toshi

apne vajood ki talash me.........
Related Posts with Thumbnails

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

अनन्त यात्रा

 




अनन्त यात्रा




क ख ग से शुरू करके ,


चल पड़ी एक अनंत यात्रा,


बढ़ते - बढ़ते जाना,


ये तो है बस अथाह यात्रा,


नित नयी सीख लेकर,


जब पहुँची किसी मंज़िल पर,


लगा कि यही तो वो मज़िल है,


जहाँ पहुँचना चाहा था कभी,


लेकिन ये क्या,


ऊपर देखा तो जाना,


ये तो अगली मंज़िल की,


पहली पायदान ही है,


आगे लंबा सफ़र अभी बाक़ी है,


फिर चल पड़ती,


उस नयी मंज़िल की,


राह पर,


नयी सीख लेकर,


नित नये ज्ञान लेकर,


ख़ुद का कद बढ़ाती,


नित नये ज्ञान के आभूषण से,


ख़ुद को सँवारती,


अब किसी मंज़िल पर पहुँच,


देख लेती हूँ ऊपर की ओर,


और समझ जाती हूँ,


कि मंज़िल ये नहीं,


ये तो सिर्फ राह में आया पड़ाव है,


मंज़िल तो अभी दूर है,


और इस राह पर अभी, 


आगे बढ़ते जाना है,


अपने ज्ञान का भंडार बढ़ा,


अभी उसे औरों तक,


पहुँचाना है,


अपने अनुभव से लोगों में,


ज्ञान भी बाँटते जाना है,


साथ ही निरंतर,


इस अनन्त अथाह यात्रा पर,


आगे बढ़ते जाना है,





✍️तोषी गुप्ता✍️


25-03-2022

Read more...

दिन में तारे नज़र आए

 दिन में तारे नज़र आए




सुनीता का मोबाइल बज रहा था। अपना चश्मा संभालते सुनीता ने मोबाइल उठाया। 




"हैलो, कौन?"




"जी, मैं  ***   से बोल रहा हूँ" (जिस कंपनी का सिम सुनीता जी उपयोग करती थी, उस कंपनी का नाम लेते हुए सामने वाले ने कहा ) "




"हाँ, कहिए।"




"जी, मैम, आपके सिम की एक्सपायरी हो चुकी है, इसका रिन्यूअल करवाना होगा, नहीं तो आपका सिम ब्लॉक हो जाएगा।"




सुनीता जी अब घबराते हुए बोली "जी,बंद हो गया तो मैं अपने बच्चों से बात कैसे करूंगी" 




"घबराइए नहीं, सिम रिन्यूअल करवा लीजिए।"




"लेकिन कैसे, मैं तो कहीं आती जाती भी नहीं"




"नहीं मैम, आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं, ये आपके मोबाइल से ही रिन्यू हो जाएगा, बस जैसा मैं बताते जाऊं वैसा करते जाइये।"




"जी, बताइए"




फिर उस आदमी ने प्लेस्टोर से कोई एप्पलीकेशन डाउनलोड करवाया और मैसेज में आये ओटीपी देने के लिए कहा।




तभी अचानक सुनीता जी की बेटी का फोन कॉल वेटिंग में दिखाने लगा। 




सुनीता जी ने देखा और उस आदमी का कॉल होल्ड कर अपनी बेटी का कॉल कनेक्ट किया। 




"क्या हुआ माँ, आप नेट बैंकिंग क्यों यूज़ कर रहीं।" बेटी ने पूछा,




"नहीं बेटा, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, हाँ,,,, एक कॉल आया है,,,,," फिर सुनीता जी ने उस कॉल वाली पूरी घटना बता दी। 




"माँ, आप तुरंत उसका कॉल कट करो और उसका नम्बर ब्लॉक करो, और जिस नम्बर से कॉल आया है वो मुझे बताओ, मैं आपको थोड़ी देर में कॉल करती हूँ। 




दरअसल अपनी माँ का नेट बैंक अकाउंट उसने अपने नम्बर से कनेक्ट कर रखा था। और सुनीता जी के खाते से अमाउंट ट्रांसफर का ओटीपी उनकी बेटी के मोबाइल नंबर पर गया था। फिर उसने उस कॉल के खिलाफ एक शिकायत साइबर सेल में की। 




