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गुरुवार, 29 जुलाई 2021

कहवे की चाय

 संस्मरण


कहवे की चाय


बात तब की है जब हम परिवार सहित कश्मीर घूमने गए थे। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर वाकई स्वर्ग सी अनुभूति देता है। यहां की ख़ूबसूरत वादियाँ , खुशनुमा मौसम वाकई दिल को छू लेने वाला है। हम लोग कश्मीर में श्रीनगर के पास सोनमर्ग गए । वहां रोपवे से हम बीस मिनट की यात्रा करके ऊपर गए जहाँ ऊँचे पहाड़ों के बीच बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई थी। हमारा बर्फ के बीच ये पहला अनुभव था। हाथ पैर पूरे ढके होने के बाद भी ठंडे हुए जा रहे थे। तभी हल्की बारिश भी शुरू हो गई। एकदम हल्की लेकिन ठंडी फुहारों के बीच हम लगभग कांप रहे थे। ऐसे समय में हमारे गाइड ने हमसे कहवे की चाय पीने की गुजारिश की और बताया कि ये शरीर को गर्मी देगा। बर्फ के बीच हल्की बारिश की फुहारों के बीच हमने गर्म गर्म कहवे की चाय का आनंद लिया जिससे थोड़ी राहत मिली। सचमुच ये कहवे की चाय ताउम्र याद रहेगी।



✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


29-07-2021

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मंगलवार, 27 जुलाई 2021

आस्तीन के साँप

 आस्तीन के साँप





ऐसे हंसकर मिला करते हैं,


जैसे अपने हों मेरे


बात बात में समझाइश देते,


जैसे शुभचिंतक हों सबसे बड़े मेरे,


हर खुशी में मेरे खुश होते,


हर दुख में मेरे साथ दुखी,


परेशानी में साथ आते ऐसे,


जैसे वो न होते तो बात बनती कैसे,


हर बात से अनजान 


हम भी भरोसा करते उन पर


अक्सर हाल ए दिल बयान करते


खुद से भी ज्यादा विश्वास करते उन पर


बहुत खतरनाक ये होते हैं 


आस्तीन के साँप जो कहलाते हैं


लेकर हमारा ही सहारा,


निगलने को हमेशा तैयार रहते हैं,


पहचान कर इनको दूरी बनाना है ज़रूरी,


प्रेम से निभाकर इन्हें वश में करना है ज़रूरी,





✍️तोषी गुप्ता✍️


27-07-2021



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मौन स्वीकृति

 *मौन स्वीकृति*


एक एक्सीडेंट ने पिता को व्हीलचेयर पर बिठा दिया नौकरी भी छूट गई। ऐसे समय में सविता जो अभी अभी बारहवीं पढ़कर निकली थी, बड़ी होने के कारण उसके कंधों पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई। सविता ने भी अपनी जिम्मेदारी पूरी करने की ठानी और कॉलेज की प्राइवेट पढ़ाई करते हुए घर पर ट्यूशन पढ़ने लगी। बचपन से ही मेधावी सविता की ट्यूशन चल निकली। धीरे धीरे सविता पोस्ट ग्रेजुएट के बाद अपने ही कॉलेज में व्याख्याता हो गई। इधर घर की जिम्मेदारी भी उसने पूरी ईमानदारी से निभाई। छोटी बहन की उच्च शिक्षा पूरी करवाई।उसकी शादी करवाई। छोटे भाई को पढ़ाया लिखाया, उसको भी बैंक में अफ़सर बनाया। परिवार के चलते अपनी कभी सुध ही नहीं ली। अब उम्र भी चालीस के पार हो गई थी। छोटे भाई की भी शादी कर सविता चिंतामुक्त हो जाना चाहती थी। लेकिन भी भी ज़िद पर अड़ा था, कि पहले दीदी का घर बसेगा फिर उसका। अपने भाई को इस तरह घर की जिम्मेदारी स्वयं पर लेटे देख सविता को संतुष्टि थी कि अब उसका भाई हर तरह की जिम्मेदारी उठाने तैयार है, और उसने अपनी शादी की मौन स्वीकृति भाई को दे दी। 



