नई जेनरेशन
नई जेनरेशन
शिवानी अपने पति के साथ बैंगलोर में रहती थी। उसे ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी मिली तो अपने मम्मी पापा को सरप्राइज़ देने अपने मायके आ गई। उसने धीरे से घर का मुख्य दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई। अंदर का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था चुपके से शिवानी अंदर गई। देखा हॉल में कोई नहीं था लेकिन माँ पापा के कमरे से आ रही आवाज़ों को सुनकर शिवानी वहीं ठिठक गई।
"पूनम, जितना ये घर मेरा है उतना तुम्हारा भी है। तो इस घर के प्रति तुम्हारी भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है।"
"देखो प्रकाश, मैं पहले भी कह चुकी हूँ, कि घर के सारे खर्चे तुम्हें ही करने होंगे। मैं मानती हूँ कि इस घर के प्रति मेरी भी जिम्मेदारी है और वो मैं अच्छे से निभा रही हूँ, लेकिन मैं अपनी सैलरी ऐसे घर के खर्चों में नहीं लगा सकती"
"पूनम , तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही। अभी तक तो मैंने कभी तुमसे तुम्हारी सैलरी का एक भी रुपये खर्च करने के लिए नहीं कहा। अब जब मेरा कारोबार कोरोना की वजह से धीमा हो गया है तो घर के लोन की किश्तें चुकाने ही तो बोल रहा हूँ।" प्रकाश ने एक बार फिर पूनम को समझाने की कोशिश की।
"मैंने एक बार कह दिया मैं अपनी सैलरी नहीं दूंगी तो नहीं दूंगी।" कहते हुए पूनम गुस्से से कमरे से बाहर हॉल में आ गई।
हॉल में अचानक शिवानी को देख पूनम हतप्रभ रह गई और थोड़ा झेंपते हुए कहा, "अरे बेटा, तुम कब आई, पता ही नहीं चला।" खुशी से पूनम ने अब शिवानी को गले से लगा लिया।
"बस अभी-अभी पहुंची माँ, और आपकी और पापा की बातें सुनकर यहीं रुक गई।"
"अरे, तू भी क्या लेकर बैठ गई।अभी आई है, जा जाकर फ्रेश हो जा। मैं तेरी पसंद का कुछ बनाकर लाती हूँ।"
तब तक प्रकाश भी हॉल में आ गए थे। शिवानी दौड़कर पापा के गले लग गई। फिर माँ की तरफ मुड़ते हुए कहा,
"अभी नहीं माँ, पहले मुझे आप लोगों से बात करनी है। माँ , पापा बिल्कुल सही कह रहे हैं। घर के फाइनेंशियल मैटर में भी आपका योगदान होना चाहिए।"
"पर बेटा, घर चलाना घर के पुरुष का काम होता है।"
"माँ आप कब से ये सब मानने लगीं। पापा भी तो घर के छोटे-मोटे काम में आपकी मदद करते हैं न। तो घर चलाने में आप उनकी मदद क्यों नहीं कर सकतीं।"
शिवानी ने आगे कहा,"अब मुझे और विशाल को ही ले लो। हम दोनों ही नौकरीपेशा हैं, और घर के सारे खर्चे आपस में मिलकर करते हैं , वहीं घर के सारे काम भी मिलकर करते हैं। घर फोन, वाई-फाई, टीवी रिचार्ज, गैस रसोई के खर्चे और कार की किश्तें मैं भर देती हूँ, तो फ्रिज़, टीवी की किश्तें और घर के लोन विशाल भर देता है। इस तरह हम दोनों ही घर के खर्चों में बराबर भागीदार रहते हैं। वहीं मेरी शिफ्ट सुबह जल्दी होने के कारण विशाल सुबह मेरी काम में मदद करते हैं। और लंच प्रिपेयर करते हैं। तो ऑफिस से आने के बाद रात का खाना मैं तैयार करती हूँ। इस तरह हम दोनों ही हर काम मिलकर करते हैं। आख़िर घर हम दोनों से है।"
पूनम बहुत शांति से शिवानी को सुन रही थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा,"बहुत बड़ी और समझदार हो गई है मेरी बेटी।"
"लाओ, कहाँ सिग्नेचर करने हैं। घर का लोन चुका दो और अब से मैं भी घर के खर्चों में तुम्हारा बराबर साथ दूँगी। " मुस्कुराते हुए पूनम ने प्रकाश से कहा।
"इसी बात पर मैं अपनी बेटी के लिए बढ़िया अदरक वाली चाय बनाकर लाता हूँ।"
"नई जेनरेशन कितनी समझदार है आज ये पता चल गया।" कहते हुए पूनम ने शिवानी को गले से लगा लिया।
शिवानी ने कहा, "ये नई जेनरेशन की नई सोच है माँ" और तीनों हँस पड़े।
✍️तोषी गुप्ता✍️
19-01-2022
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