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शनिवार, 4 दिसंबर 2021

ख्वाहिशें



ख्वाहिशें 



अक़्सर अपने कमरे की खिड़की से,


बाहर आसमान को निहारते हुए,


खो सी जाती हूँ कहीं,


डूब सी जाती हूं,


अपने ख्वाहिशों के समंदर में,


वो ख्वाहिशें, 


जो सोचकर ही सुकून सा दे जाती हैं,


महसूस कर, जीने की नई उम्मीद दे जाती है,


दूर पहाड़ों की बस्ती में,


गहरी और शांत झील,


जैसे बहुत कुछ समाई हो खुद में,


किनारे पर रखी कुर्सी,


बरबस ही मुझे,


अपनी ओर खींचती,


जहाँ बैठ मैं खुद को संवार सकूँ,


खुद को पहचान सकूँ,


खुद से बातें कर, खुद को जान सकूँ,


इस गहरे शांत झील के हृदय में समाए रहस्य को,


सुलझा सकूँ,


दूर क्षितिज से आती रोशनी की किरणों की ऊर्जा को,


खुद में समा सकूँ,


पक्षियों के कलरव के संगीत को अपने जीवन में महसूस कर सकूं,


ठंडी बहती मादक बयार की छुवन को हमेशा के लिए साथ रख सकूँ,


फुरसत के इन पलों को सहेज कर रखना चाहती हूँ सदा के लिए,


इसलिए, नई उम्मीद, नए ख्वाहिशों को जीने,


हर रोज़ बरबस ही दौड़ी चली आती हूँ,


अपने कमरे की खिड़की की ओर,


अपनी नई ख्वाहिशों की ओर,,,,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


3/12/21

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बुधवार, 24 नवंबर 2021

स्थानांतरण

 स्थानांतरण



निशांत फाइलों में उलझा हुआ था कि एक आवाज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया, "निशांत, कब तक इन फाइलों के बीच मुझसे छुपते रहोगे?" 


निशांत ने सर उठाया तो सामने काजल थी। "अरे काजल तुम, यहाँ कैसे?" 



"सारी बातें यहीं करोगे क्या? चलो चाय पीते हुए बातें करेंगे" काजल ने कहा,



और दोनों रेस्तरां की तरफ चल पड़े। आज बारह साल बाद निशांत और काजल की मुलाकात हुई थी। चाय पीते हुए वो एक दूसरे का हाल जानने लगे। बातों ही बातों में काजल ने उसे बताया कि अब वह इसी शहर में रहेगी और बड़ी मुश्किल से उसने निशांत के ऑफिस का पता लगाया और आज मिलने चली आई। काजल शुरू से बहुत महत्वाकांक्षी थी, इसी वजह से उसने शादी से ज्यादा महत्व अपने सपनों को पूरा करने में दिया। निशांत की शादी को बारह साल हो चुके थे उसका एक बेटा और एक बेटी थी। लेकिन निशांत ने महसूस किया कि निशांत की पारिवारिक जीवन जानने में काजल को कुछ खास दिलचस्पी नहीं थी। निशांत थोड़ा असहज भी था और काजल पहले की ही तरह बिल्कुल बिंदास। काजल ने बताया कि उसका तबादला इसी शहर में हुआ है। ये सुनकर निशांत पहले से भी ज्यादा असहज हो गया। चाय की चुस्कियां चल ही रही थी कि बारिश शुरू हो गई और निशांत अतीत में खो गया। रोज़ शाम को किसी रेस्तरां में चाय के बहाने वो घंटों एक दूसरे से बातें करते और जब कभी बारिश होती दोनों निशांत की बाइक में घूमने निकल जाते। रोज शाम साथ बिताना उनकी दिनचर्या में शामिल था। निशांत की दो छोटी बहनें थी। निशांत के घर वाले पहले निशांत की शादी करना चाहते थे ताकि भाभी के निर्देशन में दोनों छोटी बहनों की शादी अच्छे से हो सके। निशांत ने जब भी काजल से शादी की बात की उसने बात टाल दी कि उसे अभी अपने सपने पूरे करने हैं और वो किसी जिम्मेदारी में नहीं बंधना चाहती। और निशांत को अपनी जिम्मेदारी निभाने पूजा से शादी करनी पड़ी। इधर काजल आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई। सुशील सुगढ़ पूजा ने आते ही निशांत का पूरा घर संभाल लिया और जल्दी ही निशांत के दिल मे जगह बना ली। निशांत भी अब धीरे धीरे काजल को बिल्कुल भूल चुका था और अपनी छोटी सी दुनिया में खुश था। बारिश थम चुकी थी। चाय खत्म करके निशांत ने बोला चलो तुम्हें छोड़ देता हूँ। निशांत अपनी कार में काजल को छोड़ने गया। काजल का घर आ चुका था। अचानक काजल  ने निशांत का हाथ थाम लिया, और पूछा, "सच सच बताओ, क्या तुम्हें मेरी ज़रा सी भी याद नहीं आती?" निशांत अब और भी असहज हो गया, लेकिन मुस्कुराते हुए कहा, "काजल देर हो रही है, अब तुम्हें जाना चाहिए" काजल आंखों में आँसू लिए कार से उतरकर जाने लगी। बिना एक पल भी गँवाए निशांत तेजी से ऑफिस पहुंचा और तुरंत अपने स्थानांतरण की अर्जी दे दी। अब निशांत सहज भाव से अपनी टेबल में रखे अपनी फैमिली फोटो को देखकर मुस्कुरा रहा था।





