toshi

apne vajood ki talash me.........
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शनिवार, 28 जुलाई 2018

सहती है डरती है सिसकती है नारी,
जब प्रताड़ित करती उसे दुनिया सारी,

फिर पहचान कर स्वयं की शक्ति ,
नयी ऊर्जा उसमें संचारित होती,

कुचल कर हर दमन का सर,
अब एक नयी कली प्रस्फुटित होती,

खुले आसमाँ में खुद अपनी तकदीर लिखती,
नयी स्फूर्ति नयी हिम्मत से एक नया इतिहास गढ़ती,

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बुधवार, 13 जून 2018

सुकून

                                            सुकून                                              
दूसरा महीना शुरू हो गया था वाणी का। वाणी और विनय बहुत उत्साहित थे अपने पहले बच्चे के जन्म के लिए।लेकिन अभी तक वाणी डॉक्टरी चेकअप के लिए नहीं गयी थी । सासूमाँ के रोज़-रोज़ के उलाहनों से तंग आ चुकी थी वो। आखिर कब तक नहीं जाएगी वो डॉक्टर के पास , यही सोच रही थी वाणी। तभी सासूमाँ की आवाज़ सुनाई दी, अरी! जाती क्यों नहीं डॉक्टर के पास, जब तक डॉक्टर के पास जाएगी नहीं, पता कैसे चलेगा कि लड़का है कि लड़की? अग़र लड़की हुई तो? हमारे खानदान में पहला बच्चा लड़का ही होता है, लड़की नहीं होती। " लड़की होगी तो मार डालोगे क्या...?" वाणी ने लगभग चीखते हुये कहा- और रोते हुये अपने कमरे में चली गई। सासूमाँ को वाणी से इस तरह के जवाब की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। दिन बीतते गए। वाणी की ननद का भी नौवां महीना चल रहा था, कभी भी खुशखबरी मिल सकती थी। रोज़ की तरह वाणी रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी कि ननद के ससुराल से फोन आया, उसके पहला लड़की हुई थी। बड़ी खुशी -खुशी सासूमाँ पूरे घर में बताती फिर रही थी कि उनकी बेटी की पहली लड़की हुई है, उनके घर लक्ष्मी आई है। वाणी के चेहरे पर मंद मुस्कान के साथ अपार संतोष का भाव था। पेट मे होती हलचल को बड़े प्यार से सहलाते हुए वाणी ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा- अब तू सुरक्षित है मेरे बच्चे, अब चाहे तू लड़का हो या लड़की, कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा, और मुझे भी।"

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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

"उन दिनों की वेदना"

"उन दिनों की वेदना"

  अक्सर रेणु रसोई में अपनी हमउम्र भाभी सीमा का हाथ बंटा दिया करती थी लेकिन आज शाम से ही वह सोफे पर लेटी हुई टीवी देख रही थी। सीमा ने अभी रेणु को आवाज़ लगाई ही थी कि अचानक सास ने लगभग डपटते हुए कहा, "आराम करने दो उसे , अभी बाल धोकर आई है।" नई बहु सीमा को भला अभी कहां मालूम था कि "उन दिनों" में उसके ससुराल में रसोई का काम नहीं करते। अभी कुछ दिनों पहले ही तो  उसकी शादी हुई थी। 5 दिनों तक सीमा ने अकेले ही रसोई संभाली। अभी हफ्ता ही बीता था , आज सुबह से सासूमाँ नाराज़ हैं। बार-बार घड़ी पर नज़र डाले हुए है, 8 बज गए अभी तक सीमा अपने कमरे से बाहर नहीं आई है, 8:30 बजे सीमा कमरे से बाहर आई ,सासूमाँ को कुछ बोल पाती उससे पहले ही सासूमाँ का गुस्सा फूट पड़ा " कल इतना क्या ज्यादा काम हो गया कि बहुरानी, कि आज देर से सोकर  उठी।"  सीमा ने थोड़ा झिझकते हुए बताया कि माँ अभी सुबह ही मैने बाल धोये हैं, रसोई में जाना नहीं था तो कमरे में ही आराम कर रही थी। सासूमाँ का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था, बाल धोये हैं तो क्या हुआ , तुम रसोई में नहीं जाओगी तो रसोई का काम कौन करेगा? जल्दी जाकर नाश्ता बनाओ सब इंतज़ार कर रहे हैं, कहते हुए सासूमाँ पूजाघर में जाकर पूजा करने लगी। अवाक सी खड़ी सीमा ने "उन दिनों" की शारीरिक एवं मानसिक वेदना और मन में टीस लिए चुपचाप रसोई की ओर कदम बढ़ा दिए.....