इधर सुनीता जी अपनी बेटी के कहे अनुसार उस आदमी के कॉल को कट कर उसे ब्लॉक कर चुकी थी। थोड़ी देर बाद उनकी बेटी का कॉल आया, तब उसने सुनीता जी को सारी बातें बताई कि किस तरह आज वो एक ठगी का शिकार होते होते बच गई। पूरी बात सुनकर सुनीता को दिन में तारे नज़र आने लगे। बेटी ने फिर ऐसे ठगी से बचाव के कई तरीके बताए, तब थोड़ा संभलते हुए सुनीता जी ने अपनी बेटी को आश्वासन दिया कि आगे वो पूरी सावधानी रखेगी और किसी के द्वारा बोले गए किसी भी ऐप को ना तो अपने मोबाइल में डाउनलोड करेगी, ना ही कोई ओटीपी किसी को देगी। आज उनकी बेटी की सूझ-बूझ से उनका बैंक एकाउंट सुरक्षित है यह सोचकर सुनीता जी ने राहत की सांस ली।






✍️तोषी गुप्ता✍️


24-03-2022

Read more...

बुधवार, 16 मार्च 2022

एक कप चाय की प्याली

 एक कप चाय की प्याली




ससुराल में निशा का पहला दिन उसकी परीक्षा का दिन ही था। सुबह 6 बजे नहा धोकर ही किचन में आने का फ़रमान उसे कल रात ही दे दिया गया था। प्रिय के साथ पहली रात की खुशी के साथ निशा को सुबह जल्दी उठने की भी चिन्ता थी। फ़रमान के अनुसार ही निशा सुबह 6 बजे ही नहा धोकर नीचे किचन पहुँच गई। निशा का कमरा पहली मंजिल पर तो किचन और हॉल भूतल पर था । ससुराल में पहले भगवान की पूजा करने का नियम था उसके बाद बाकी के काम, तो सारी पूजा विधि से पहले पूजा की गई और उसे सिखाया भी गया। फ़िर दौर शुरू हुआ सुबह की चाय का। सासूमाँ और ससुर जी की चाय पहले बनी। निशा को भी साथ में चाय लेने बोला गया, उसका भी मन हुआ चाय पीने का पर संकोच के कारण उसने ना कर दी और उसे इंतज़ार भी था अपने पति विकास का। धीरे-धीरे एक - एक करके उसकी ननद, फिर दोनों देवर उठ के आये। सबके लिए बारी - बारी से चाय बनाती निशा को भी अब चाय की तलब होने लगी।उसे सुबह चाय पीने की आदत थी लेकिन वो तो विकास का इंतज़ार कर रही थी।अब तक तो उसने काम वाली बाई को भी चाय बनाकर पिला दी। विकास अपनी नींद पूरी करके ही आये। डायनिंग हॉल में विकास के साथ निशा भी अपनी चाय की प्याली ले आई। चाय की पहली चुस्की से मानो उसकी जान में जान आई। आज पहली बार उसे अहसास हुआ कि एक चाय की प्याली कितनी अहम होती है।  विकास ने चुपचाप अपनी चाय ख़त्म की। फिर तैयार हो ऑफिस के लिए निकल गया। शाम को ऑफिस से आया तो निशा के सर में हल्का दर्द था। निशा ने विकास को बताया कि यदि वो सुबह समय पर चाय ना पिये तो उसे सरदर्द होने लगता है। विकास ने उसे दावा देकर सुला दिया, और खुद थोड़ा मार्केट से आने की बात कहकर चला गया। वो आया तो निशा सो चुकी थी। अगली सुबह विकास ने निशा को उठाया। निशा ने देखा कि विकास चाय की प्याली हाथ में लिए खड़े हैं। विकास ने कहा, "चलो जल्दी से चाय पी लो, फिर बाकी के काम करना।" निशा ने आश्चर्यचकित हो के विकास से पूछा। विकास ने इलेक्ट्रिक टी मेकर की ओर इशारा किया और मुस्कुराते हुए बोले, अब जल्दी से चाय खत्म करो, और तैयार होके नीचे जाओ, माँ चाय के लिए तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।" निशा की आँखों में खुशी के आँसू के साथ विकास के लिए आदर के भाव भी बढ़ गए।




✍️तोषी गुप्ता✍️


15-03-2022

Read more...

