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बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

खुशी का सैलानी

 सुख के सैलानी


आज वर्षा का घर फूलों से सजा था। रसोई से पकवानों की खुशबू आ रही थी। नाते रिश्तेदार भी आये हुए थे। आज वर्षा की देवरानी नीति इस घर के पहले पोते को हॉस्पिटल से घर लेकर आ रही थी। सालों बाद इस घर में बच्चे की किलकारी गूँजी थी। वर्षा भी नए मेहमान के आगमन की तैयारी में जुटी हुई थी। एक ओर तो वह अपनी सूनी गोद की कसक भी मन में लिए हुए थी, लेकिन आंखों की कोरों से अपने आँसू छिपाते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए भाग भाग कर सारे इंतज़ाम कर रही थी। सासू माँ भी बड़ी बेसब्री से घर के पहले बच्चे का इंतज़ार कर रही थी


तभी दरवाज़े पर कार आकर रुकी। नीति और नरेश नए मेहमान को लेकर आ चुके थे । सब दरवाज़े की ओर बढ़े। सासु माँ भी पूजा की थाल लिए आगे बढ़ी। देखा तो वर्षा कहीं नजर नहीं आ रही थी। वर्षा सकुचाई सी सबसे पीछे खड़ी थी। 

सासूमाँ ने आवाज़ लगाई, "वर्षा, सामने आओ, तुम इसकी बड़ी माँ हो , पहली पूजा तुम ही करो, और स्वागत करो अपने बेटे का।"


वर्षा हतप्रभ सी सामने आई खड़ी ही हुई थी कि देवरानी नीति ने कहा, "बेटा तो अपनी बड़ी माँ के साथ ही घर में प्रवेश करेगा, क्यों बड़ी माँ" कहते हुए नीति ने बेटे को वर्षा की गोद में डाल दिया।


अब तक अपनी आंखों की कोरों से अपने आँसू छिपाती वर्षा की आंखों से आँसुओं का सैलाब निकल पड़ा।


खुशी के आंसुओं से भीगी उसकी पलकें कभी सासूमाँ, कभी नीति, और कभी उसके हाथों के नए मेहमान को निहारती।


नीति ने वर्षा को अपने पास खींच लिया। और सासूमाँ नए मेहमान के गृह प्रवेश की पूजा उसकी बड़ी माँ वर्षा की गोद में कर रही थी। आज ये नया मेहमान खुशी का सैलानी बनकर उसकी ज़िन्दगी में उसकी सबसे बड़ी खुशी बनकर आया था।


✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


26-10-2021

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वक्त के सिरहाने,,,

 वक्त के सिरहाने


(आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, )


वक़्त के सिरहाने,


आज भी रखी हुई है,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,




जब स्कूल की पहली कक्षा में पहला सबक सीखी थी,



फिर हर रोज़ स्कूल जाने को ज़िद किया करती थी,



हर दिन कुछ नया सीखने को कदम बढ़ाया करती थी,



असफलता से ना हार कर हर रोज़,


 नयी कोशिश किया करती थी,



और आज ये ज़िन्दगी बिना स्कूल जाए ही,

ना जाने कितने ही सबक रोज सीखा रही है,


ना चाहते हुए भी ज़िन्दगी में,

कुछ कड़वे कुछ मीठे अनुभव दे रही है,



लेकर ज़िन्दगी में कड़ी परीक्षा,

नए पाठ पढ़ा रही है,



सुकून की तलाश में भटकते इस मन को,

 रोज़ नयी जिम्मेदारियों से सजा रही है,






वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने दोस्तों के साथ )



वक़्त के सिरहाने,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,




जब दोस्तों की टोली होती थी,


हर त्यौहार मौजों की रंगोली होती थी,



दोस्तो के साथ हर मुश्किल ,


चुटकियों में हल होती थी,



हर शैतानी के बाद,


 बचकर निकल जाने की कला होती थी,



और आज हर लम्हा उन दोस्तों के बिना गुज़रता है, 


हर पल, हर लम्हा उनकी शिद्दत से ज़रूरत महसूस करता है,



जीवन के कुछ खास पलों में ,


उन दोस्तों का साथ चाहता है,



या  उन पुराने पलों में दोस्तों के पास,


 एक बार फिर से लौट जाना चाहता है,





वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने अपनों के साथ )





वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,



जब भाई बहनों के साथ मिलकर घर घर खेला करते थे,


होती थी चॉकलेट एक, जिसके लिए खूब लड़ा करते थे,



एक ही खिलौने से उसी वक्त हम सब खेलने को मचलते थे,


माँ पापा की गोद में एक साथ बैठ जाने को ज़िद करते थे,



और आज जब बड़े हो गए, 


तो मिलने को भी तरसते हैं,



बने हैं त्यौहारों में पकवान ढेर, 


पर साथ खाने को मचलते हैं,



हो जाये कितनी भी रोशनी,


पर उस रौनक को याद करते हैं,



जब साथ मिलकर हर त्यौहार का ,


हर पल जिया करते थे,





वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने वास्तविक वुज़ूद के साथ )




वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,



जब सर पर माँ का हाथ होता था,


हर कदम पर पिता का साथ होता था,



ग़र कदम लड़खड़ा जाते किसी मोड़ पर,


उस मोड़ पर संभालने , नयी राह दिखाने,


 माँ बाबा का विश्वास होता था,



आज जब बड़े हो गए,

अपनी जिम्मेदारियों में खो गए,


माँ बाबा से दूर, अपनी नयी दुनिया में खो गए,



जीवन के यथार्थ के धरातल पर मन ,


माँ बाबा की दी हर सीख अपनाना चाहता है,



या फिर छोटा बच्चा बन, माँ बाबा की गोद में ,


सुकून से सो जाना चाहता है, 




वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,


मेरे बचपन की वो अनुपम यादें,


मेरे बचपन की वो अनमोल यादें,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


