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मंगलवार, 15 मार्च 2022

अब सुधार लिया खुद को

 अब सुधार लिया खुद को




बचपन से अब तक,


ज़िन्दगी में कई मोड़ आये ऐसे,


जब लोगों की नज़र से ,


लगता  है कि मैं ग़लत हूँ,


और फिर मैं सुधार लेती खुद को,




भरी महफ़िल ठहाकों से गूँज पड़ी,


जब किसी बात पर,


मैं भी अपनी हंसी रोक ना सकी,


अचानक किसी ने टोका,


इतनी ज़ोर से लड़कियाँ नहीं हंसती,


सुधार लिया खुद को,


अब हर बात पर ,


केवल मुस्कुरा देती हूँ,,,




 बैठ कर सारा परिवार साथ,


चर्चा चल रही थी ख़ास,


बोल पड़ी अचानक मैं भी,


दे डाली अपनी भी राय,


अचानक किसी ने टोका, 


बड़ों के बीच में नहीं बोलते,


सुधार लिया ख़ुद को,


अब जब कोई दूसरा कोई फैसला करे, 


चुपचाप मान लेती हूँ ,




दिन सर पर चढ़ आया,


सबकी चाय से शुरू,


नाश्ते के बाद ,


अब भोजन का समय भी होने को था,


सोचा एक रोटी पहले खा


सुबह से तेज होती भूख को शांत कर लूँ,


अचानक किसी ने टोका,


घर के बड़ों को खिलाने के पहले ,


खुद नहीं खाते हैं,


सुधार लिया खुद को,


अब ज्यादा भूख लगे ,


तो पानी पीकर भूख शांत कर लेती हूँ,




सबने अपनी पसंद के कपड़े लिए,


मैं भी लपक ली गहरे रंग की साड़ी एक,


कांधे पर डाल निहार रही थी खुद को,


अचानक किसी ने टोका,


उम्र के हिसाब से पहना करो,


इतने गहरे रंग इस उम्र में अच्छे नहीं लगते,


सुधार लिया अब खुद को,


अब बिना आईने में खुद को देखे,


ओढ़ लेती हूँ बस ,


कोई बेरंग सी साड़ी,




हर पल, हर कदम,


अचानक टोके जाने के बाद,


खुद को सुधार(?) लेने के बाद,


अब यही लगता है,


जब सब कुछ ग़लत ही है,


तो सुधारा कैसे जा सकता है?





✍️तोषी गुप्ता✍️


14-03-2022

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