,✍️तोषी गुप्ता✍️

27-07-2021

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बुधवार, 21 जुलाई 2021

कुछ पल अपने लिए

 कुछ पल अपने लिए




सुबह की पहली सुनहरी किरण को,


आंखों  में समा लेती हूँ,


रोज़ सुबह सबके उठने के पहले ,


कुछ इन पलों को अपने लिए जी लेती हूं,





किचन में सबके लिए नाश्ता बना,


सबका टिफ़िन भी तैयार कर देती हूँ,


फिर एक कप चाय खुद के लिए बना,


बालकनी में जा कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





पति और खुद के ऑफिस की है भागमभाग,


बच्चों के बस की भी है चिंता,


इस बीच आईने के सामने जा बिंदी और सिन्दूर लगाते,


खुद को निहार कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





ऑफिस की फाइलों के ढेर को निपटा,


सहकर्मियों के भी काम में हाथ बँटा देती हूँ,


ऑफिस से लौटते ट्रेन की खिड़की से बाहर निहारते,


जज्बातों को डायरी में उतारते कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





घर पहुँच कर बच्चों का होमवर्क कराती,


पतिदेव को चाय और पकोड़े परोसती,


शाम की आरती में आंखें बंद कर,


 कुछ पल अपने लिए भी जी लेती हूं,





बच्चों की दिन भर की खुशी में खुश होती,


रात को पति के कांधों पर सर रख सुकून का अहसास करती,


दिन भर के पलों से कुछ पल अपने लिए चुराती,


सच में कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


21-07-2021

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शनिवार, 17 जुलाई 2021

दोस्तों का साथ


 

दोस्तों का साथ




हाथों में हाथ हो,


दोस्तों का साथ हो,


ज़िन्दगी भी खुशहाल हो,


ज़िन्दगी का हर पल बहार हो,




चाहे कितनी भी आएं मुश्किलें,


हर हाल में खुशी खुशी जी लेंगे,


चाहे कितनी भी आये रुकावटें,


सब दोस्त मिल आगे बढ़ जाएंगे,




एक- दूजे का हाथ थामे,


एक दूजे का सहारा बनते जाएंगे,


एक जो गिरा लड़खड़ा कर,


उसकी बैसाखी बन जाएंगे,




मंजिल चाहे अलग हो,


साथ ही आगे बढ़ना है,


साथी की राह में जो आये मुश्किल,


सबको मिलकर सुलझाना है,




एक दूजे से ना ईर्ष्या ना बैर,


ना ही कोई मत भेद,


हर हालात का करना है सामना,


बिना आपस में कोई मनभेद,




साथ मिलकर जीवन में अपने,


हर कदम साथ आगे बढ़ाएंगे,


एक दूजे के सुख दुख का साथी बनकर,


एक सुखद जीवन बिताएंगे,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


17-07-2021

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बुधवार, 14 जुलाई 2021

गीत कोई गुनगुनाओ

 गीत कोई गुनगुनाओ



सूनी सूनी सी कक्षाएं,


सूना सूना सा ये खेल का मैदान,


बच्चों की राह ताकता,


स्कूल हो गया है वीरान ,


ये सूना ब्लैकबोर्ड,


और सूना कॉरिडोर,


वो कैंटीन का कोना,


और लाइब्रेरी की पुस्तकें,


वो लैब की शांति,


वो स्पोर्ट्स रूम की तुम्हारी मस्ती,


वो स्कूल की घंटी,


वो प्रेयर की गूंज,


वो स्कूल में तुम संग उत्सव मनाना,


हर त्यौहार का दोबारा मज़ा लेना,


वो एनवल फंक्शन की रौनक,


वो स्पोर्ट्स डे के कॉम्पिटिशन,


वो राष्ट्रीय त्योहारों का आनंद,


वो बैंड की धुन, वो बूंदी का पैकेट,


सब कुछ बहुत याद आता है ,


बार बार दिन उस समय को याद करता है,


तुमसे ही तो बच्चों रौनक थी,


हर शिक्षक की तुमसे ही पहचान थी,


गीत कोई गुनगुनाओ अब तुम,


स्कूल लौट आओ अब तुम,


थक गई आंखें अब  इसऑनलाइन पढ़ाई से,


दिल मचलता है अब , प्यारे बच्चों मिलने को तुमसे,





✍️तोषी गुप्ता✍️

14-07-2021





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अनुभूति

 अनुभूति




आज पिता अनिल की आंखों में खुशी के आंसू थे । बिटिया श्रुति को आई आई टी पलक्कड़ (केरल) से एम टेक करने स्कोलरशिप मिली थी।



 कितने परेशान हो रहे थे वो तीन बेटियां और उनकी आर्थिक स्थिति। गांव में एक  रेडियो और पंखे बनाने की एक छोटी सी दुकान थी,और  थोड़ी खेतीबाड़ी। बमुश्किल सबकी ज़रूरतें पूरी हो पाती। बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए पिता गांव में अकेले रहकर काम करते और पत्नी और बच्चों को पढ़ने शहर भेज दिया। बेटियां भी एक से बढ़कर एक होनहार और पढ़ाई में तेज। 



