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रविवार, 27 जून 2021

स्त्री

 स्त्री (1)





क्या होती है स्त्री,


कभी जाना है उसे,


या जानने की 


कोशिश की है कभी,


उसके कोमल 


मन  को जानना


इतना आसान भी तो नहीं


ऊपर से कठोर 


पर भीतर से कोमल


यही तो ख़ास है उसमें


कोमलांगी होते हुए भी


भीतर से मजबूत


ठान ले एक बार जो


पूरा कर दिखाए उसे 


राह में चाहे


मुश्किलें हजार आएं


डटे रहे अपने अडिग पग पर


बात अस्मिता पर जब आये


रौद्र रूप अपना दिखाए


वहीं ममता की छांव में अपने


सारे गमों को भूल जाये



✍️तोषी गुप्ता✍️


27-06-2021




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बारिश का ये मौसम

 बारिश का ये मौसम,,,




बारिश की 


रिमझिम फुहारों ने,


मौसम खुशनुमा बना दिया,


दिल में सोए हुए,


कई अरमानों को,


फिर से जगा दिया,





पानी की शीतल बूंदें,


मन हर्षित कर जाती हैं,


मन के भीतर के 


कई दुखों को,


पानी सा 


बह जाने देती हैं,






उमड़ती घुमड़ती


बदरा जब


अठखेलियाँ करती


बारिश की बूंदों संग


सूने दिल को सुकून देता


मन मयूर सा झूम जाता





चारों ओर फैली


ठंडी मादक बयार


मिट्टी की सौंधी 


खुशबू संग


कानों में मधुर संगीत सुनाती


पायल भी थिरकने को मचलती





बारिश का ये मौसम


ऋतु चक्र 


पूरा कर जाता


बच्चे बड़े 


सभी के मन को


आनंदित कर जाता





✍️तोषी गुप्ता✍️


27-06-2021



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पहचान

 पहचान



आसमान में 


अनगिनत सितारे,


चमकते हैं, 


बिना नाम के,


और बिना पहचान के,


लेकिन उनका वजूद 


अमोल है,


इस खगोल के लिए,





चिराग जलता है


हर एक पल 


हर क्षण


बिना अपने वजूद का 


ख्याल किये


बिना चिराग़ तले,


अंधेरे की परवाह किये,


और बिखेर देता है


रौशनी संग खुशियाँ


चहुँ ओर


उसका वजूद अमोल है


अंधेरे के लिए,,,






बहुत ज़रूरी है 


जीवन में 


एक नाम का होना


उससे भी ज़रूरी है


एक पहचान का होना,


लेकिन


सबसे अधिक ज़रूरी है


उसके व्यक्तित्व का होना


उसका व्यक्तित्व  अमोल है


उसकी पहचान के लिए





कर्म पथ पर 


बढ़े चल


बिना फल की चिंता किये


कर्म तुझे 


स्वतः पहचान दिलाएगा


प्रगति सोपान पर


तू विजय पताका फहराएगा


तेरा कर्म अमोल है


तेरी सफलता के लिए





✍️तोषी गुप्ता✍️


26-06-2021

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मौन की आवाज़


 

*मौन की आवाज़*




दबा दी जाती है,


हर उठने वाली आवाज़,


दिल में ही रह जाती है,


कुछ ना 


सुन सकने वाली आवाज़,


अंदर ही अंदर 


घुटने लगती वो चीत्कार,


धीरे धीरे आर्तनाद तब 


अंतर्नाद में बदल जाती,


दब सी जाती 


सिसकियों के बीच,


फिर धीरे-धीरे 


खामोश हो जाती,


तब 


और भी ज्यादा चुभती ,


वो मौन की आवाज़,,,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


26-06-2021


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बुधवार, 23 जून 2021

दिल ही तो है

 दिल ही तो है,



आँखों का हाल भी जो पढ़ ले,


बिना बोले जो भावनाओं को सुन ले,


टूटे दिलों के तारों को जो मिला दे,


एक दिल ही तो है,जो मौन की भाषा समझ ले,





हो कटुता ग़र मन में,उसे भी दर्शा जाता है,


लेक़िन ग़र हो प्रेम का सागर,

उसमें गोते लगाता है,


बैर का भरम तोड़ जो दिल को सुकून पहुंचाता है,


एक दिल ही तो है,जो सब भूल फ़िर आस कर जाता है,





तोड़ दे कोई विश्वास तो,फ़िर संशित हो जाता है,


हो कोई विश्वासपात्र फ़िर भी,उस पर शंका कर जाता है,


ग़र बोल दे कभी मीठे दो बोल कोई,


एक दिल ही तो है, जो फिर विश्वास कर जाता है,





हो ग़र कोई कशमकश मन में,


उलझे हों रिश्तों के तार जीवन में,


सूझे ना जब कोई हल मुश्किल में,


एक दिल ही तो है, जो हर उलझन सुलझा जाता है,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


23-06-2021

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गुरुवार, 17 जून 2021

बच्चों को योग का महत्व कैसे समझाएँ?

