कलम
कलम
जब जब कलम चलती है,
मन के भावों को,
कागज़ पर उतार देती है,
अनकहे उद्गारों को,
शब्दों से संवार देती है,
सच का साथ देती ये कलम,
असत्य की कमर तोड़ देती है,
आतताइयों का मुँह बंद कर,
सरल हृदय की ज़ुबाँ को आवाज़ देती है,
कम ना आँकना, कलम की इस ताक़त को,
ये वो धार है जो बिना वार किए,
रक्त की नदियाँ बहा देती है,
ये दो धारी तलवार है,
चाहे तो रंक को राजा,
और राजा को रंक बना देती है,
माँ सरस्वती का वरदान है ये कलम,
चाहे तो सफलता के शिखर पर पहुँचा,
व्यक्ति का मान बढ़ा देती है,
तोषी गुप्ता
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