बड़ी बेटी श्रुति पूरे प्रदेश में अव्वल थी। बारहवीं में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया था उसने। मेरिट में आने पर उसे बहुत सारे उपहार भी प्राप्त हुए थे शासन की ओर से। लेकिन उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त ना थे।वो बी टेक कर रही थी लेकिन अब भी पिता श्रेया की उच्च शिक्षा को लेकर थोड़े चिंतित थे।



 आज इस खबर ने मानों पूरे परिवार को सुखद अनुभूति से सराबोर कर दिया। श्रेया के भविष्य को लेकर पिता निश्चिंत थे। और खुद श्रेया भी स्कॉलरशिप मिलने से बहुत खुश और निश्चिंत थी।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


13-07-2021

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शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

एक नई सुबह

 एक नई सुबह




आज मौसम बड़ा खुशगवार है,


ये खूबसूरत सुबह,


गुनगुनाती धूप


और उस पर 


ये बालकनी में 


चाय की चुस्कियों के साथ


अख़बार की ख़बरें


पास ही झूला झूलते


छोटी बहन की हंसी


मेरी छोटी सी फुलवारी में


फुदकती नन्हीं चिड़िया


नीले आसमान की खूबसूरती


ठंडी हवा की मादक बयार


बालकनी से दिखती 


वो सुंदर सड़क


चाय की गुमटी पर गप्पें मारते


वो लड़के-लड़कियों का झुंड


सड़क किनारे लगे ताज़े फलों के ठेले


दूजी ओर ताजी सब्जियों की पंक्ति


अंदर  किचन से आती मम्मी की आवाज़


बीच बीच में पापा की गुनगुनाने की आवाज़


कभी भाई का आकर चिकोटी काट जाना


कभी दोनों छोटों का आपस में लड़ना


ऐसा लगा जैसे सब कुछ नया हो,


जैसे इस सुबह की हर बात निराली हो,


ऐसा नहीं कि ये सब पहली बार हो


दिन वही था, लोग वही थे


बस बदला था कुछ मेरे साथ


हुआ यूँ कि 


मोबाइल मेरा बिगड़ गया


और खूबसूरत ये दिन दिखा गया


काफी दिनों बाद आज


बालकनी में आना हुआ


मोबाइल से परे भी एक दुनिया है


ये जानना हुआ


मोबाइल की आभासी दुनिया में 


रात दिन जहाँ कटते थे


हर रिश्ते भी जहाँ


मोबाइल पर ही निभते थे


आज ये जानना हुआ


ये दुनिया कितनी प्यारी है एहसास हुआ


अब ठाना मन में एक बात


मोबाइल को ना बनने देंगे 


अपनी हसीं दुनिया की फांस


करके मोबाइल का सीमित उपयोग


करेंगे समय का भी सदुपयोग






✍️तोषी गुप्ता✍️

09-07-2021

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लौट आओ न

 लौट आओ न




देख कर बेटे की सफलता


पिता फुले नहीं समा रहे थे


आखिर बेटा अव्वल था


पूरे प्रदेश में,


जमा पूंजी सब इकट्ठी करके


लगा दिए बेटे का भविष्य सँवारने


होनहार बेटे की


हर कदम पर सफलता देखने


दिन प्रतिदिन आगे बढ़ता बेटा


पिता का नाम रोशन करता


अब बेटा बड़ा अफ़सर बनकर


खूब कमाई भी करता


गाँव की गलियां अब छूटी,


और छूट गए बचपन के यार,


हर कदम पर जो साथ रहते,


उसकी हर सफलता पर खूब तालियाँ बजाते,


बेटा अब रंग चुका था


शहर के रंग में


अपनी व्यस्त दिनचर्या और


गुलाबी शाम के संग में


जिस पिता के साथ अपनी हर खुशी बाँटता


आज उसी पिता से बात करने से कतराता


पिता आस लगाए राह देखते


सूनी गलियों में अपने बेटे के आने की राह ताकते


हर पल हर दिन जिसने अपने बेटे की


हर खुशी चाही,


आज उसी बेटे ने उनकी,


कोई परवाह ना करनी जानी,


पिता की आँख उसे देखने को तरसती 


"लौट आओ न बेटा" हर पल कहकर


अब उनकी ज़िंदगी कटती






✍️तोषी गुप्ता✍️


09-07-2021


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तुम्हारा प्रेम

 तुम्हारा प्रेम



अपने प्रेम के मोहपाश में,


बांध लो मुझको इस तरह,


मिल जाये रूह से रूह,


और लोगों को ख़बर भी ना हो किसी तरह,


डूब जाऊँ तुम्हारे प्रेमरस में,


जैसे राधा डूबी कृष्णा संग,


सारी रात रास रचाये,


प्रेमरस में भीग जाए अंग अंग,


पनाह पाऊँ तुम्हारे आगोश में,


खिल जाऊँ पाकर साथ तुम्हारा,


सर झुका के तुम्हारे सजदे पर


दुआ मांगू  मैं रब से , मेरा से हो जाऊं हमारा,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