 बच्चों को योग का महत्व कैसे समझाएँ?


                             योग का हमारे जीवन में बहुत महत्व है । और यदि इसे अपने दैनिक जीवन में उतार लिया जाए तो यह सोने पर सोहागा वाली बात हो जाती है। और यदि एक बार यह आदत बच्चों के दैनिक जीवन में उतर जाए तो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में सकारात्मक प्रभाव देखने के लिए मिलते हैं। 


                            हम दोनों , पति के साथ मैं भी कामकाजी महिला हूँ। रात को भोजन के बाद थोड़ा टहलने के अलावा समय कम मिल पाता था। लेकिन इस लॉकडाउन में हमने खाली समय का सदुपयोग करने की सोची। वर्क फ्रॉम होम के चलते हमें समय भी मिल जाय करता था। हम दोनों और दोनों बच्चे मेरी बेटी और बेटा, हम चारों ने शाम को योग और व्यायाम करना शुरू किया और हमने इस दिनचर्या को पिछले 15 माह से इसे सतत रखा है। हमने बच्चों को योग करने के लिए जोर नहीं डाला बल्कि दोनों बच्चे हमें योग करते देख प्रेरित होकर स्वयं उत्साहित होकर योग करने लगे। उनमें रुचि देखते हुए हमने उनके लिए योग प्रशिक्षक भी नियुक्त कर दिया जो थोड़ी स्थिति ठीक होने पर ऑफलाइन और लॉकडाउन के समय ऑनलाइन बच्चों को योग की शिक्षा देने लगे। योग प्रशिक्षक अब उन्हें विशिष्ट योगासन और उनके फायदे भी बताते हैं। बच्चे अब विशिष्ट योगासन लगाकर स्वयं बहुत खुश होते हैं और नित नए योगासन लगाते हैं।अब योग और प्राणायाम उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया है।


                               बच्चों को योग जबरदस्ती ना करा के खेल खेल में थोड़ा थोड़ा योग करा के योग के प्रति उनकी रुचि जागृत की जा सकती है। और बच्चों में यदि एक बार योग के प्रति रुचि जागृत हो गई तो बच्चे स्वप्रेरणा से योग करने हमेशा उत्साहित रहेंगे।


                                बच्चों को योग का महत्व बोलकर समझाने के बदले हम स्वयं योग कर उनके सामने उदाहरण प्रस्तुत करें, तो धीरे-धीरे योग बच्चों की दिनचर्या में शामिल भी हो जाएगा और कुछ दिनों पश्चात उसके सकारात्मक परिणाम देखकर बच्चे स्वयं योग का महत्व समझ जाएंगे।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻

17-06-2021

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समय के साथ बहता चल,,,,

 समय के साथ बहता चल




समय की कीमत पहचान,


 समय के साथ चल,


समय जैसा भी हो,


समय के साथ बहता चल,




महसूस कर सुखद पल,


जी ले आज उसका हर एक पल,


ये समय फिर न लौटकर आएगा,


समय के साथ बहता चल,




हो मुश्किल कोई घड़ी,


उन पलों में ना घबराना तुम,


करके निडरता से उसका सामना,


समय के साथ बहता चल,




कदम बढ़ाते जाना लक्ष्य की ओर,


राह में आये कितने भी रोड़े,


हर मुश्किल को पार कर , 


समय के साथ बहता चल,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻

09-06-2021

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बुधवार, 16 जून 2021

सहयोग की ज़रूरत है,,,,

 सहयोग की ज़रूरत है,,,,





बचपन में जब ,


तालमेल न बिठा पाये बच्चा,


दोस्तों से अपने,


रह जाए अकेला दोस्तों के बीच,


एक इंसान अदद चाहिए उसे ऐसा,


जो समझ सके उसे,


फिर चाहे वो माँ ही क्यों न हो,


उसे सहयोग की ज़रूरत है ,

 एक माँ की,






उम्र हो नादान जब,


दोस्तों का हो साथ जब,


हँसी ठिठोली मस्ती भरे कदम,


बढ़ न जाये गलत राहों पर तब,


एक दोस्त चाहिए उसे ऐसा,


जो उसे रोक सके ग़लत राहों पर बढ़ने से,


फिर चाहे वो पिता ही क्यों न हो


उसे सहयोग की ज़रूरत है, एक पिता की,







बढ़ चले अब कदम,


भविष्य संवारने की ओर,


सपनों को पूरा कर, 


लक्ष्य को पाने की ओर,


एक साथ चाहिए उसे ऐसा


जो हौसला उसका बढ़ा सके हर कदम,


फिर चाहे वो दोस्त ही क्यों न हो,


उसे सहयोग की ज़रूरत है, एक दोस्त की,







हो गए सपने जब पूरे,


आई अब जिम्मेदारियों की बारी,


हर ज़रूरत सबकी पूरी करते,


खुद की भी परवाह ना करते, 


एक हमसफ़र चाहिए उसे ऐसा,


जो निभा सके उसके हर कदम से कदम,


फिर वो चाहे पत्नी ही क्यों न हो,


उसे सहयोग की ज़रूरत है , एक पत्नी की,







उम्र की ढलती सांझ में,


बच्चों के सपनों को जीते हर पल में,


कंधे झुक गए जब,


जिम्मेदारियों के प्रभाव से,


एक अटूट बंधन आस-पास चाहिए


जो उनके अकेलेपन को दूर कर सके,


फिर वो चाहे पूरा परिवार ही क्यों न हो,


उसे सहयोग की ज़रूरत है, एक परिवार की, 






✍️तोषी गुप्ता✍️


16-06-2021


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घरौंदा

 घरौंदा 


श्रेया मायूस सी आईने के सामने खुद को निहार रही थी । रिटायर्ड पिता थोड़े परेशान से हॉल में तेजी से चहलकदमी करते बार-बार घड़ी की ओर देख रहे थे। बहुत मुश्किल से उन्होंने कुछ पैसे श्रेया की शादी के लिए जोड़े थे। लेकिन हर बार बात दहेज तक आकर रुक जाती थी और मायूसी हाथ लगती थी। ऐसे में श्रेया का लिया गया फैसला पिताजी को और परेशान कर गया था। चहलकदमी करते अचानक वो श्रेया की माँ से धीरे से कुछ बोले। श्रेय की माँ श्रेया के कमरे में आई और बोली,



"बेटा अपनी ज़िद छोड़ दो, रिश्ता बहुत अच्छा है, लड़के वाले आते ही होंगे, तुम जैसे बोल रही हो वैसा लड़का मिलना बहुत मुश्किल है "



"मुश्किल है माँ पर असंभव नहीं, मैं अपना निर्णय नहीं बदलूंगी" श्रेया ने कहा,



माँ ने पीछे मुड़कर पिताजी को मायूसी से देखा जो दरवाजे के बाहर ही पर्दे की ओट में खड़े थे , तभी दरवाजे पर घंटी बजी।



माँ ने कहा, "लगता है लड़के वाले आ गए"



 माँ और पिताजी दोनों दरवाजे की ओर चले गए और श्रेया ने कसकर अपनी आँखें बंद कर ली मानो कोई प्रार्थना कर रही हो।



हॉल में अब हलचल थोड़ी बढ़ गई, कुछ ही देर बाद माँ श्रेया को बुलाने आई। 



पीयूष भी अपने माँ पिताजी के साथ आया था। पीयूष की माँ पिताजी ने थोड़ी बातें की फ़िर श्रेया और पीयूष को आपस में बात करने ऊपर छत पर भेज दिया। 



छत पर बातें करते-करते श्रेया ने अपनी मंशा ज़ाहिर की, कि वह बिना दहेज के ही शादी करना चाहती है, बातें करने से अब तक पीयूष भांप चुका था कि श्रेया सुलझे विचारों वाली लड़की है। थोड़ा सोचकर उसने हामी भर दी। 



दोनों नीचे आये। पीयूष ने अपने मम्मी-पापा से अकेले में थोड़ी बात की फिर वो रिश्ते के लिए तैयार हो गए।



