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बुधवार, 19 जनवरी 2022

नारी सशक्तिकरण और सक्षमता के आयाम

 *नारी सशक्तिकरण और सक्षमता के आयाम*



सहती है, डरती है ,सिसकती है नारी,


जब प्रताड़ित करती उसे दुनिया सारी,


फिर पहचान कर स्वयं की शक्ति,


नई ऊर्जा उसमें संचारित होती,


कुचलकर हर दमन का सर,


तब एक नई कली प्रस्फुटित होती,


खुले आसमाँ में खुद अपनी तकदीर लिखती,


नई स्फूर्ति, नई हिम्मत से एक नया इतिहास गढ़ती,




सच ही है, स्त्री स्वयं में इतनी सशक्त हैं कि वह सृष्टि के समस्त सकारात्मक पहलुओं का विकास कर सकती है, वहीं सृष्टि में व्याप्त समस्त नकारात्मकता का समूल नाश कर सकती है। ज़रूरत है तो स्त्री को स्वयं को पहचानने की। उसे स्वयं में प्रवाहित होती ऊर्जा को पहचानने की और समय आने पर उसका उचित प्रयोग करने की  नितांत आवश्यकता है। और ये हम नारियों की स्वयं की जिम्मेदारी है कि हम अपनी शक्ति को , अपनी ऊर्जा को, अपनी सक्षमता को अक्षुण्ण रखें और उसे समृद्ध करें। और ये संपूर्ण बातें तभी संभव है जब हम अपनी सोच में स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को शामिल करें , उसे स्वीकार करें और उसे अनुभव करें, क्योंकि हर अच्छे कार्य की शुरुआत सोच से होती है, और अब इन सबको अपनी सामान्य सोच में शामिल करने का वक्त आ गया है। आज के वक्त की मांग भी यही है, कि यत्र, तत्र, सर्वत्र, स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को प्रोत्साहित किया जा रहा है।




प्रकृति ने जब स्त्री और पुरुष की रचना की तब दोनों को समान बनाया, लेकिन कोमलांगी होने के कारण सदैव स्त्री कमतर आंकी जाती रही, और उस सोच का असर यह हुआ कि कदम कदम पर स्त्री को पुरुषोचित सोच का शिकार होना पड़ा। इतिहास में वैदिक काल को स्त्रियों का स्वर्णयुग माना जाता है जहाँ स्त्रियां पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर, शिक्षा, राजधर्म , वैदिक कार्य आदि सभी में पुरुषों की समान भागी हुआ करती थीं। लोपामुद्रा, घोषा, गार्गी, मैत्रेयी, अपाला ऐसे ही न जाने कितनी विदुषियों ने भारतीय संस्कृति में अपनी अक्षुण्ण छाप छोड़ी है, लेकिन समय बितने के साथ और भारतीय संस्कृति में विदेशी संस्कृतियों के आगमन के साथ कि स्त्रियों की स्थिति भारतीय समाज में बदलने लगी। जहां स्त्रियों को अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए घर में कैद होना पड़ा और वहीं से स्त्रियों की दयनीय स्थिति का प्रारंभ हुआ। लेकिन समय बदलने के साथ भारतीय नारियों की स्थिति में भी परिवर्तन शुरू हुआ। रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, रानी अहिल्याबाई होल्कर, जीजा बाई, रानी कर्णावती, रानी पद्मावती, रानी रुद्रम्मा देवी, रानी अवंति बाई आदि जैसी भारतीय वीरांगनाओं ने भारत के इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय संस्कृति की सदैव रक्षक रहीं। वहीं सावित्रीबाई फुले, पंडित रमाबाई, बहिन सुब्बालक्ष्मी, गंगाबाई, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजनी नायडू  आदि जैसी महिलाओं ने आधुनिक भारत में स्त्रियों को उनके यथोचित अधिकारों को दिलाने के लिए अनेक समाज सुधारक कार्य करके समाज में स्त्रियों की स्थिति सुधारने सकारात्मक कदम उठाए जिसका असर यह हुआ कि विश्वपटल में स्त्री क्रांति विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ और जगह जगह स्त्री सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने लगे। वर्तमान में भारतीय महिलाएं सभी क्षेत्रों में पूरी दुनिया में परचम लहरा रही हैं , कल्पना चावला, चंद कोचर, अमृता प्रीतम, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल, किरणबेदी, अरुंधति रॉय, साइना नेहवाल, नैना लाल किदवई, ऐश्वर्या रॉय जैसी महिलाओं ने स्वयं को विश्वपटल पर साबित कर अनेकानेक महिलाओं की प्रेरणा बनीं।


 


सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहराने के बाद भी स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता की राह में अभी ढेरों समस्याएं बनी हुई हैं। अपने आप को समाज में साबित करने और अपनी जगह बनाने में उसे आज भी कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। ऐसी ही कुछ समस्याओं और उनके समाधान के बारे में हम आज प्रकाश डालेंगे।