मंगलवार, 15 मार्च 2022

अब सुधार लिया खुद को

 अब सुधार लिया खुद को




बचपन से अब तक,


ज़िन्दगी में कई मोड़ आये ऐसे,


जब लोगों की नज़र से ,


लगता  है कि मैं ग़लत हूँ,


और फिर मैं सुधार लेती खुद को,




भरी महफ़िल ठहाकों से गूँज पड़ी,


जब किसी बात पर,


मैं भी अपनी हंसी रोक ना सकी,


अचानक किसी ने टोका,


इतनी ज़ोर से लड़कियाँ नहीं हंसती,


सुधार लिया खुद को,


अब हर बात पर ,


केवल मुस्कुरा देती हूँ,,,




 बैठ कर सारा परिवार साथ,


चर्चा चल रही थी ख़ास,


बोल पड़ी अचानक मैं भी,


दे डाली अपनी भी राय,


अचानक किसी ने टोका, 


बड़ों के बीच में नहीं बोलते,


सुधार लिया ख़ुद को,


अब जब कोई दूसरा कोई फैसला करे, 


चुपचाप मान लेती हूँ ,




दिन सर पर चढ़ आया,


सबकी चाय से शुरू,


नाश्ते के बाद ,


अब भोजन का समय भी होने को था,


सोचा एक रोटी पहले खा


सुबह से तेज होती भूख को शांत कर लूँ,


अचानक किसी ने टोका,


घर के बड़ों को खिलाने के पहले ,


खुद नहीं खाते हैं,


सुधार लिया खुद को,


अब ज्यादा भूख लगे ,


तो पानी पीकर भूख शांत कर लेती हूँ,




सबने अपनी पसंद के कपड़े लिए,


मैं भी लपक ली गहरे रंग की साड़ी एक,


कांधे पर डाल निहार रही थी खुद को,


अचानक किसी ने टोका,


उम्र के हिसाब से पहना करो,


इतने गहरे रंग इस उम्र में अच्छे नहीं लगते,


सुधार लिया अब खुद को,


अब बिना आईने में खुद को देखे,


ओढ़ लेती हूँ बस ,


कोई बेरंग सी साड़ी,




हर पल, हर कदम,


अचानक टोके जाने के बाद,


खुद को सुधार(?) लेने के बाद,


अब यही लगता है,


जब सब कुछ ग़लत ही है,


तो सुधारा कैसे जा सकता है?





✍️तोषी गुप्ता✍️


14-03-2022

Read more...

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

एक जिम्मेदार इंसान

 *एक जिम्मेदार इंसान*



जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद अक़्सर, 


थक सी जाती हैं ज़िन्दगी,


मशीन से चलते हाथ,


थम से जाते हैं,


जिम्मेदारियों के बोझ से कंधे,


झुक से जाते हैं,


खींच जाती है चेहरे पर,


झुर्रियों की लकीरें,


वक़्त से पहले ही,


उसमें झलकने लगती है,


उम्र के ढलान की निशानियाँ,


उस वक्त भी वो,


हाथों में हाथ बांधे,


सोचता रहता है,


लेखा जोखा करता रहता है,


क्या बचा है और,


जो वो कर नही पाया,


और जो किया है,


उसे और अच्छे से,


कैसे निभा पाता,


सबकी थाली में मीठा देते देते,


वो ये अहसास ही नहीं कर पाता,


कि उसकी थाली में तो,


नमक भी कम ही रह गया,


एक जिम्मेदार इंसान,


अब भी खुश है,


क्योंकि उसके अपने,


उनकी थाली में मिले,


मीठे से खुश हैं,




✍️तोषी गुप्ता✍️


11-03-2022

Read more...

