कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,
जब सखियों का साथ था,
उनके साथ हर लम्हा जानदार था,
वो घण्टों साथ मे गप्पें लड़ाना,
रूठना और मनाना साथ था,
बागों में तितलियों संग आंख मिचौली खेलते,
और फूलों की खुशबू का खुमार था,
वो बेफ़िक्र सी हंसी थी,
वो बेबाक़ अंदाज़े बयाँ था,
वो बारिश की बूंदों में भीगना,
वो मंद पवन की बयार में झूमना,
हवाओं संग उलझते लटों संग खेलना,
वो दुपट्टा लहरा के ख़ुद उसमें उलझ जाना,
रात में टिमटिमाते तारों को निहारना,
दूधिया रोशनी बिखेरते चाँद संग ढेरों बातें करना,
कभी दिए उजली लौ संग खेलना,
कभी आईने में खुद को देख शरमा जाना,
औंधे मुँह बिस्तर पर लेटे,
अपनी डायरी के पन्ने भरना,
वो सबसे छिपकर अपने सपनों की दुनिया,
कागज़ पर उकेरना,
बहुत याद आते हैं वो दिन,
और हर पल ये ख़्वाहिश होती,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,
तोषी गुप्ता
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