बहाना
बहाना
रहो लाख तुम व्यस्त ,
अपने कार्यों में,
जब मैं आवाज़ लगाऊं,
सुनो, ज़रा मेरा मोज़ा ढूंढ देना,
मिल नहीं रहा,
और हाँ,
रुमाल भी नहीं मिल रहा,
और एक ही पल में,
तुम दौड़ी चली आती,
कपड़ों के ढेर में,
सलीके से वहीं रखा,
मोज़ा और रुमाल,
मेरे हाथों में थमा देती,
बहाना मेरा,
तुम्हें बुलाने का,
तुम भी ख़ूब समझती,
शायद मन ही मन,
मेरी इस आवाज़ का इंतज़ार भी करती,
तभी तो ,
मेरी एक आवाज़ पर ही,
सारा काम छोड़,
तुम मेरे सामने होती,
सब कुछ समझते हुए भी,
तुम्हारा,
ना समझने का ये अंदाज़,
दिल को भा जाता,
और नया बहाना बना,
तुम्हें बुलाने का,
मेरा इरादा,
और भी पक्का हो जाता,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
18-04-2022
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