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


23-11-2021

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मंगलवार, 23 नवंबर 2021

यादें,,

 यादें


यादों से ,


गहरा नाता है दिल का,


उन यादों में खो,


जी जाती हूँ,


एक बार फिर,


उन बीते लम्हों को,


जानती हूँ,


वो बीते लम्हे,


आज भी,


उतना ही दर्द देते हैं,


जितना कि,


तब देते थे,


जब उन्हें,


जी रही थी,


मानती हूँ,


भूल जाना ही अच्छा,


ऐसे दर्द देने वाली


यादों को,


पर क्या करूँ,


उन बीते लम्हों में


सुख-दुख का,


ऐसा ताना-बाना है कि,


हर तार उलझा हुआ है,


दूसरे कई तारों से,


याद कर खुशी का एक लम्हा,


मुस्कुरा देती हूँ फिर से,


दूसरे ही पल,


जुड़ जाता है ,


उस खुशी से जुड़ा,


दुःख का तार,


और मुस्कुराते हुए चेहरे पर,


सिकुड़ से जाते हैं होंठ,


अगले ही पल,


जुड़ जाता है दूसरा तार,


फिर से,


एक दूसरी खुशी से,


एक बार फिर उन लम्हों को जी,


खिल उठता है ये चेहरा,


और दिल को,


 एक सुकून मिलता है,


कि यादों के झरोखों से,


से खुशी और ग़म,


दोनों ही अपनी झलक दिखाएंगे,


बस कोशिश हमें करनी है,


कि भूल जाएं वो पल,


जो हमें तकलीफ़ देते हैं,


और जी लें एक बार फिर,


उन खुशी के लम्हों को,


जिन्हें दिल, 


बार-बार जीने की चाहत रखता है,


जो हमारे दिल को सुकून देता है,






✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


22/11/21


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बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

खुशी का सैलानी

 सुख के सैलानी


आज वर्षा का घर फूलों से सजा था। रसोई से पकवानों की खुशबू आ रही थी। नाते रिश्तेदार भी आये हुए थे। आज वर्षा की देवरानी नीति इस घर के पहले पोते को हॉस्पिटल से घर लेकर आ रही थी। सालों बाद इस घर में बच्चे की किलकारी गूँजी थी। वर्षा भी नए मेहमान के आगमन की तैयारी में जुटी हुई थी। एक ओर तो वह अपनी सूनी गोद की कसक भी मन में लिए हुए थी, लेकिन आंखों की कोरों से अपने आँसू छिपाते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए भाग भाग कर सारे इंतज़ाम कर रही थी। सासू माँ भी बड़ी बेसब्री से घर के पहले बच्चे का इंतज़ार कर रही थी


तभी दरवाज़े पर कार आकर रुकी। नीति और नरेश नए मेहमान को लेकर आ चुके थे । सब दरवाज़े की ओर बढ़े। सासु माँ भी पूजा की थाल लिए आगे बढ़ी। देखा तो वर्षा कहीं नजर नहीं आ रही थी। वर्षा सकुचाई सी सबसे पीछे खड़ी थी। 

सासूमाँ ने आवाज़ लगाई, "वर्षा, सामने आओ, तुम इसकी बड़ी माँ हो , पहली पूजा तुम ही करो, और स्वागत करो अपने बेटे का।"


वर्षा हतप्रभ सी सामने आई खड़ी ही हुई थी कि देवरानी नीति ने कहा, "बेटा तो अपनी बड़ी माँ के साथ ही घर में प्रवेश करेगा, क्यों बड़ी माँ" कहते हुए नीति ने बेटे को वर्षा की गोद में डाल दिया।


अब तक अपनी आंखों की कोरों से अपने आँसू छिपाती वर्षा की आंखों से आँसुओं का सैलाब निकल पड़ा।


खुशी के आंसुओं से भीगी उसकी पलकें कभी सासूमाँ, कभी नीति, और कभी उसके हाथों के नए मेहमान को निहारती।


नीति ने वर्षा को अपने पास खींच लिया। और सासूमाँ नए मेहमान के गृह प्रवेश की पूजा उसकी बड़ी माँ वर्षा की गोद में कर रही थी। आज ये नया मेहमान खुशी का सैलानी बनकर उसकी ज़िन्दगी में उसकी सबसे बड़ी खुशी बनकर आया था।


✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


26-10-2021

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वक्त के सिरहाने,,,

 वक्त के सिरहाने


(आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, )


वक़्त के सिरहाने,


आज भी रखी हुई है,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,




जब स्कूल की पहली कक्षा में पहला सबक सीखी थी,



फिर हर रोज़ स्कूल जाने को ज़िद किया करती थी,



हर दिन कुछ नया सीखने को कदम बढ़ाया करती थी,



असफलता से ना हार कर हर रोज़,


 नयी कोशिश किया करती थी,



और आज ये ज़िन्दगी बिना स्कूल जाए ही,

ना जाने कितने ही सबक रोज सीखा रही है,


ना चाहते हुए भी ज़िन्दगी में,

कुछ कड़वे कुछ मीठे अनुभव दे रही है,



लेकर ज़िन्दगी में कड़ी परीक्षा,

नए पाठ पढ़ा रही है,



सुकून की तलाश में भटकते इस मन को,

 रोज़ नयी जिम्मेदारियों से सजा रही है,






वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने दोस्तों के साथ )



वक़्त के सिरहाने,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,




जब दोस्तों की टोली होती थी,


हर त्यौहार मौजों की रंगोली होती थी,



दोस्तो के साथ हर मुश्किल ,


चुटकियों में हल होती थी,



हर शैतानी के बाद,


 बचकर निकल जाने की कला होती थी,



और आज हर लम्हा उन दोस्तों के बिना गुज़रता है, 


हर पल, हर लम्हा उनकी शिद्दत से ज़रूरत महसूस करता है,



जीवन के कुछ खास पलों में ,


उन दोस्तों का साथ चाहता है,



या  उन पुराने पलों में दोस्तों के पास,


 एक बार फिर से लौट जाना चाहता है,





वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने अपनों के साथ )





वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,



जब भाई बहनों के साथ मिलकर घर घर खेला करते थे,


होती थी चॉकलेट एक, जिसके लिए खूब लड़ा करते थे,



एक ही खिलौने से उसी वक्त हम सब खेलने को मचलते थे,


माँ पापा की गोद में एक साथ बैठ जाने को ज़िद करते थे,



और आज जब बड़े हो गए, 


तो मिलने को भी तरसते हैं,



बने हैं त्यौहारों में पकवान ढेर, 


पर साथ खाने को मचलते हैं,



हो जाये कितनी भी रोशनी,


पर उस रौनक को याद करते हैं,



जब साथ मिलकर हर त्यौहार का ,


हर पल जिया करते थे,





वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने वास्तविक वुज़ूद के साथ )




वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,



जब सर पर माँ का हाथ होता था,


हर कदम पर पिता का साथ होता था,



ग़र कदम लड़खड़ा जाते किसी मोड़ पर,


उस मोड़ पर संभालने , नयी राह दिखाने,


 माँ बाबा का विश्वास होता था,



आज जब बड़े हो गए,

अपनी जिम्मेदारियों में खो गए,


माँ बाबा से दूर, अपनी नयी दुनिया में खो गए,



जीवन के यथार्थ के धरातल पर मन ,


माँ बाबा की दी हर सीख अपनाना चाहता है,



या फिर छोटा बच्चा बन, माँ बाबा की गोद में ,


सुकून से सो जाना चाहता है, 




वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,


मेरे बचपन की वो अनुपम यादें,


मेरे बचपन की वो अनमोल यादें,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


26-10-2021

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सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

धरती-अम्बर

 धरती-अम्बर



है इस प्रकृति के दो अनमोल धरोहर,


एक धरती और एक अम्बर, 


एक गंभीर सहनशील,


एक असीम संभावनाएं लिए,


एक नव अंकुरण , नवजीवन देती,


एक उसे प्राणवायु से भर देती,


एक कहीं हरियाली से भरी, 


कहीं नदियों सी बल खाती,


एक दूर क्षितिज तक रोशनी से जगमगाती,


कभी चाँद तारों से सज जाती,


एक कि गोद में सर रख सुकून पाता ये सृजन,


एक की सुरक्षित आग़ोश में चैन से जीता ये संसार,


कोई तुलना नहीं दोनों की,


दोनों ही हैं अतुलनीय अनमोल,


प्रकृति के ख़ास उपहार हैं

ये धरती- अम्बर,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻 

24-10-2021


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शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

करवाचौथ


 


