लुभावने विज्ञापन
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आज सुबह त्रिपाठी जी लॉन में अपने पौधों को पानी दे रहे थे कि दरवाजे पर ऑटो आकर रुकी। देखा तो वसुधा मुरझाया से चेहरा लेकर ऑटो से उतर रही थी। किसी अनिष्ट की आशंका से त्रिपाठी जी ने अपनी पत्नी मीरा को आवाज देकर बुलाया तब तक वसुधा अंदर आ चुकी थी। मीरा जी ने वसुधा को गले से लगा लिया तो वसुधा फ़फ़क कर रो पड़ी।मीरा जी ने वसुधा को संभाला और अंदर ले गई।
कुछ समय पश्चात वसुधा ने सारी बातें अपने माता-पिता को बताई। वसुधा की शादी एक मेट्रीमोनियल साइट के माध्यम से हुई थी। दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन सौरभ की प्रोफाइल देखकर सब बहुत प्रभावित हुए थे। वसुधा भी सौरभ के परिवार वालों को बहुत पसंद आई और जल्दी ही उसकी शादी वसुधा से हो गई। समय बहुत हंसी खुशी व्यतीत हो रहा था और शादी के महज़ कुछ ही महीनों बाद वसुधा इस तरह घर लौट आई।
आज त्रिपाठी जी बहुत दुखी होकर सोच रहे थे काश उन्होंने सिर्फ लुभावने विज्ञापन पर भरोसा ना करके सौरभ के चरित्र और व्यवहार के बारे में भी थोड़ा पता किया होता तो आज उनकी बेटी वसुधा भी सुखी जीवन व्यतीत कर रही होती।
✍️तोषी गुप्ता✍️
18-01-2022
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