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गुरुवार, 8 मार्च 2018

ज़रूरी है,,, एक पहल,,,,,

हर दिन खास होता है, हो भी क्यों न ,,, हर दिन की शुरुआत  सूरज की नयी किरणों से जो होती है। इसी तरह आज का दिन भी खास है, और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस होने के कारण ये दिन और खास हो गया। सूरज की नयी किरणों के साथ, उम्मीद की नयी किरणें भी जागी, कि सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में भी स्त्रियों की वास्तविक स्थिति में ज़रूर कुछ सकारात्मक बदलाव आएंगे। वास्तिविकता के धरातल पर एक नज़र डालेंगे तो आप पाएंगे कि आज भी छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं। एक ओर जंहा सरकार विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चलाकर स्त्रियों को स्वरोज़गार या महिला समूहों के द्वारा आत्मनिर्भर बनाने प्रयत्न करती हैं वहीं उच्च मध्यम वर्गीय घरों की स्त्रियां आज भी अपनी उच्च शिक्षा और योग्यता के बावजूद सिर्फ इसलिए दहलीज़ के बाहर कदम नहीं रख सकती क्योंकि इसके पहले उस घर की किसी महिला ने नौकरी नहीं की या घर की आर्थिक जिम्मेदारी नहीं संभाली। आज भी इन सम्भ्रांत घरों के पुरुष प्रधान मानसिकता के पीछे घर की बुज़ुर्ग महिलाओं की घोर रूढ़िवादी मानसिकता के चलते कई बहुएं अपनी शिक्षा और योग्यता का ना सही उपयोग कर पाती और ना ही उस योग्यता को निखार पातीं। आज के दौर में सिर्फ आत्मनिर्भर होने या नौकरी करने की मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत नहीं बल्कि कोशिश ये हो कि घर में हर निर्णय पर घर की सभी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए। हर स्तर पर महिलाओं की स्थिति मजबूत करने की ज़रूरत है। लेकिन उससे पहले ज़रूरत है कि वे महिलाएं स्वयं अपनी स्थिति को मजबूत बनाने प्रयास करें। क्योंकि किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति तब तक संभव नहीं जब तक वो स्वयं से प्रेरित ना हों।पुनः  महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,,,,,

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सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

"मजबूरी"

"मजबूरी"

ये कमाने की मजबूरी भी बड़ी निर्दयी होती है साहेब,
ना स्त्री देखती है, ना पुरुष,
कमाई तो सिर्फ एक बहाना है,असल मुद्दा तो घर चलाना है, 

बेटे को उनके दोस्तों जैसी सायकल और,
बेटी को, उसके मनचाहे गुड़ियों से बहलाना है,

पुरुष बन आजीविका के साधनों को जुटाना और,
स्त्री बन उन साधनों से सबको संतुष्ट करना है,

स्त्री हो अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए चंद पैसे जुटाने दहलीज़ के बाहर कदम बढ़ाना है और,
अपने आत्मसम्मान की रक्षा और अपने वजूद को बचाना है,,,,,

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सोमवार, 29 जनवरी 2018

Mona Modern School Sarangarh, ALBELA SAJAN AAYO RE, malhar 2017-18,2

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