पीयूष के पिताजी ने श्रेया के पिताजी से कहा, हमें रिश्ता मंजूर है, लेकिन हमारी एक शर्त है, अब श्रेया के पिताजी घबरा के उसकी माँ की ओर देखे और श्रेया पीयूष की ओर,,,



 पीयूष के पिताजी ने कहा, "लड़की की विदाई आप सिर्फ एक जोड़े में करेंगे"



श्रेया के पिताजी ने हाथ जोड़ लिया उनकी आंखों से आँसू बहने लगे और उन्होंने श्रेया की तरफ देखा, जिसके चेहरे पर भी मुस्कुराहट के साथ खुशी के आँसू बह रहे थे।



श्रेया की ज़िद ने आज एक घरौंदे को सहेजते हुए अपना एक नया घरौंदा तलाश लिया।



✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


15-06-2021

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सोमवार, 14 जून 2021


 

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वो दबी हुई सी ख्वाहिशें.....

 सब्र/ संतोष 



वो दबी हुई सी ख्वाहिशें,,,,




बचपन से सिखलाया सबने,


करो संतोष जो मिल जाये उसमें,


हो तुम नारी, 


ना करो और की नादानी,


पहले सबकी बारी,


जो बच जाए वो तुम्हारी,


अन्न हो या अधिकार,


जो मिल जाये वही संवार,


चाहत ना करना बेमानी,


वो कहलाएगी मनमानी,





वक़्त अब बदल चला है,


सब्र का बांध अब टूट चुका है,


ज़रूरी है अपने अधिकार की चाहत रखना,


कर्तव्य निभा अब और की ख़्वाहिश करना,


अन्न भी हो तो अंतिम का इंतज़ार ना करना,


सबके साथ बैठ गरम भोजन का स्वाद चखना,


अधिकार हो तो आगे बढ़ लेना,


हो कर्तव्य तो निष्ठा से उसे निभाना,


मनमानी भले ना करना,


अपनी ख्वाहिशों को बयां ज़रूर करना,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


14-06-2021

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बुधवार, 9 जून 2021

संकल्प/प्रण/प्रतिज्ञा/इरादा

 संकल्प/प्रण/प्रतिज्ञा/इरादा




हो इरादा मजबूत,

तो राह के रोड़े ,

रोक नहीं सकते,

मंज़िल की ओर बढ़ते,

 हमारे कदम,


कर लो प्रण,

अपने इरादों को पाने,

बस जुट जाना है,

मंज़िल को पाने,

बस आगे बढ़ते जाना है,


लो प्रतिज्ञा,

कि फिर ना पग,

पीछे करोगे,

ठान कर मंज़िल अपनी,

हर कदम आगे बढ़ोगे,


करके संकल्प,

मन ही मन अपने,

आये कितनी भी मुश्किलें,

सबका सामना कर,

लक्ष्य की ओर बढ़ते चलोगे,


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मंगलवार, 1 जून 2021

आंकलन

 आंकलन





परीक्षा की नीयत तारीख पास आते जा रही थी। इधर मुकुल और शिवम दोनों ही अपनी परीक्षा की तैयारी में जोर शोर से लगे हुए थे। मुकुल और शिवम बचपन से ही मेधावी छात्र रहे हैं हमेशा दोनों एक दूसरे से कुछ ही नंबरों से आगे - पीछे होते लेकिन पिछले 3 वर्षों से मुकुल परीक्षा में शिवम से अधिक नंबर लेकर आता और अव्वल रहता। शिवम कुछ नंबरों से मुकुल से पीछे रह जाता। यही वजह थी कि इस वर्ष बोर्ड परीक्षा में भी मुकुल निश्चिंत था कि वो ही अव्वल आएगा। और इसी अतिआत्मविश्वास और आंकलन के साथ मुकुल पढ़ाई के प्रति थोड़ा लापरवाह भी हो गया था। जबकि शिवम अपनी पूरी लगन और निष्ठा से अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया हुआ था। दोनों ने अच्छी तरह परीक्षा दी। आज परिणाम का दिन था। और शिवम ने पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। वहीं अपनी अतिआत्मविश्वास और गलत आंकलन के कारण मुकुल ने प्रदेश में नौवाँ स्थान प्राप्त किया था। परिणाम के साथ ही मुकुल सोच रहा था कि काश वो अपनी योग्यता का आंकलन नहीं कर सिर्फ परीक्षा की तैयारी पर अपना ध्यान केन्द्रित किया होता, तो उसके परीक्षा परिणाम और बेहतर हो सकते थे। 





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


01-06-2021

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