अधूरी ख़्वाहिशें
अधूरी ख्वाहिशें
ये अधूरी ख्वाहिशें,
बहुत तकलीफ़ देती हैं,
ना जीने देतीं हैं,
और ना रातों को सोने देती हैं,
रात में ये अधूरी ख्वाहिशें,
जाग सी जाती हैं,
हर पल इन ख्वाहिशों को पूरा करने,
नये ताने-बाने बुनती,
एक के बाद एक ख्वाहिशों की,
जैसी एक रील चल पड़ती,
जैसे फ़िल्म में एक सीन के बाद,
दूसरे सीन की दूसरी रील चलती,
एक ख्वाहिश को पूरा करने के सपने संजोते ही,
दूसरी ख्वाहिश कसमसाती हुई,
अपना सर उठाती और मन दौड़ चलता,
पुनः दूसरी ख्वाहिश को पूरा करने सपने संजोने
इस तरह जैसे सारी रात गुजर जाती
और सुबह हो जाती,
फिर उन अधूरी ख्वाहिशों के साथ,
दिन में फिर सर उठाती,
इन ख्वाहिशों की उलझी लताएँ
और मन चल पड़ता इन ख्वाहिशों को पूरा करने,
और जैसे ही एक ख्वाहिश पूरी होती,
दूसरी ख्वाहिश मुस्कुराती हुई नयी खड़ी हो जाती,
और मन फिर भागता,
इस नयी ख्वाहिश को पूरा करने,
इस तरह हर रोज अधूरी ही रह जाती हैं
कुछ ख़्वाहिशें , अधूरी ख़्वाहिशें बनकर,
✍️तोषी गुप्ता✍️
19-01-2022
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