गुरुवार, 10 मार्च 2022

ज़िन्दगी का कैनवास***

ज़िन्दगी का कैनवास



बिखर सी गई मानो ज़िन्दगी


जब आइने के सामने


खुद को देखा


लगा मानो


पत्थर से शीशा तोड़


हज़ार टुकड़ों में फेंक दी गई हो


ख़्वाहिशें मेरी


सपने मेरे


हथेलियों से ढांप लिया 


अपना चेहरा


जो आज


मेरे ही लिए था 


अनजाना,,, अनदेखा,,,


ना  देख पाने लायक


वो आँखों का गल जाना


नाक का खिसक जाना


होंठो का पता न चलना


और,,,, चेहरे में सिकुड़न


लगा जैसे


चेहरा नहीं


दिल ही किसी ने


बेरूप कर दिया हो


दिल से ना खेलने देने का


ये अंजाम होगा 


कभी सोचा ना था


और किसी का दिल


इतना भी कठोर होगा


ये देखा ना था


उस दिन आईने में 


खुद को देखकर


स्वीकार लिया


जो चला गया 


वो वापस नहीं मिल सकता


सूरत गई है


सीरत तो साथ है


तो मन में विश्वास भर


ठान लिया बस


कर लिया एक वादा खुद से


जो भी हो जाये


ज़िन्दगी में नये मिले


इस कैनवास में


नई उम्मीदें उकेरना है


बेरंग हो चुकी 


इस ज़िन्दगी के कैनवास को


फिर रंगों  से सजाना है




✍️तोषी गुप्ता✍️


10-03-2022

Read more...

मंगलवार, 8 मार्च 2022

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता तब, जब महिला को महसूस हो हर कदम पर सुरक्षा और मान-सम्मान

 *अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता तब, जब महिला को महसूस हो हर कदम  पर सुरक्षा और मान-सम्मान*


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आज के दिन जहाँ महिलाओं का विशेष दिन उन्हें तरह - तरह से सम्मानित करके  उन्हें उचित मान-सम्मान देकर मनाया जाता है वहीं ज़रूरत है कि हर दिन महिलाओं को उचित मान-सम्मान जीवन के उस हर कदम पर मिले, जहाँ वो खुद को आज असुरक्षित महसूस करती है। महिलाओं का ये मान-सम्मान महज़ मंच के नाटकीय रूप में ना होकर, वास्तविक जीवन में महिलाओं के प्रति वास्तविक आदर और उनको उचित अवसर प्रदान कर के हो। जहाँ महिलाएँ ना केवल हर कदम पर स्वयं को सुरक्षित महसूस करे बल्कि अपना हर अगला कदम निर्भीकता से इस आत्मविश्वास से बढ़ाए कि  रुग्ण पुरूषोचित्त मानसिकता से परे  उसे ना केवल मौखिक तौर पर सम्मान मिलेगा बल्कि पुरुषों की नज़र मात्र से नारी अस्मिता पर प्रहार करने की बजाय पुरुषों की नज़र में भी उन्हें अपने प्रति वही सुरक्षा और मान- सम्मान महसूस हो जैसे कि उसे अपने पिता या भाई से प्राप्त होता है। जिस दिन महिलाओं को अपने दैनिक जीवन में इस सुरक्षा और मन-सम्मान का अनुभव होने लगेगा उस दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का यह विशेष दिन मनाने का औचित्य सार्थक हो जाएगा।



✍️श्रीमती तोषी गुप्ता✍️


08-03-2022


Read more...

अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष-2

 साल दर साल हम आज का ये खास दिन मानते आ रहे हैं,,,, बदला आज भी कुछ ख़ास नहीं,,,, 


जब तक घर के भीतर और घर के बाहर दोनों जगहों पर हम स्वयं को पूर्ण सुरक्षित महसूस नहीं करतीं ,,,,


जब तक पुरुषों की रुग्ण सोच भरी मानसिकता से परे हम स्वयं आगे नहीं बढ़ जातीं,,,,


जब तक पुरुषों की तीर सी चुभती नज़र मात्र से हमारी अस्मिता सुरक्षित नहीं हो जाती,,,,


जब तक हमारी सफलता बिना भेदभाव केवल हमारी योग्यता के बल पर सुनिश्चित नहीं की जाती,,,,


जब तक हमारी देह से परे हमें स्पर्शहीन प्रेम और मान सम्मान नहीं मिल जाता,,,,, 


जब तक हमारे हर कदम पर हमें लोगों का निःस्वार्थ साथ नहीं मिल जाता,,,,


जब तक हमें लोगों की अभद्र और अपशब्द भरी बातों से छुटकारा नहीं मिल जाता.....


जब तक नाटकीय मंचों से परे वास्तविकता में लोगों के बीच हमारा वास्तविक आस्तित्व स्वीकार नहीं किया जाता,,,,


तब तक पूरे वर्ष के मात्र एक आज के  दिन उत्सव मनाते रहिए,,,, क्योंकि उसके बाद तो हर दिन ख़ास होगा, हर दिन उत्सव का होगा, हर दिन महिला विशेष का होगा,साल के पूरे 365 दिन महिलाओं के वास्तविक आस्तित्व का होगा,,,, इसी आशा के साथ,,,,,,,, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,,,,,




✍️तोषी गुप्ता✍️


08-03-2022

Read more...

