ज़िन्दगी का कैनवास***
ज़िन्दगी का कैनवास
बिखर सी गई मानो ज़िन्दगी
जब आइने के सामने
खुद को देखा
लगा मानो
पत्थर से शीशा तोड़
हज़ार टुकड़ों में फेंक दी गई हो
ख़्वाहिशें मेरी
सपने मेरे
हथेलियों से ढांप लिया
अपना चेहरा
जो आज
मेरे ही लिए था
अनजाना,,, अनदेखा,,,
ना देख पाने लायक
वो आँखों का गल जाना
नाक का खिसक जाना
होंठो का पता न चलना
और,,,, चेहरे में सिकुड़न
लगा जैसे
चेहरा नहीं
दिल ही किसी ने
बेरूप कर दिया हो
दिल से ना खेलने देने का
ये अंजाम होगा
कभी सोचा ना था
और किसी का दिल
इतना भी कठोर होगा
ये देखा ना था
उस दिन आईने में
खुद को देखकर
स्वीकार लिया
जो चला गया
वो वापस नहीं मिल सकता
सूरत गई है
सीरत तो साथ है
तो मन में विश्वास भर
ठान लिया बस
कर लिया एक वादा खुद से
जो भी हो जाये
ज़िन्दगी में नये मिले
इस कैनवास में
नई उम्मीदें उकेरना है
बेरंग हो चुकी
इस ज़िन्दगी के कैनवास को
फिर रंगों से सजाना है
✍️तोषी गुप्ता✍️
10-03-2022
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