26-10-2021

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सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

धरती-अम्बर

 धरती-अम्बर



है इस प्रकृति के दो अनमोल धरोहर,


एक धरती और एक अम्बर, 


एक गंभीर सहनशील,


एक असीम संभावनाएं लिए,


एक नव अंकुरण , नवजीवन देती,


एक उसे प्राणवायु से भर देती,


एक कहीं हरियाली से भरी, 


कहीं नदियों सी बल खाती,


एक दूर क्षितिज तक रोशनी से जगमगाती,


कभी चाँद तारों से सज जाती,


एक कि गोद में सर रख सुकून पाता ये सृजन,


एक की सुरक्षित आग़ोश में चैन से जीता ये संसार,


कोई तुलना नहीं दोनों की,


दोनों ही हैं अतुलनीय अनमोल,


प्रकृति के ख़ास उपहार हैं

ये धरती- अम्बर,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻 

24-10-2021


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शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

करवाचौथ


 


करवाचौथ



अगले दिन करवाचौथ था। उसे अकेले ही बाज़ार करवाचौथ की खरीदारी के लिए जाना पड़ा क्योंकि शशांक की नज़र में ये करवाचौथ जैसे व्रत सिर्फ दिखावा है। आज बाजार में काफी भीड़ थी, और धूप भी तेज थी, उसे प्यास भी लग रही थी, तो पास ही एक रेस्टोरेंट चली गई, अभी पानी का पहला घूँट पिया ही था कि दूर टेबल से एक स्त्री पुरुष की बातों और उनके ठहाकों की आवाज़ कानों में पड़ी, वो ठिठक गई, आवाज़ शशांक की ही थी। जल्दी से उसने दुपट्टे से अपना चेहरा छिपा लिया, और उस टेबल की ओर देखने की कोशिश की। वो शशांक ही था, साथ में उसकी सहकर्मी आशा भी साथ थी । शशांक ने आशा का हाथ थाम रखा था और आशा के साथ बहुत सारे शॉपिंग बैग थे। वो आज के शॉपिंग के बारे में ही बात कर रहे थे। अब वो और वहाँ रुक ना सकी, पास रख पानी का ग्लास उठाया, एक ही सांस में सारा पानी पी लिया और तेजी से रेस्टोरेंट से निकल गई। अब तक राशि शशांक के शराब और जुए की आदत से परेशान थी। बच्चों के सामने भी शशांक शशि पर हाथ उठाने से नहीं चूकता। और अब आशा और शशांक को इस तरह साथ देखकर उसकी रही सही उम्मीद भी जाती रही। देर रात शशांक नशे में धुत्त घर लौटा, और बिना खाना खाए ही सो गया। राशि भी सो गई, रोज का यही रूटीन था।



अगले दिन करवाचौथ को सुबह से ही राशि जल्दी उठ कर तैयार हो गई। घर रोज के काम निपटाए, बच्चों को स्कूल भेजा। अब तक शशांक भी तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया, बस वो इतना ही कह पाई आज करवाचौथ है शाम को जल्दी आना। राशि की बात लगभग अनसुना करते हुए शशांक ऑफिस के लिए निकल गया। 



राशि ने निर्जल व्रत रखा था। शाम को अच्छे से तैयार होकर राशि चाँद निकलने की प्रतीक्षा करने लगी। चाँद भी निकल आया। शशांक को ना आना था ये राशि को पता था तो बिना शशांक की प्रतीक्षा किये राशि ने अपनी पूजा शुरू की और प्रार्थना की है करवा माता इतने सालों से आपका व्रत कर रही हूँ, अब तो मुझे इस राक्षस से मुक्ति दो। पूजा पूर्ण कर राशि ने पूजा की थाली में रखा मिठाई का एक टुकड़ा मुँह में डाला और लोटे से जल का एक घूँट पीकर व्रत खोला। और चाँद को निहारने लगी। चाँद की रोशनी में उसका आत्मविश्वास से भरा चेहरा सौम्यता से दमक रहा था।





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


23-10-2021

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शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

एहसास




 एहसास



बचपन साथ बीता जिस तरह,


लड़ते झगड़ते लाड़ करते,


हर मुश्किल में साथ निभाते,


कभी एक दूसरे की गलती बताते,


कभी एक दूसरे की शैतानी छिपाते,


कभी माँ बाबा से शिकायत करते,


कभी रूठ जाते कभी मनाते,


आज मुझसे भाई तू यूँ रूठ गया,


छोटी छोटी बातें भी दिल से लगा लिया,


बचपन अब भी गया नहीं,


ये रूठने मनाने का खेल, अभी तक ख़त्म हुआ नहीं,


पराई हो गई अब तो मैं भी,


है बस कुछ तीज त्यौहारों का साथ,


रूठा जो रहा तू इस तरह, 


तेरा भी दिल दुखेगा मेरी तरह,


कब तक बारिश में बैठ, छिपायेगा ये आँसू तेरे भी,


कि ये अंधेरे और ये बारिश भी,


ना छिपा सकेगी एहसास तेरे,


याद रखना कि हर परिस्थिति में साथ देगी ये बहन तेरी,


जिस तरह आज छाता लिए, तुझे बचा रही इस बारिश से,


हमेशा हर मुश्किल से तुझे

बचा लेगी ये बहन तेरी ,,,




✍️तोषी गुप्ता✍️


22-10-2021

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