करवाचौथ



अगले दिन करवाचौथ था। उसे अकेले ही बाज़ार करवाचौथ की खरीदारी के लिए जाना पड़ा क्योंकि शशांक की नज़र में ये करवाचौथ जैसे व्रत सिर्फ दिखावा है। आज बाजार में काफी भीड़ थी, और धूप भी तेज थी, उसे प्यास भी लग रही थी, तो पास ही एक रेस्टोरेंट चली गई, अभी पानी का पहला घूँट पिया ही था कि दूर टेबल से एक स्त्री पुरुष की बातों और उनके ठहाकों की आवाज़ कानों में पड़ी, वो ठिठक गई, आवाज़ शशांक की ही थी। जल्दी से उसने दुपट्टे से अपना चेहरा छिपा लिया, और उस टेबल की ओर देखने की कोशिश की। वो शशांक ही था, साथ में उसकी सहकर्मी आशा भी साथ थी । शशांक ने आशा का हाथ थाम रखा था और आशा के साथ बहुत सारे शॉपिंग बैग थे। वो आज के शॉपिंग के बारे में ही बात कर रहे थे। अब वो और वहाँ रुक ना सकी, पास रख पानी का ग्लास उठाया, एक ही सांस में सारा पानी पी लिया और तेजी से रेस्टोरेंट से निकल गई। अब तक राशि शशांक के शराब और जुए की आदत से परेशान थी। बच्चों के सामने भी शशांक शशि पर हाथ उठाने से नहीं चूकता। और अब आशा और शशांक को इस तरह साथ देखकर उसकी रही सही उम्मीद भी जाती रही। देर रात शशांक नशे में धुत्त घर लौटा, और बिना खाना खाए ही सो गया। राशि भी सो गई, रोज का यही रूटीन था।



अगले दिन करवाचौथ को सुबह से ही राशि जल्दी उठ कर तैयार हो गई। घर रोज के काम निपटाए, बच्चों को स्कूल भेजा। अब तक शशांक भी तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया, बस वो इतना ही कह पाई आज करवाचौथ है शाम को जल्दी आना। राशि की बात लगभग अनसुना करते हुए शशांक ऑफिस के लिए निकल गया। 



राशि ने निर्जल व्रत रखा था। शाम को अच्छे से तैयार होकर राशि चाँद निकलने की प्रतीक्षा करने लगी। चाँद भी निकल आया। शशांक को ना आना था ये राशि को पता था तो बिना शशांक की प्रतीक्षा किये राशि ने अपनी पूजा शुरू की और प्रार्थना की है करवा माता इतने सालों से आपका व्रत कर रही हूँ, अब तो मुझे इस राक्षस से मुक्ति दो। पूजा पूर्ण कर राशि ने पूजा की थाली में रखा मिठाई का एक टुकड़ा मुँह में डाला और लोटे से जल का एक घूँट पीकर व्रत खोला। और चाँद को निहारने लगी। चाँद की रोशनी में उसका आत्मविश्वास से भरा चेहरा सौम्यता से दमक रहा था।





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


23-10-2021

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शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