उच्चशिक्षा की प्राप्ति :- सामान्य स्तर पर नारी शिक्षा पर क्रियान्वित कई योजनाओं के चलते अब वर्तमान में लोग नारी शिक्षा के प्रति तो जागरूक हो गए हैं लेकिन अभी इस जागरूकता का असर सिर्फ सामान्य शिक्षा तक ही है। उच्चशिक्षा के लिए स्त्रीयों की राहें अभी भी मुश्किल ही हैं। आज भी उच्चशिक्षा के लिए घर से दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करना कई स्त्रियों के लिए मुश्किल ही है।



समाधान :- समाज में जड़ों तक जाकर जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। जैसे कि नारी शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किया गया वैसे ही अब नारी उच्च शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। लोगों को अब यह समझाए जाने की आवश्यकता है वर्तमान महंगाई के दौर में जहां एक व्यक्ति की आय से घर चलाने में परेशानी हो रही है ,भविष्य में नितांत आवश्यक है, कि घर में एक से अधिक आय के स्त्रोत हों। और यदि घर की स्त्री उच्चशिक्षित हो तो वह घर में आय के स्त्रोत का भी जरिया बन सकती है। स्वयं स्त्री को यह समझने की ज़रूरत है कि सिर्फ साक्षर होना या सामान्य शिक्षा ग्रहण करना बस आज के परिवेश में आवश्यक नहीं बल्कि उच्चशिक्षा प्राप्त कर अब उसे आय के स्त्रोत का जरिया भी उसे बनना होगा।



तकनीकी प्रशिक्षण :- तकनीकी प्रशिक्षण वाले क्षेत्रों में आज भी स्त्रियों की कम पहुँच है, क्योंकि सामान्यतः स्त्रियों को तकनीक के मामले में पुरुषों से कमतर आंका जाता है जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं। भारत में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में टेसी थॉमस, ऋतु करिधल, परमजीत खुराना, मुथैया वनिता जैसी महिलाओं ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान दिया है, लेकिन इन सबके बाद भी तकनीकी प्रशिक्षण वाले क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति नगण्य रहती है।



समाधान :-  शालेय स्तर से ही लड़कियों को तकनीकी शिक्षा लड़कों के साथ ही और लड़कों के बराबर ही दी जाए। इससे लड़कियों में बचपन से ही तकनीकी सूझ उन्नत होगी और लड़कों के साथ और लड़कों के बराबर ही तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के कारण लड़कों में भी इस सोच का विकास होगा कि लड़कियां भी तकनीकी प्रशिक्षण में लड़कों से कहीं काम नहीं है। लड़के और लड़कियों की इस उन्नत सोच और सूझ का असर भविष्य में दिखेगा जब लड़कियां तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर वो बड़े पदों पर आसीन होंगीं।


घर के प्रति जिम्मेदारी :- महिलाओं की सक्षमता में बड़ा हाथ परिवार के सहयोग का होता है ऐसे में महिलाओं की जिम्मेदारी घर के प्रति और अधिक बढ़ जाती है और वो बाहर और घर के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए घर के प्रति और भी संवेदनशील हो जाती है। कई बार ये संवेदनशीलता स्त्री सक्षमता की कमज़ोर कड़ी साबित होने लगती है।


कामकाजी महिलाओं को दोहरी जिम्मेवारी का निर्वहन करना होता है। ऐसी स्थिति में कभी बाहर की तो कभी घर की जिम्मेदारियां हावी हो जाती हैं।



समाधान :- यदि स्त्री स्वयं चाहे तो इस मुश्किल राह से वह स्वयं भी बाहर निकल सकती है। स्त्रियों का चीजों और रिश्तों के प्रति संवेदनशील होना उसका स्वभाव है। लेकिन ये स्त्री को स्वयं करना होगा कि किसी भी रिश्ते को वह अपनी कमजोरी ना बनने दें बल्कि उसको अपनी शक्ति बनाए।



सुरक्षा :- वैसे तो आजकल स्त्री सुरक्षा के हर संभव उपाय हर कदम पर किये जा रहे हैं, लेकिन फिर भी महिलाओं को अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहना पड़ता है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार जहाँ देश में 8 करोड़ महिलाएं यौन उत्पीड़न का सामना कर रही हैं। हर 15 मिनट में 1 महिला छेड़छाड़ की शिकार होती है और हर 29 मिनट पर 1 महिला के बलात्कार का मामला होता है। ये तमाम प्रकार की घटनाएं स्त्री सक्षमता को प्रभावित करती है।



समाधान :- स्त्री सुरक्षा के लिए स्वयं स्त्री को सजग तथा सक्षम रहना होगा। एक स्त्री/लड़की को दूसरी स्त्री/लड़की के लिए मजबूत सहारा बन के आगे आना पड़ेगा। अक़्सर ये देखा गया है कि एक स्त्री पर हो रहे गलत हरकत पर दूसरी मौन रहती है जबकि ऐसी स्थिति में दूसरी स्त्री को पहली स्त्री का साथ देकर विरोध की आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। साथ ही लड़कियों/ महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर भी सीखना चाहिए जिससे वक्त आने पर वो स्वयं अपनी रक्षा कर सके।



