एक जिम्मेदार इंसान
*एक जिम्मेदार इंसान*
जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद अक़्सर,
थक सी जाती हैं ज़िन्दगी,
मशीन से चलते हाथ,
थम से जाते हैं,
जिम्मेदारियों के बोझ से कंधे,
झुक से जाते हैं,
खींच जाती है चेहरे पर,
झुर्रियों की लकीरें,
वक़्त से पहले ही,
उसमें झलकने लगती है,
उम्र के ढलान की निशानियाँ,
उस वक्त भी वो,
हाथों में हाथ बांधे,
सोचता रहता है,
लेखा जोखा करता रहता है,
क्या बचा है और,
जो वो कर नही पाया,
और जो किया है,
उसे और अच्छे से,
कैसे निभा पाता,
सबकी थाली में मीठा देते देते,
वो ये अहसास ही नहीं कर पाता,
कि उसकी थाली में तो,
नमक भी कम ही रह गया,
एक जिम्मेदार इंसान,
अब भी खुश है,
क्योंकि उसके अपने,
उनकी थाली में मिले,
मीठे से खुश हैं,
✍️तोषी गुप्ता✍️
11-03-2022
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