एहसास




 एहसास



बचपन साथ बीता जिस तरह,


लड़ते झगड़ते लाड़ करते,


हर मुश्किल में साथ निभाते,


कभी एक दूसरे की गलती बताते,


कभी एक दूसरे की शैतानी छिपाते,


कभी माँ बाबा से शिकायत करते,


कभी रूठ जाते कभी मनाते,


आज मुझसे भाई तू यूँ रूठ गया,


छोटी छोटी बातें भी दिल से लगा लिया,


बचपन अब भी गया नहीं,


ये रूठने मनाने का खेल, अभी तक ख़त्म हुआ नहीं,


पराई हो गई अब तो मैं भी,


है बस कुछ तीज त्यौहारों का साथ,


रूठा जो रहा तू इस तरह, 


तेरा भी दिल दुखेगा मेरी तरह,


कब तक बारिश में बैठ, छिपायेगा ये आँसू तेरे भी,


कि ये अंधेरे और ये बारिश भी,


ना छिपा सकेगी एहसास तेरे,


याद रखना कि हर परिस्थिति में साथ देगी ये बहन तेरी,


जिस तरह आज छाता लिए, तुझे बचा रही इस बारिश से,


हमेशा हर मुश्किल से तुझे

बचा लेगी ये बहन तेरी ,,,




✍️तोषी गुप्ता✍️


22-10-2021

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गुरुवार, 16 सितंबर 2021

रात जाएगी सुबह आएगी

 रात जाएगी, सुबह आएगी,



हो जब नाउम्मीदी का मंजर,


मन में रख ये हौसला,


अंधेरे के बाद रौशनी लेकर ,


रात जाएगी सुबह आएगी,





हो जब राह हर मुश्किल,


कर ले तू हर मुमकिन कोशिश,


राह की हर मुश्किलें हटाकर,


रात जाएगी सुबह आएगी,




हो जब असफलता का डर,


कर ले तू मेहनत जी भरकर,


एक एक कदम सफल बनाकर,


रात जाएगी सुबह आएगी,





हो जब विश्वास खुद पर


हर लक्ष्य आसान बन जाएगी,


हो भले गहरा तिमिर


रात जाएगी सुबह आएगी,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


15-09-21

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रविवार, 29 अगस्त 2021

जाना पहचाना

 जाना-पहचाना




कभी-कभी कोई शख़्स, जाना पहचाना सा लगता है,


मिल जाये अनजाने में आंखें,


फिर बार-बार आंखें मिलाने को जी करता है,


दिख जाए एक बार,


तो बार -बार देखने को जी करता है,


देखकर उसे सुकून सा मिलता है,


मिलकर उससे बरसों का, नाता सा लगता है,


बातें कर उससे दिल की हर बात,


बयां करने को दिल करता है,


बाँट कर सुख दुख , 


दिल हल्का करने को जी करता है,


बिना पूछे ही उसे,


सब बताने को दिल करता है,


कभी कभी कोई शख़्स,


जाना पहचाना सा लगता है,,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


29-08-2021

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बुधवार, 11 अगस्त 2021

हरियाली तीज

 हरियाली तीज



धरा का श्रृंगार अनोखा,


पल पल रूप बदलता है,


सावन में हरियाली छाए,


नवरूप सुंदर सजता है,


उमड़ घुमड़ बदरिया बरसे,


कोयल बागों में कूकती,


बारिश की बूंदों में भीगकर,


जंगल में मोर पर फैलाती,


सखियाँ प्यारी गीत गुनगुनाती,


बागों में मगन झूला झूलती, 


बिन्दिया, चूड़ी, मेहन्दी लाली,


सोलह श्रृंगार में खूब सजती,


हरियाली तीज की धूम


चारों ओर मचती,


धानी चुनरिया ओढ़ कर 


पिया मिलन को तरसती ,


मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू,


चहुँ ओर बिखरती,


नए नए पकवानों से,


माँ की रसोई महकती,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


11-08-2021

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सोमवार, 9 अगस्त 2021

स्वर्णिम जीत

 स्वर्णिम जीत



जीत कर सोना नीरज ने 


स्वर्णिम इतिहास रचा है,


देश के जन मानस के मन में,


नीरज नाम बसा है,




राणा के वंशज के रूप में


फिर देश का नाम हुआ है,


दिखा जौहर भाला फेंक में,


विश्व पटल पर नाम हुआ है,




देख कर तिरंगा शिखर पर,


हर देशवासी का सीना चौड़ा हुआ है,


जन-गण-मन की धुन सुनकर,


सजल नेत्र मन आनंदित हुआ है,




भारत के गौरव के रूप में,


नीरज नाम गूँजा हुआ है,


तुम्हारे साथ हर देशवासी का भाल,


स्वर्णिम आभा से जगमगाया हुआ है,




✍️तोषी गुप्ता✍️


09-08-21

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जीत

 जीत


  


जीवन में कुछ कर जाने का


हौसला तू जगाए जा,


बड़ा हो या पग छोटा हो,


हर पल आगे बढ़ाए जा,




जज़्बा हो जीत जाने का जब,


हर घबराहट छिपाए जा,


आखिर में जीत तेरी होगी,


मन में ये विश्वास जगाए जा,




ग़र थक भी जाना कभी जब,


मन में स्फूर्ति जगाए जा,


थक कर चलना, थम कर चलना,


बढ़ते रहने का दौर चलाए जा,




साध का अपना लक्ष्य,


धीरे कदम बढ़ाए जा,


राह की हर मुश्किलें लांघ कर,


जीत की ओर नाव चलाए जा,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


09-10-21

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शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

सपने में दादा जी




 सपने में दादा जी




गहरी नींद में मैं सोया,


फिर जाने कब अपने सपनों में खोया,


बादलों के गहरे सागर में,


एक नाव में बैठा,


खुद को पाया,


गुमसुम सा बैठा,


निहारता चारों ओर,


बादलों के ऊपर भी,


टिमटिमाते तारे सब ओर,


दूर से पास आती रोशनी अचानक,


पहचान में बदलने लगी,


एक सितारे की पूंछ पकड़,


दादाजी की चाल पहचान आने लगी,


पास आ दादाजी ने हाल चाल जाना,


फिर अपनी बातों से खूब हँसाया,


ढेर सारी मन की बातें दादा जी को बताया,


जो न कह सका किसी से,


वो दादाजी को बताया,


अपनी उलझन भी दादा जी को बताई,


कई शिकायतें भी उनको सुनाई,


खूब बातें करते दादा जी,


मेरी हर उलझन सुलझाते दादा जी,


फिर थक कर सो गया दादा जी के कांधों पर,


 फिर खो गया सपने के सपनों में,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻



06-08-2021

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सोमवार, 2 अगस्त 2021

ये दोस्तों का साथ

 ये दोस्तों का साथ,,,



मिल जाये जब दोस्तों का साथ,


सारे गम भुला कर,


 मिल जाये एक नई आस,


हर खुशी बाँट लें,हर ग़म बाँट लें,


मन की हर दुविधा बाँट लें,


ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त को पूरी करने की सलाह माँग ले,