पुरुषप्रधान क्षेत्र:- आज भी कई क्षेत्रों को समाज में पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता है, और जहां आज भी स्त्रियों को पहुंचाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, फिर चाहें वो लड़ाकू विमानों की पायलट गुंजन सक्सेना हो या प्रसिद्ध उद्यमी शोभना भरतिया। सभी को अपने क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ऐसे पुरुष प्रधान क्षेत्र में महिलाओं की कम उपस्थिति है।



समाधान :- स्त्रियों को स्वयं कोशिश करनी चाहिए कि वो हर परिस्थिति में हर मुश्किल का सामना कर सके चाहे वो उस समय अकेली लड़की हो या फिर कुछ ही लड़कियां हों। और ये भी , कि लड़कियाँ हर परिस्थिति में हर मुश्किल कार्य कर सकती हैं। सृष्टि ने ऐसा बनाया है कि वह हर संभव कार्य कर सकती है और किसी भी मामले से वह पुरुषों से कमतर नहीं है। तो चाहे कोई कार्य पुरुष प्रधान क्यों न हो , बुद्धि और श्रम दोनों ही मामले में वो उस कार्य को कर सकती है।



राजनीति /प्रशासनिक/निगम क्षेत्र :- पहले स्त्रियां घर के बाहर जाकर साधारण कार्य करती थीं। जिसमें उनको किसी पुरुष के निम्न कर्मचारी के रूप में कार्य करना होता था। लेकिन अब स्त्रियां हर क्षेत्र में उच्च अधिकारी के रूप में भी कार्य कर रहीं है। राजनीति/प्रशासनिक/निगम क्षेत्रों में भी वो अब प्रमुख के रूप में कार्य कर रही हैं, जहां उन्हें यदा कदा पुरुषोचित अहम का शिकार होना पड़ता है। कहीं पुरुषों के मुकाबले कम वेतन तो कहीं यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है।इसलिए अभी भी महिलाओं की भागीदारी जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है।



समाधान:- स्त्रियों को अपने व्यक्तित्व के हर पहलू का निखार करना होगा। साथ ही उन्हें स्त्रियों के अधिकारों एवं कानूनी सुविधा एवं सुरक्षा की भी जानकारी होनी चाहिए, जिससे कि मुश्किल समय में स्त्री स्वयं अपनी रक्षक पहले बन सके।



महिलाओं का पारस्परिक द्वेष :- अक़्सर ये देख गया है कि महिलाएं ही महिलाओं के प्रति दुर्भावना रखती है। एक महिला ही दूसरी महिला की सबसे बड़ी दुश्मन साबित होती हैं और एक दूसरे की राह में रोड़ा अटकाती हैं। चाहे घर के अंदर हो या फिर घर के बाहर , वक औरत ही दूसरी औरत की सबसे बड़ी प्रतिद्वन्दी नज़र आती हैं। स्त्रियों के इन स्त्रियोचित व्यवहार के कारण भी स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री सक्षमता प्रभावित होती है।



समाधान:- स्त्री जागरूकता ही इसका एकमात्र उपाय है। महिलाओं में आपसी दुर्भावना को समाप्त कर या कम करके ही स्त्री सम्पूर्ण विश्व पटल पर शीर्ष में होंगी इस बात को स्त्रियों को स्वयं समझना होगा और उसी रणनीति के आधार पर ही कार्य करना होगा।  



समाज में व्याप्त और भी कारक हैं जो स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को सीधे प्रभावित करते हैं। लेकिन अब वक्त है इन समस्याओं का समाधान कर स्त्री  स्वयं अपनी सक्षमता को मजबूत करे। भारत में यदि हम स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री सक्षमता की बात करें तो भारत में शासन द्वारा बहुत सारे सशक्तिकरण और सक्षमता की योजनाएँ चलाई जा रही हैं और उसका लाभ भारत की हर स्त्री तक पहुँचाएं जाने का प्रयास शासन कर रही है लेकिन यह तभी संभव है जब स्त्री स्वयं अपनी सशक्तिकरण और सक्षमता की आवश्यकता को पहचाने और इस ओर पहल करे। स्त्रियों  के लिए सारा आसमान खुला हुआ है, ज़रूरत है तो बस उन्हें स्वयं के आत्मविश्वास को पहचान कर आगे बढ़ने की । और जिन स्त्रियों ने ज़िन्दगी में स्वयं एक मुकाम हासिल कर लिया है ये उनका भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे अन्य स्त्रियों की प्रेरणास्त्रोत बनकर उन्हें सशक्त बनने, सक्षम बनने में अपनी महती भूमिका निभाएं । तभी एक सक्षम नारी वर्ग का विकास हो सकेगा। हर स्तर पर नारी को स्वयं की महत्ता स्वीकार करनी होगी और यह मानना होगा कि हम सशक्त हैं, और सक्षम होना हमारी स्वयँ की जिम्मेदारी है।




✍️तोषी गुप्ता✍️


18-02-2021

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