09-07-2021

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सोमवार, 5 जुलाई 2021

शब्द

शब्द



शब्द जो दिल में आते हैं


काग़ज़ में उतार देते हैं,


मन में आये भावों को,


मोती सा माला में पिरो देते हैं,




खुशी हो या ग़म,


भाव ख़ुद ब ख़ुद आ जाते हैं,


ये वो अनदिखे शब्द हैं,


जो दिल में चित्र बनाते हैं,




शब्द ही हैं जो, 


मरहम लगाते हैं,


शब्द ही हैं,


जो तीर से चुभ जाते हैं




ख़्वाबों में जो देखा,


उसे लफ़्ज़ों में ढाल देते हैं,


हकीक़त में मिले दर्द को,


कविताओं में सजा देते हैं





मौन की भाषा को, 


शब्दों का रूप देते हैं,


अनकहे जज़्बात हैं फिर भी,


दिल में उतर शोर मचाते हैं,





✍🏻तोषी गुप्ता✍️


05-07-2021

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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

अंतर्नाद

 अंतर्नाद



आईने के सामने बैठी आँचल खुद को आईने में निहार रही थी। उसने हल्की ग़ुलाबी साड़ी पहनी हुई थी। खुले बालों में कानों में छोटे झुमके पहनी आँचल बहुत सौम्य लग रही रही। कमरे के एक कोने में सरिता कुर्सी में बैठी कभी अपनी बेटी आँचल को देखती तो कभी खिड़की से बाहर मुख्य दरवाजे को। तभी मुख्य दरवाजे पर एक कार आकर रुकी और सरिता में दरवाजे की ओर भागी। उनके पति सौरभ ने दरवाजा खोला और मेहमान अंदर आ गए।



आज लड़के वाले आँचल को देखने आये थे। औपचारिक बातचीत के बाद सरिता ने आँचल को आवाज़ लगाई। कॉलेज की आत्मविश्वासी प्रोफेसर आँचल आज थोड़ी नर्वस थी। धीरे कदमों से उसने कमरे में प्रवेश किया। सबकी नजरें आँचल पर ही थी। शालीनता से उसने सभी के सवालों का जवाब दिया।



कुछ देर बाद लड़के की माता ने कहा, लड़की तो हमें पसंद है, बस रंग ज़रा सा दबा हुआ है, फिर भी हम शादी के लिए तैयार हैं अगर आप शादी में एक कार और शगुन के पाँच लाख रुपये दें तो। 



सौरभ सहमति जताते हुए बोले," जी, ज़रूर,,,"



अब तक शालीनता से सभी के सवालों का जवाब देती आँचल अचानक उठ खड़ी हुई तो सबसे हाथ जोड़ते हुए बोली, क्षमा कीजिये, अब इस घर में और किसी बेटी की कीमत नहीं लगाई जाएगी, मुझे ये शादी मंज़ूर नहीं है" 



"और मुझे भी,,," अपनी तलाकशुदा बड़ी बेटी के साथ बैठी सरिता ने आज अपने अंतर्नाद को छिपाते हुए दृढ़ता से कहा। क़ाश उसने यही जवाब अपनी बड़ी बेटी के रिश्ते के समय दिया होता तो आज उसकी बड़ी बेटी की यह स्थिति नहीं होती।




✍️तोषी गुप्ता✍️


01-07-2021

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गुरुवार, 1 जुलाई 2021

ब्लैकबोर्ड

 ब्लैकबोर्ड 



टीचर दीदी के साथ वो आती। एक कंधे पर एक थैला लटकाए जिसमें गुड़िया की दूध की बोतल, पानी की बोतल, कुछ खिलौने, डायपर और कुछ दवाइयाँ होती। और दूसरे हाथ से गुड़िया को सावधानी से गोदी किये हुए। उम्र यही कोई 11-12 साल रही होगी उमा की। खुद गुड़ियों से खेलने की उम्र में अपने नाज़ुक हाथों से एक जीती जागती गुड़िया को संभालती वह टीचर दीदी की एक आवाज़ पर उसके सामने होती। 