बैठ कर चाय की टपरी में,


बारिश का आनंद ले लें,


एक समोसे पर टूट पड़ सब साथ,


हर एक टुकड़े का मज़ा ले लें,


एक की मुसीबत में सब साथ खड़े हों,


हर विपदा से खुद लड़ लें,


दोस्त की खुशी में खुश होकर,


उसके साथ जश्न भी मना लें,


ऐसा होता दोस्तों का साथ,


हर पल कराता अहसास,


कि तुम अकेले नहीं हो,


खुशी हो या ग़म हो,


हमारा साथ हरदम हो,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


02-08-2010

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गुरुवार, 29 जुलाई 2021

कहवे की चाय

 संस्मरण


कहवे की चाय


बात तब की है जब हम परिवार सहित कश्मीर घूमने गए थे। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर वाकई स्वर्ग सी अनुभूति देता है। यहां की ख़ूबसूरत वादियाँ , खुशनुमा मौसम वाकई दिल को छू लेने वाला है। हम लोग कश्मीर में श्रीनगर के पास सोनमर्ग गए । वहां रोपवे से हम बीस मिनट की यात्रा करके ऊपर गए जहाँ ऊँचे पहाड़ों के बीच बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई थी। हमारा बर्फ के बीच ये पहला अनुभव था। हाथ पैर पूरे ढके होने के बाद भी ठंडे हुए जा रहे थे। तभी हल्की बारिश भी शुरू हो गई। एकदम हल्की लेकिन ठंडी फुहारों के बीच हम लगभग कांप रहे थे। ऐसे समय में हमारे गाइड ने हमसे कहवे की चाय पीने की गुजारिश की और बताया कि ये शरीर को गर्मी देगा। बर्फ के बीच हल्की बारिश की फुहारों के बीच हमने गर्म गर्म कहवे की चाय का आनंद लिया जिससे थोड़ी राहत मिली। सचमुच ये कहवे की चाय ताउम्र याद रहेगी।



✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


29-07-2021

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मंगलवार, 27 जुलाई 2021

आस्तीन के साँप

 आस्तीन के साँप





ऐसे हंसकर मिला करते हैं,


जैसे अपने हों मेरे


बात बात में समझाइश देते,


जैसे शुभचिंतक हों सबसे बड़े मेरे,


हर खुशी में मेरे खुश होते,


हर दुख में मेरे साथ दुखी,


परेशानी में साथ आते ऐसे,


जैसे वो न होते तो बात बनती कैसे,


हर बात से अनजान 


हम भी भरोसा करते उन पर


अक्सर हाल ए दिल बयान करते


खुद से भी ज्यादा विश्वास करते उन पर


बहुत खतरनाक ये होते हैं 


आस्तीन के साँप जो कहलाते हैं


लेकर हमारा ही सहारा,


निगलने को हमेशा तैयार रहते हैं,


पहचान कर इनको दूरी बनाना है ज़रूरी,


प्रेम से निभाकर इन्हें वश में करना है ज़रूरी,





✍️तोषी गुप्ता✍️


27-07-2021



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मौन स्वीकृति

 *मौन स्वीकृति*


एक एक्सीडेंट ने पिता को व्हीलचेयर पर बिठा दिया नौकरी भी छूट गई। ऐसे समय में सविता जो अभी अभी बारहवीं पढ़कर निकली थी, बड़ी होने के कारण उसके कंधों पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई। सविता ने भी अपनी जिम्मेदारी पूरी करने की ठानी और कॉलेज की प्राइवेट पढ़ाई करते हुए घर पर ट्यूशन पढ़ने लगी। बचपन से ही मेधावी सविता की ट्यूशन चल निकली। धीरे धीरे सविता पोस्ट ग्रेजुएट के बाद अपने ही कॉलेज में व्याख्याता हो गई। इधर घर की जिम्मेदारी भी उसने पूरी ईमानदारी से निभाई। छोटी बहन की उच्च शिक्षा पूरी करवाई।उसकी शादी करवाई। छोटे भाई को पढ़ाया लिखाया, उसको भी बैंक में अफ़सर बनाया। परिवार के चलते अपनी कभी सुध ही नहीं ली। अब उम्र भी चालीस के पार हो गई थी। छोटे भाई की भी शादी कर सविता चिंतामुक्त हो जाना चाहती थी। लेकिन भी भी ज़िद पर अड़ा था, कि पहले दीदी का घर बसेगा फिर उसका। अपने भाई को इस तरह घर की जिम्मेदारी स्वयं पर लेटे देख सविता को संतुष्टि थी कि अब उसका भाई हर तरह की जिम्मेदारी उठाने तैयार है, और उसने अपनी शादी की मौन स्वीकृति भाई को दे दी। 