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष -1

 हर दिन खास होता है, हो भी क्यों न ,,, हर दिन की शुरुआत  सूरज की नयी किरणों से जो होती है। इसी तरह आज का दिन भी खास है, और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस होने के कारण ये दिन और खास हो गया। सूरज की नयी किरणों के साथ, उम्मीद की नयी किरणें भी जागी, कि सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में भी स्त्रियों की वास्तविक स्थिति में ज़रूर कुछ सकारात्मक बदलाव आएंगे। वास्तिविकता के धरातल पर एक नज़र डालेंगे तो आप पाएंगे कि आज भी छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं। एक ओर जंहा सरकार विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चलाकर स्त्रियों को स्वरोज़गार या महिला समूहों के द्वारा आत्मनिर्भर बनाने प्रयत्न करती हैं वहीं उच्च मध्यम वर्गीय घरों की स्त्रियां आज भी अपनी उच्च शिक्षा और योग्यता के बावजूद सिर्फ इसलिए दहलीज़ के बाहर कदम नहीं रख सकती क्योंकि इसके पहले उस घर की किसी महिला ने नौकरी नहीं की या घर की आर्थिक जिम्मेदारी नहीं संभाली। आज भी इन सम्भ्रांत घरों के पुरुष प्रधान मानसिकता के पीछे घर की बुज़ुर्ग महिलाओं की घोर रूढ़िवादी मानसिकता के चलते कई बहुएं अपनी शिक्षा और योग्यता का ना सही उपयोग कर पाती और ना ही उस योग्यता को निखार पातीं। आज के दौर में सिर्फ आत्मनिर्भर होने या नौकरी करने की मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत नहीं बल्कि कोशिश ये हो कि घर में हर निर्णय पर घर की सभी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए। हर स्तर पर महिलाओं की स्थिति मजबूत करने की ज़रूरत है। लेकिन उससे पहले ज़रूरत है कि वे महिलाएं स्वयं अपनी स्थिति को मजबूत बनाने प्रयास करें। क्योंकि किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति तब तक संभव नहीं जब तक वो स्वयं से प्रेरित ना हों।पुनः  महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,,,,,



✍️तोषी गुप्ता✍️


08-03-2018

Read more...

नारी शक्ति सम्मान

 नारी शक्ति सम्मान




पूरे समारोह में सबकी नजरें सचिन और शिखा पर ही थी। एक दूजे का हाथ थामे सचिन और शिखा जैसे एक दूजे के लिए ही बनें हों। सक्सेसफुल बिज़नेसमैन सचिन और उसकी पत्नी शिखा जो अक़्सर पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचना भेजती रहती। आज महिला दिवस पर उसके साहित्यिक योगदान पर उसे राज्य शासन द्वारा "नारी शक्ति सम्मान" से पुरस्कृत किया जा रहा था। स्त्री विमर्श और नारी सशक्तिकरण की अद्भुत लेखिका के रूप में उभरी थी शिखा। जब उसे मंच पर पुरस्कार मिल रहा था, तब अपनी जगह पर खड़े होकर उत्साह से ताली बजाते सचिन की ओर सबकी नजरें जमी हुईं थी। समारोह से घर लौट शिखा उस सम्मान को अपने हॉल में सजाने लगी।  



"अरे शिखा छोड़ो भी ये सब, जोरों की भूख लगी है जल्दी से खाना निकालो", सचिन ने कहा,



 समारोह की खुशियों में तक खोई शिखा ने जल्दी से सब्जी गर्म की और गर्म गर्म पराठे परोसने लगी। अभी दूसरा पराठा सेक ही रही थी शिखा की ज़ोर से सचिन की आवाज़ आई,



"ये क्या है शिखा", 



दौड़ती हुई शिखा सचिन के पास आई और , तड़ाक,,,,,, एक झन्नाटेदार चांटे से शिखा सहम गई। 



जले हुए पराठों को एक तरफ सरकाते सचिन गुस्से से थाली छोड़ अपने कमरे की तरफ चला गया। सन्न खड़ी शिखा को आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मिला नारी शक्ति सम्मान मुँह चिढ़ाता नज़र आया और सचिन के हाथों के निशान उभरे उसके लाल गालों पर उसकी आँखों से दो बूँद लुढ़क पड़े।




✍️तोषी गुप्ता✍️


07-03-2022

Read more...