इधर टीचर दीदी क्लास में पढ़ाती और उमा क्लास में ही एक कोने में गुड़िया को गोद लिए रहती। गुड़िया के जागने पर कभी उसे बाहर घुमा लाती तो कभी अपने हाथों को झूला बना गुड़िया को झुलाती। क्लास में रहते अक़्सर उसकी नज़र टीचर दीदी की बातों और उसके पढ़ाने पर होती। बड़े ध्यान से सुनती वह जब टीचर दीदी कुछ समझा रही होती। कभी ब्लैकबोर्ड पर लिखे शब्दों को बड़े ग़ौर से देखती।



 एक दिन टीचर दीदी से गणित का एक सवाल ब्लैकबोर्ड पर लिखा और उसे हल करने बच्चों को बोला, लेकिन कोई उस सवाल को हल ना कर सका। 



अचानक उमा ने टीचर दीदी से कहा, "टीचर दीदी , इसका उत्तर ये होगा ।" 



अवाक सी खड़ी टीचर दीदी अब उमा को देख रही थी। 



"इधर आओ, ब्लैकबोर्ड में हल करके दिखाओ" टीचर दीदी ने कहा,



उमा ने झट चॉक उठाई और सवाल हल कर दिखाया। 



टीचर दीदी बहुत खुश हुई, उसने पूछा "कहाँ तक पढ़ी हो", 



उमा ने उत्साह से बताया "पांचवी तक पढ़े हैं हम, गाँव की पाठशाला में जाते थे, तब ब्लैकबोर्ड में हम ही सवाल हल करते थे, अव्वल आते थे हम। अब भाई स्कूल जाने लगा, इंग्लिश मीडियम, तो माँ बाबूजी ने हमारी पढ़ाई छुड़ा काम पर लगा दिया हमें, भाई की स्कूल फीस भी भरनी है न" सब कुछ एक ही सांस में बोल दिया उमा ने,



उसकी बातें सुन टीचर दीदी ने मन ही मन सोचा, जिसने बिना ब्लैकबोर्ड मन ही मन सवाल हल कर दिया उसे ब्लैकबोर्ड वाली शिक्षा मिल जाये तो उमा ज़िन्दगी में बहुत कुछ कर सकती है। 



अब टीचर दीदी ने उमा को काम के साथ पढ़ाई कराने का भी निश्चय किया और चल पड़ी किसी की ज़िंदगी को ब्लैकबोर्ड से उजला बनाने।




✍️तोषी गुप्ता✍️


01-07-2021

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एक स्त्री का मौन

एक स्त्री का मौन




एक स्त्री के मौन को 


कभी उसकी कमजोरी ना समझना,


कभी बहुत कुछ,उबल रहा होता है,


कभी बहुत कुछ सुलग रहा होता है,


कभी बहुत कुछ,जनम रहा होता है,


कभी बहुत कुछ मर रहा होता है,


कभी बहुत कुछ बदल रहा होता है


कभी बहुत कुछ ठहर रहा होता है,


कभी बहुत कुछ समाहित होता मन में,


कभी बहुत कुछ खाली होता ज़हन से,


कभी बहुत कुछ कुलबुलाता,


कभी बहुत कुछ थम सा जाता,


कभी बहुत कुछ शांत हो जाता,


कभी बहुत कुछ शोर मचाता,


बहुत राज़ छिपे होते हैं


एक स्त्री के उस मौन के पीछे,


वक़्त आने पर ,


बिजली सी कौंध सा,


बोल पड़ता उसका मन,


और तब थम सा जाता वक़्त,


और शांत धीर- गंभीर 


मनन करता पुरुष अपने किये का,


और झुक जाता स्त्री के उस,


मौन की आवाज़ के समक्ष,





✍️तोषी गुप्ता✍️


01/07/2021



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एक ख़्वाब

एक ख़्वाब



देखा एक ख़्वाब,


जो ले चला मुझे 


सुकून के द्वार,


एक ऐसी दुनिया,


जहाँ ना नफ़रत,


ना झगड़े-फ़साद,


इंसां जहाँ बाँटें,


खुशिया हज़ार,


एक-दूजे का लेकर,


हाथों में हाथ,


जात-पांत को,


रखे दर किनार


प्यार ही प्यार,


बाँटें बेशुमार,


जहाँ न कोई,


अमीर या ग़रीब,


ना कोई छोटा या बड़ा,


बाँटते आपस में सब


सुख हो या दुख अपार


निश्छल प्रेम की,


जहां बहें निर्मल गंगा


जहाँ सब कहें,


दिलवालों की है ये दुनिया,




✍️तोषी गुप्ता✍️


01/07/2021




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