रेंगता कीड़ा
अनु महसूस कर रही थी, अपने शरीर पर किसी की बदनीयत छुवन को, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर पर कोई गंदा कीड़ा रेंग रहा हो, बचपन से ना जाने कितनी ही बार वो अपने शरीर पर इन रेंगते कीड़ों को महसूस कर चुकी थी। बेशर्मों की तरह उनके मुस्कुराते चेहरे ऐसे लगते जैसे गाय के भेष में कोई भेड़िया हो। अचानक ही बस ड्राइवर ने ब्रेक लगाई और अनु बिजली की फुर्ती से उस रेंगते कीड़े पर झपट पड़ी, उसी तेजी से अनु के पीछे से आवाज़ आई , आssss अनु की पिछली सीट पर बैठा वो शख़्स अपनी टूटी उंगली पकड़ कर कराह रहा था, और आस-पास बैठे लोग उससे सहानुभूति दिखाते ड्राइवर पर चिल्ला उठे इतनी तेजी से ब्रेक लगाने के लिए। इधर अनु मुस्कुराते हुए बाहर के खूबसूरत नज़ारे का लुत्फ़ उठा रही थी, निश्चिंतता से,,, क्योंकि अब उसके शरीर पर कोई कीड़ा नहीं रेंग रहा था।
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