मेहनतकश स्त्रियाँ
मेहनतकश स्त्रियाँ
बड़ी मजबूत होती हैं,
ये मेहनतकश स्त्रियां,
सूरज की किरणों की,
ओस की बूंदों पर पड़ने से पहले,
उठ जाती ये स्त्रियाँ,
संवार लेती है अपनी छोटी सी
दुनिया,
झाड़ बुहार लीप कर,
अपना छोटा सा आँगन सजाती,
अपने घर के ज़रूरी काम समेट,
खुद को भी संवारती,
जल्दी जो जाना है उसे काम पर,
घर के बच्चों का सुबह का खाना भी
तैयार करना है,
जिसे खाकर वो दिन भर घर मे रहने वाले हैं,
उन छोटे छोटे बच्चों को
बस इतना पता है,
माँ काम पर जाएगी, तो वापसी में साथ मे,
कुछ खाने का लाएगी,
सभी
घरों से मिले हुए,
खाने की थोड़ी थोड़ी मात्रा,
उसके बच्चों का मन भर देती,
उन
व्यंजनों की खुशबू,
और वो मेहनतकश स्त्री खुश हो जाती,
अपने बच्चों की खुशी देखकर,
छोटी वाली बच्ची तो,
अभी घुटने पर ही चल रही,
और उससे बड़ा दौड़ रहा,
इन दोनों को
संभाल रही सबसे बड़ी,
जो अभी दूसरी में ही तो है,
लेकिन कहाँ जा पाती स्कूल भी,
बहन
भाई को भी तो संभालना है,
मेहनतकश स्त्री लाख हिदायतें देती बच्चों को,
पड़ोस में भी
बोल जाती,
थोड़ा देखना बच्चों को,
अपने दिल के टुकड़ों को ,
दिन भर के लिए छोड़,
फिर
चल पड़ती ,
सूरज की हल्की पड़ती ,
किरणों के साथ,
जहाँ उसकी बाट जोहती उनकी मालकिन,
और साथ ही उस घर की परी ,
जो लगभग उसकी बड़ी बेटी की उम्र की ही थी,
उसे
सजाती-संवारती ,
कभी कभी उस परी में,
अपनी बेटी का भी अक्स देख लेती,
और खुश हो
जाती,
उसकी चोटी बनाती,
उसे कपड़े पहनाती ,
उसके जूते के बंद बाँधती,
उसके हर नखरे
उठाती,
दिन भर उस घर को संवारती,
आखिर उस घर से ही तो जुड़ा है,
उसका अपना घर आँगन,
इस घर को संवारती ,
अपना घर सजाने के लिए,
दिन भर इस घर में खटती,
अपने घर को बनाने
के लिए,
लौटते में मालकिन का दिया हुआ भोजन,
घर ले आती अपने दिल के टुकड़ों के लिए,
जिसे उसकी मालकिन ने दिया था,
उसे खाने के लिये,
एक कौर मुंह मे डाल झटपट ,
रख लेती
उसे अपनी पोटली में,
यह कहकर कि काम बहुत है दीदी,
अभी काम कर लूं, बाद में खाऊँगी,
दीदी जानती और मुस्कुरा देती,
दिन ढले वो लौटती अपने बच्चों के पास,
बच्चे खुश से
लपक पड़ते उसकी पोटली,
और खुश हो एक-एक टुकड़े का स्वाद लेते,
मेहनतकश स्त्री फिर लग
जाती,
अपनी दुनिया सहेजने में,
उसका पति जो उसके काम पर जाने तक,
औंधा मुँह पड़ा था
खाट पर,
जाने कहाँ है,
पर आएगा रात को नशे में धुत्त,
और तार-तार कर देगा उसकी
आत्मा,
फिर भी अगली सुबह ,
सूरज की किरणों के ,
ओस की बूंदों पर पड़ने से पहले,
उठ
जाएगी ये मेहनतकश स्त्री,
और दमकेगी अपनी मेहनत की आभा से,
क्योंकि बड़ी मजबूत होती
हैं,
ये मेहनतकश स्त्रियाँ...
✍️तोषी गुप्ता✍️
24-02-2022
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