महिला दिवस का सम्मान

 महिला दिवस का सम्मान



निर्माणाधीन बड़े कॉम्प्लेक्स के पहले माले तक बनी लकड़ीयों की टेढ़ी मेढ़ी सीढ़ी पर सावधानी से पैर रखती छः माह की गर्भवती माला की नज़र नीचे बड़ी-बड़ी गाड़ियों से उतरते लोगों पर पड़ी। सूट बूट में उतरते कुछ पुरुषों के साथ कुछ झक सफेद कुर्ता पायजामा धारी भी थे। काला चश्मा और महंगे परिधानों में ऊंची एड़ी के फैशनेबल जूते पहनी महिलाएँ भी साथ थीं तो कुछ समाजसेवी टाइप नेत्रियां भी साथ थीं। इन सबके साथ उनके आगे पीछे कैमरा लेकर दौड़ते कुछ लोग जो हर एंगल से उनकी तस्वीर लेने आतुर थे। 


इधर ठेकेदार पसीने से लथपथ तुरंत दौड़ा उनकी ख़ातिरदारी के लिए। आनन फानन में कुर्सियों की व्यवस्था की गई और उस निर्माणाधीन कॉम्प्लेक्स के सभी मजदूरों को वहां इकट्ठा होने कहा गया। महिला मजदूरों को प्रथम पंकियों में जगह दी गई। कुछ लोगों की नज़र माला पर पड़ी तो बड़े लोग उसे बुलाकर अपने साथ कुर्सी पर बिठा लिए। ठेकेदार ने स्वयं माला के लिए कुर्सी लगाई। उसे और उसके महिला मजदूरों को खूब सारे उपहार भी मिले सभी बड़े लोगों ने उन उपहारों को देते हुए माला के साथ फोटो खिंचाई। उन बड़े लोगों की बातों से पता चला आज महिलाओं का कोई ख़ास दिन है। ये सब देखकर माला की आँसू आ गए, कल की ही तो बात थी जब उसने ठेकेदार से विनती की थी कि छठा महीना चल रहा है, उसे कोई हल्का काम दे दिया जाए, और ठेकेदार ने बुरी तरह झिड़कने के साथ उसे घर पर रहने की सलाह दी थी। माला बस यही सोच रही थी कि काश ये ख़ास दिन रोज़ होता तो रोज़ उसे इतना ही आराम और मान-सम्मान मिलता।



✍️तोषी गुप्ता✍️


07-03-2022

Read more...

सोमवार, 7 मार्च 2022

नारी मन की चाह ***

 *नारी मन की चाह*




मोहताज़ नहीं है नारी,एक दिन के सम्मान की,


वो तो चाहे ये सम्मान,हर दिन ,हर पल , हर क्षण, हर कदम, हर नज़र मान की,




ना वो चाहे नाटकीय मंच का अभिमान,


वो तो चाहे वास्तविक जीवन में स्वाभिमान, 




ना वो चाहे स्वयं पर पुरुषोचित्त रुग्ण मानसिकता का अधिकार,


वो तो चाहे हर कदम एक सुरक्षित साथ का हमराह,




ना वो चाहे कहलाना खुद को अबला नारी,


वो तो चाहे वक्त पड़े तो बन जाये वो दुर्गा भी और काली,




ना वो चाहे जीवन ढोना, बन स्वामी की दासी,


वो तो चाहे संवार देना जीवन, बन कर अर्धांगिनी,




ना वो चाहे बाँधा जाए उसे हर पल सीमाओं में,


वो तो चाहे उड़ना ऊंचे, असीम संभावनाओं के आकाश में,




ना वो चाहे प्रताड़ना ऐसी नर आरोपित आक्षेप,


वो तो चाहे सदैव खड़े रहना, संग नर के सापेक्ष,




ना वो चाहे उठे कोई प्रश्न उसके अस्तित्व पर,


वो तो चाहे मान मिले,उसे उसके नारीत्व पर,




वक्त ये आन पड़ा, ये मर्म समझा जाये,


नारी मन की मासूम चाह ये,हर दिल महसूस किया जाये,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


07-03-2022

Read more...

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP