-अभी पहुंची माँ, और आपकी और पापा की बातें सुनकर यहीं रुक गई।"



"अरे, तू भी क्या लेकर बैठ गई।अभी आई है, जा जाकर फ्रेश हो जा। मैं तेरी पसंद का कुछ बनाकर लाती हूँ।"



तब तक प्रकाश भी हॉल में आ गए थे। शिवानी दौड़कर पापा के गले लग गई। फिर माँ की तरफ मुड़ते हुए कहा, 



"अभी नहीं माँ, पहले मुझे आप लोगों से बात करनी है। माँ , पापा बिल्कुल सही कह रहे हैं। घर के फाइनेंशियल मैटर में भी आपका योगदान होना चाहिए।"



"पर बेटा, घर चलाना घर के पुरुष का काम होता है।"



"माँ आप कब से ये सब मानने लगीं। पापा भी तो घर के छोटे-मोटे काम में आपकी मदद करते हैं न। तो घर चलाने में आप उनकी मदद क्यों नहीं कर सकतीं।"



शिवानी ने आगे कहा,"अब मुझे और विशाल को ही ले लो। हम दोनों ही नौकरीपेशा हैं, और घर के सारे खर्चे आपस में मिलकर करते हैं , वहीं घर के सारे काम भी मिलकर करते हैं। घर फोन, वाई-फाई, टीवी रिचार्ज, गैस रसोई के खर्चे और कार की किश्तें मैं भर देती हूँ, तो फ्रिज़, टीवी की किश्तें और घर के लोन विशाल भर देता है। इस तरह हम दोनों ही घर के खर्चों में बराबर भागीदार रहते हैं। वहीं मेरी शिफ्ट सुबह जल्दी होने के कारण विशाल सुबह मेरी काम में मदद करते हैं। और लंच प्रिपेयर करते हैं। तो ऑफिस से आने के बाद रात का खाना मैं तैयार करती हूँ। इस तरह हम दोनों ही हर काम मिलकर करते हैं। आख़िर घर हम दोनों से है।"



पूनम बहुत शांति से शिवानी को सुन रही थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा,"बहुत बड़ी और समझदार हो गई है मेरी बेटी।" 



"लाओ, कहाँ सिग्नेचर करने हैं। घर का लोन चुका दो और अब से मैं भी घर के खर्चों में तुम्हारा बराबर साथ दूँगी। " मुस्कुराते हुए पूनम ने प्रकाश से कहा।



"इसी बात पर मैं अपनी बेटी के लिए बढ़िया अदरक वाली चाय बनाकर लाता हूँ।"



"नई जेनरेशन कितनी समझदार है आज ये पता चल गया।" कहते हुए पूनम ने शिवानी को गले से लगा लिया। 



शिवानी ने कहा, "ये नई जेनरेशन की नई सोच है माँ"  और तीनों हँस पड़े।




✍️तोषी गुप्ता✍️


19-01-2022

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लुभावने विज्ञापन

 लुभावने विज्ञापन 



आज सुबह त्रिपाठी जी लॉन में अपने पौधों को पानी दे रहे थे कि दरवाजे पर ऑटो आकर रुकी। देखा तो वसुधा मुरझाया से चेहरा लेकर ऑटो से उतर रही थी। किसी अनिष्ट की आशंका से त्रिपाठी जी ने अपनी पत्नी मीरा को आवाज देकर बुलाया तब तक वसुधा अंदर आ चुकी थी। मीरा जी ने वसुधा को गले से लगा लिया तो वसुधा फ़फ़क कर रो पड़ी।मीरा जी ने वसुधा को संभाला और अंदर ले गई। 



कुछ समय पश्चात वसुधा ने सारी बातें अपने माता-पिता को बताई। वसुधा की शादी एक मेट्रीमोनियल साइट के माध्यम से हुई थी। दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन सौरभ की प्रोफाइल देखकर सब बहुत प्रभावित हुए थे। वसुधा भी सौरभ के परिवार वालों को बहुत पसंद आई और जल्दी ही उसकी शादी वसुधा से हो गई। समय बहुत हंसी खुशी व्यतीत हो रहा था और शादी के महज़ कुछ ही महीनों बाद वसुधा इस तरह घर लौट आई। 



आज त्रिपाठी जी बहुत दुखी होकर सोच रहे थे काश उन्होंने सिर्फ लुभावने विज्ञापन पर भरोसा ना करके सौरभ के चरित्र और व्यवहार के बारे में भी थोड़ा पता किया होता तो आज उनकी बेटी वसुधा भी सुखी जीवन व्यतीत कर रही होती।



✍️तोषी गुप्ता✍️

18-01-2022

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विज्ञापन

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दिलीप जी बहुत परेशान रहते थे आज कल। दरअसल उनतीसवें वर्ष में प्रवेश कर गई थी उनकी बेटी बीना। दिलीप जी को बीना की शादी की चिंता सता रही थी। वैसे सर्वगुण सम्पन्न बीना सौम्य और सरल हृदया थी। बैंक की नौकरी भी थी। जो भी बीना से मिलता एक ही बार में उससे प्रभावित हो जाता। लेकिन शादी की बात आते ही लोग मना कर देते। कारण बीना के शरीर के अंदरूनी हिस्से में सफेद दाग़ के कुछ लक्षण थे। हालांकि कपड़े से ढक जाने के कारण बाहर से ना दिखते ना ही बिना बताए किसी को पता चलते। लेकिन बीना ने स्पष्ट तौर से घर में बता रखा था कि वो शादी करेगी तो सच्चाई बता कर करेगी। दिलीप जी और बीना की माँ भी बीना के इस फैसले से संतुष्ट थे। और यही वजह थी कि बीना की शादी कहीं तय नहीं हो पा रही थी।



एक सुबह दिलीप जी मॉर्निंग वॉक में अपने एक पुराने मित्र शर्मा जी से मिले। काफी दिनों बाद मिलने के कारण बातों का दौर चल निकला। और दिलीप जी ने बातों ही बातों में बीना की शादी के बारे में भी उनसे चर्चा की। शर्मा जी के बहुत पूछने पर दिलीप जी ने शादी ना हो पाने का कारण बताया। शर्मा जी अपनी बहन की शादी के दौरान इस पीड़ा से गुजर चुके थे। उन्होंने दिलीप जी को बिना परिवार और समाज की परवाह किये बीना की शादी का विज्ञापन अख़बार में देने की सलाह दी। और दिलीप जी को समझाया भी कि परिवार और समाज की परवाह करने से ज्यादा जरूरी बीना की शादी और सफल शादी शुदा ज़िन्दगी है। 



अब तक कशमकश से गुज़र रहे दिलीप जी को नई राह मिलते नज़र आई और दूसरे ही दिन उन्होंने सच्चाई बताते हुए बीना की शादी का विज्ञापन अख़बार में दे दिया।  कुछ दिनों बाद ही सुभाष का रिश्ता बीना के लिए आया । सुभाष के परिवार वाले भी सुभाष की शादी के लिए इसी समस्या से गुज़र रहे थे। सुभाष और बीना के परिवार वाले मिले। सुभाष भी उच्च शिक्षित और कॉलेज में प्रोफेसर था। सुभाष और बीना भी एक दूसरे से मिलकर खुश थे और दोनों ने विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी थी। 



और वो दिन भी आ गया जब मंडप में बीना को दुल्हन के रूप में देखकर दिलीप जी की आँखें खुशी से नम थी और वो मन ही मन इस बात से संतुष्ट थे कि अच्छा किया जो उन्होंने बीना की शादी का विज्ञापन बिना किसी की परवाह किये अखबार में दे दिया और आज वो अपनी बेटी बीना को दुल्हन के रूप में देख पा रहे हैं। मन ही मन उन्होंने शर्मा जी का भी धन्यवाद किया जो उन्होंने दिलीप जी को नयी राह दिखाई।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


18-01-2022

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शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

हाथी के दाँत

 हाथी के दाँत




एक बड़े सम्मान समारोह में सुधा जी का नाम पुकारा जा रहा था। आज उन्हें सम्मानित किया जा रहा था उत्कृष्ट समाजसेवी के रूप में। बड़ा नाम था समाज में सुधा जी का । आये दिन अख़बार में उनकी तस्वीर छपती कि भूखे ग़रीब को भोजन कराया, ठंड में कम्बल वितरण किया, कभी किसी स्कूल में ड्रेस, स्वेटर और पुस्तक कॉपी बांटे तो कभी नंगे पैर चलने वाले मजदूरों को चप्पल वितरण किया, किसी अस्पताल जाकर बीमारों के बीच फल बांटे, किसी अनाथालय में दान किया तो कभी किसी वृद्धाश्रम में दान किया। सुधा जी के पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में थे और आये दिन शहर के बाहर रहते। बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे और अपनी दुनिया में व्यस्त थे। घर में बुजुर्ग सास- ससुर और सेवा के लिए आशा दीदी साथ रहती। सम्मान समारोह में मिले बड़े से सम्मान पत्रक और शॉल और ढेरों उपहार के साथ सुधा जी ने घर में प्रवेश किया। आशा दीदी भागती हुई सुधा जी के पास आई और कुछ कहना चाहा, "दीदी , वो गाँव से बेटी का फ़ोन आया है, बारहवीं सत्तर प्रतिशत से पास हुई है, अब आगे की पढ़ाई के लिए शहर आना चाहती है,आप कुछ मदद कर दें तो,,,  सुधा जी ने उसे टोकते हुए कहा,




 "अरी आशा, अभी तो आई हूँ, ज़रा साँस तो लेने दे, फिर कर लेना अपनी बात। और सुन लड़कियों को ज्यादा पढ़ाते नहीं, अब तो उसके हाथ पीले करने की सोच और उसे घर के काम सीखा, अच्छा एक काम कर यहीं बुला ले, मैं उसे अच्छे से घर के सारे काम सीखा दूंगी" कहते हुए सुधा जी ने कुछ सोचते हुए मुस्कुरा दिया।




"नहीं दीदी, बिटिया तो.... आशा कुछ कहती उससे पहले ही सुधा ने उसे झिडकते हुए कहा,जाओ अभी मेरे लिए बढ़िया अदरक की चाय लेकर आ , कहते हुए सुधा जी ने सारा सामान आशा को दिया और वहीं सोफे पर बैठ गईं।




 बहु को आया जानकर ससुर बसंत अपनी लाठी का सहारा लेते धीरे धीरे उनके पास आये और धीरे से बोले, 




"बेटा सुधा, मोतियाबिंद के कारण सब कुछ धुंधला दिख रहा है, और तकलीफ भी बहुत हो रही है, अगर मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो जाता तो थोड़ा आराम मिलता।" 




"क्या पिताजी, थोड़ी तकलीफ हुई नहीं कि आपको डॉक्टर के पास जाना है, अरे सयाने शरीर में तकलीफ तो होगी न , देखिये, अभी कुछ दिन मैं व्यस्त हूँ, अभी ठंड का समय है, मुझे काफी जगह कम्बल और स्वेटर वितरण के लिए भी जाना है, और कुछ सम्मान समारोह भी है। और इस महीने आपकी और माँ की दवाइयों पर भी काफी खर्च हुआ है। अब अगले महीने सोचेंगे।




बसंत के पास बोलने को कुछ नहीं था, वो मायूस होकर हाथ में पत्नी रमा की खाँसी की दवाई की खाली बोतल छिपाते वापस अपने कमरे की ओर जाने लगे। रमा ने भी कमरे से उन्हें चुप रहने का इशारा जो किया था। 




इधर आशा दीदी चाय बनाते अपनी बेटी के भविष्य के लिए चिंतित थी। उधर बसंत और रमा अपने कमरे में अपनी तकलीफ़ छिपाने की नाक़ाम कोशिश करते और सुधा जी हॉल में सोफे पर बैठी कभी अपने सम्मान पत्रक को देख खुश होती तो कभी मोबाइल पर सम्मान समारोह की तस्वीरें देख दम्भ से भर जाती।




तोषी गुप्ता


13-01-2022

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गुरुवार, 13 जनवरी 2022

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

 कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन




कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,


जब सखियों का साथ था,


उनके साथ हर लम्हा जानदार था,


वो घण्टों साथ मे गप्पें लड़ाना,


रूठना और मनाना साथ था,


बागों में तितलियों संग आंख मिचौली खेलते,


और फूलों की खुशबू का खुमार था,


वो बेफ़िक्र सी हंसी थी,


वो बेबाक़ अंदाज़े बयाँ था,


वो बारिश की बूंदों में भीगना,


वो मंद पवन की बयार में झूमना,


हवाओं संग उलझते लटों संग खेलना,


वो दुपट्टा लहरा के ख़ुद उसमें उलझ जाना,


रात में टिमटिमाते तारों को निहारना,


दूधिया रोशनी बिखेरते चाँद संग ढेरों बातें करना,


कभी दिए उजली लौ संग खेलना,


कभी आईने में खुद को देख शरमा जाना, 


औंधे मुँह बिस्तर पर लेटे,


अपनी डायरी के पन्ने भरना,


वो सबसे छिपकर अपने सपनों की दुनिया,


कागज़ पर उकेरना,


बहुत याद आते हैं वो दिन,


और हर पल ये ख़्वाहिश होती,


कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,



तोषी गुप्ता

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कलम

कलम




जब जब कलम चलती है,


मन के भावों को,


कागज़ पर उतार देती है,


अनकहे उद्गारों को,


शब्दों से संवार देती है,


सच का साथ देती ये कलम,


असत्य की कमर तोड़ देती है,


आतताइयों का मुँह बंद कर,


सरल हृदय की ज़ुबाँ को आवाज़ देती है,


कम ना आँकना, कलम की इस ताक़त को,


ये वो धार है जो बिना वार किए,


रक्त की नदियाँ बहा देती है,


ये दो धारी तलवार है,


चाहे तो रंक को राजा,


और राजा को रंक बना देती है, 


माँ सरस्वती का वरदान है ये कलम,


चाहे तो सफलता के शिखर पर पहुँचा,


व्यक्ति का मान बढ़ा देती है,




तोषी गुप्ता

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भूखा गिद्ध

 भूखा गिद्ध 


कोरोना की भयावह स्थिति की रिपोर्टिंग करनी थी। जिसके लिए मैं एक अस्पताल जा पहुंचा। अस्पताल में जगह नहीं थी, लोगों को बेड नहीं मिल रहे थे, ऑक्सीज़न नहीं मिल रहा था, दवाइयाँ और इंजेक्शन नहीं मिल रहे थे। लोग अस्पताल के बाहर ही बरामदों में , कारों, ऑटो और रिक्शे में अपने रिश्तेदारों के एक- एक सांस के लिए जद्दोजहद करते दिख रहे थे। पास ही एक रिक्शेवाला खड़ा था जिसने अपने रिक्शे में एक तख़्ती लगा रखी थी, "कम कीमत पर मुक्तिधाम ले जाने की व्यवस्था" । साथ में उसकी बीवी जिसकी गोद में एक छोटा बच्चा भूख से बिलखते हुए अपने हाथ के अंगूठे को चूस रहा था, और एक छोटी बच्ची जिसकी आंखों के आँसू अब सूख चुके थे जो कातर नज़रों से अपनी माँ को निहार रही थी। बरामदे में एक -एक सांस के लिए लड़ते एक व्यक्ति के पास ही खड़े थे तीनों। अभी-अभी डॉक्टर ने उसकी नहीं बचने की संभावना व्यक्त की थी। अचानक ही मुझे एक फोटोग्राफर की चर्चित फोटो की याद या गई जिसमें एक भूखा गिद्ध , भूख से बदहाल एक छोटे से बच्चे की मौत का इन्तज़ार कर रहा था, ताकि उस बच्चे की मौत के बाद उसका भक्षण कर अपनी भूख शांत कर सके। उस फोटो की जीवंतता आज मुझे उस अस्पताल के बरामदे में नज़र आ रही थी।


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रेंगता कीड़ा

 रेंगता कीड़ा


अनु महसूस कर रही थी, अपने शरीर पर  किसी की बदनीयत छुवन को, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर पर कोई गंदा कीड़ा रेंग रहा हो, बचपन से ना जाने कितनी ही बार वो अपने शरीर पर इन रेंगते कीड़ों को महसूस कर चुकी थी। बेशर्मों की तरह उनके मुस्कुराते चेहरे ऐसे लगते जैसे गाय के भेष में कोई भेड़िया हो। अचानक ही बस ड्राइवर ने ब्रेक लगाई और अनु बिजली की फुर्ती से उस रेंगते कीड़े पर झपट पड़ी, उसी तेजी से अनु के पीछे से आवाज़ आई , आssss अनु की पिछली सीट पर बैठा वो शख़्स अपनी टूटी उंगली पकड़ कर कराह रहा था, और आस-पास बैठे लोग उससे सहानुभूति दिखाते ड्राइवर पर चिल्ला उठे इतनी तेजी से ब्रेक लगाने के लिए। इधर अनु मुस्कुराते हुए बाहर के खूबसूरत नज़ारे का लुत्फ़ उठा रही थी, निश्चिंतता से,,, क्योंकि अब उसके शरीर पर कोई कीड़ा नहीं रेंग रहा था।


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कल किसने देखा है

 कल किसने देखा है



हर एक पल की सांसों के साथ,


ज़िन्दगी गुजरती ही जा रही है,


जी लो इन पलों को जी भरकर,


ज़िन्दगी यूँ ही पिघलती जा रही है,




हंसी यादों के तिनके मुट्ठी में बंद करके,


सहेज कर इन्हें रख लेना ,


रहो जब भी तन्हा, खोल लेना इस मुट्ठी को, 


एक बार फिर दोबारा इन लम्हों को जी लेना ,




बंद कर लो गठरी बुरे अहसासों की,


कि बीते हुए वो लम्हें हर पल तुम्हें सतायेंगे


पड़ने न दो छाँव आज पर उस दर्द की,


कि नयी दास्ताँ से नये लम्हें हर नयी सुबह सजायेंगे,





क्यों करें कल की चिंता,


कि कल किसने देखा है,


जी लें जी भरकर आज में,


कि आज तो सबको जीना है,





सोचकर हर पल को आख़िरी,


जी लें कुछ इस तरह ज़िन्दगी,


हर ख्वाहिशें अपनी पूरी कर लें,


हर पल को मान लें पूरी ज़िन्दगी,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


12 जनवरी 2022

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