,✍️तोषी गुप्ता✍️

27-07-2021

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बुधवार, 21 जुलाई 2021

कुछ पल अपने लिए

 कुछ पल अपने लिए




सुबह की पहली सुनहरी किरण को,


आंखों  में समा लेती हूँ,


रोज़ सुबह सबके उठने के पहले ,


कुछ इन पलों को अपने लिए जी लेती हूं,





किचन में सबके लिए नाश्ता बना,


सबका टिफ़िन भी तैयार कर देती हूँ,


फिर एक कप चाय खुद के लिए बना,


बालकनी में जा कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





पति और खुद के ऑफिस की है भागमभाग,


बच्चों के बस की भी है चिंता,


इस बीच आईने के सामने जा बिंदी और सिन्दूर लगाते,


खुद को निहार कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





ऑफिस की फाइलों के ढेर को निपटा,


सहकर्मियों के भी काम में हाथ बँटा देती हूँ,


ऑफिस से लौटते ट्रेन की खिड़की से बाहर निहारते,


जज्बातों को डायरी में उतारते कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





घर पहुँच कर बच्चों का होमवर्क कराती,


पतिदेव को चाय और पकोड़े परोसती,


शाम की आरती में आंखें बंद कर,


 कुछ पल अपने लिए भी जी लेती हूं,





बच्चों की दिन भर की खुशी में खुश होती,


रात को पति के कांधों पर सर रख सुकून का अहसास करती,


दिन भर के पलों से कुछ पल अपने लिए चुराती,


सच में कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


21-07-2021

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शनिवार, 17 जुलाई 2021

दोस्तों का साथ


 

दोस्तों का साथ




हाथों में हाथ हो,


दोस्तों का साथ हो,


ज़िन्दगी भी खुशहाल हो,


ज़िन्दगी का हर पल बहार हो,




चाहे कितनी भी आएं मुश्किलें,


हर हाल में खुशी खुशी जी लेंगे,


चाहे कितनी भी आये रुकावटें,


सब दोस्त मिल आगे बढ़ जाएंगे,




एक- दूजे का हाथ थामे,


एक दूजे का सहारा बनते जाएंगे,


एक जो गिरा लड़खड़ा कर,


उसकी बैसाखी बन जाएंगे,




मंजिल चाहे अलग हो,


साथ ही आगे बढ़ना है,


साथी की राह में जो आये मुश्किल,


सबको मिलकर सुलझाना है,




एक दूजे से ना ईर्ष्या ना बैर,


ना ही कोई मत भेद,


हर हालात का करना है सामना,


बिना आपस में कोई मनभेद,




साथ मिलकर जीवन में अपने,


हर कदम साथ आगे बढ़ाएंगे,


एक दूजे के सुख दुख का साथी बनकर,


एक सुखद जीवन बिताएंगे,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


17-07-2021

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बुधवार, 14 जुलाई 2021

गीत कोई गुनगुनाओ

 गीत कोई गुनगुनाओ



सूनी सूनी सी कक्षाएं,


सूना सूना सा ये खेल का मैदान,


बच्चों की राह ताकता,


स्कूल हो गया है वीरान ,


ये सूना ब्लैकबोर्ड,


और सूना कॉरिडोर,


वो कैंटीन का कोना,


और लाइब्रेरी की पुस्तकें,


वो लैब की शांति,


वो स्पोर्ट्स रूम की तुम्हारी मस्ती,


वो स्कूल की घंटी,


वो प्रेयर की गूंज,


वो स्कूल में तुम संग उत्सव मनाना,


हर त्यौहार का दोबारा मज़ा लेना,


वो एनवल फंक्शन की रौनक,


वो स्पोर्ट्स डे के कॉम्पिटिशन,


वो राष्ट्रीय त्योहारों का आनंद,


वो बैंड की धुन, वो बूंदी का पैकेट,


सब कुछ बहुत याद आता है ,


बार बार दिन उस समय को याद करता है,


तुमसे ही तो बच्चों रौनक थी,


हर शिक्षक की तुमसे ही पहचान थी,


गीत कोई गुनगुनाओ अब तुम,


स्कूल लौट आओ अब तुम,


थक गई आंखें अब  इसऑनलाइन पढ़ाई से,


दिल मचलता है अब , प्यारे बच्चों मिलने को तुमसे,





✍️तोषी गुप्ता✍️

14-07-2021





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अनुभूति

 अनुभूति




आज पिता अनिल की आंखों में खुशी के आंसू थे । बिटिया श्रुति को आई आई टी पलक्कड़ (केरल) से एम टेक करने स्कोलरशिप मिली थी।



 कितने परेशान हो रहे थे वो तीन बेटियां और उनकी आर्थिक स्थिति। गांव में एक  रेडियो और पंखे बनाने की एक छोटी सी दुकान थी,और  थोड़ी खेतीबाड़ी। बमुश्किल सबकी ज़रूरतें पूरी हो पाती। बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए पिता गांव में अकेले रहकर काम करते और पत्नी और बच्चों को पढ़ने शहर भेज दिया। बेटियां भी एक से बढ़कर एक होनहार और पढ़ाई में तेज। 



बड़ी बेटी श्रुति पूरे प्रदेश में अव्वल थी। बारहवीं में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया था उसने। मेरिट में आने पर उसे बहुत सारे उपहार भी प्राप्त हुए थे शासन की ओर से। लेकिन उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त ना थे।वो बी टेक कर रही थी लेकिन अब भी पिता श्रेया की उच्च शिक्षा को लेकर थोड़े चिंतित थे।



 आज इस खबर ने मानों पूरे परिवार को सुखद अनुभूति से सराबोर कर दिया। श्रेया के भविष्य को लेकर पिता निश्चिंत थे। और खुद श्रेया भी स्कॉलरशिप मिलने से बहुत खुश और निश्चिंत थी।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


13-07-2021

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शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

एक नई सुबह

 एक नई सुबह




आज मौसम बड़ा खुशगवार है,


ये खूबसूरत सुबह,


गुनगुनाती धूप


और उस पर 


ये बालकनी में 


चाय की चुस्कियों के साथ


अख़बार की ख़बरें


पास ही झूला झूलते


छोटी बहन की हंसी


मेरी छोटी सी फुलवारी में


फुदकती नन्हीं चिड़िया


नीले आसमान की खूबसूरती


ठंडी हवा की मादक बयार


बालकनी से दिखती 


वो सुंदर सड़क


चाय की गुमटी पर गप्पें मारते


वो लड़के-लड़कियों का झुंड


सड़क किनारे लगे ताज़े फलों के ठेले


दूजी ओर ताजी सब्जियों की पंक्ति


अंदर  किचन से आती मम्मी की आवाज़


बीच बीच में पापा की गुनगुनाने की आवाज़


कभी भाई का आकर चिकोटी काट जाना


कभी दोनों छोटों का आपस में लड़ना


ऐसा लगा जैसे सब कुछ नया हो,


जैसे इस सुबह की हर बात निराली हो,


ऐसा नहीं कि ये सब पहली बार हो


दिन वही था, लोग वही थे


बस बदला था कुछ मेरे साथ


हुआ यूँ कि 


मोबाइल मेरा बिगड़ गया


और खूबसूरत ये दिन दिखा गया


काफी दिनों बाद आज


बालकनी में आना हुआ


मोबाइल से परे भी एक दुनिया है


ये जानना हुआ


मोबाइल की आभासी दुनिया में 


रात दिन जहाँ कटते थे


हर रिश्ते भी जहाँ


मोबाइल पर ही निभते थे


आज ये जानना हुआ


ये दुनिया कितनी प्यारी है एहसास हुआ


अब ठाना मन में एक बात


मोबाइल को ना बनने देंगे 


अपनी हसीं दुनिया की फांस


करके मोबाइल का सीमित उपयोग


करेंगे समय का भी सदुपयोग






✍️तोषी गुप्ता✍️

09-07-2021

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लौट आओ न

 लौट आओ न




देख कर बेटे की सफलता


पिता फुले नहीं समा रहे थे


आखिर बेटा अव्वल था


पूरे प्रदेश में,


जमा पूंजी सब इकट्ठी करके


लगा दिए बेटे का भविष्य सँवारने


होनहार बेटे की


हर कदम पर सफलता देखने


दिन प्रतिदिन आगे बढ़ता बेटा


पिता का नाम रोशन करता


अब बेटा बड़ा अफ़सर बनकर


खूब कमाई भी करता


गाँव की गलियां अब छूटी,


और छूट गए बचपन के यार,


हर कदम पर जो साथ रहते,


उसकी हर सफलता पर खूब तालियाँ बजाते,


बेटा अब रंग चुका था


शहर के रंग में


अपनी व्यस्त दिनचर्या और


गुलाबी शाम के संग में


जिस पिता के साथ अपनी हर खुशी बाँटता


आज उसी पिता से बात करने से कतराता


पिता आस लगाए राह देखते


सूनी गलियों में अपने बेटे के आने की राह ताकते


हर पल हर दिन जिसने अपने बेटे की


हर खुशी चाही,


आज उसी बेटे ने उनकी,


कोई परवाह ना करनी जानी,


पिता की आँख उसे देखने को तरसती 


"लौट आओ न बेटा" हर पल कहकर


अब उनकी ज़िंदगी कटती






✍️तोषी गुप्ता✍️


09-07-2021


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तुम्हारा प्रेम

 तुम्हारा प्रेम



अपने प्रेम के मोहपाश में,


बांध लो मुझको इस तरह,


मिल जाये रूह से रूह,


और लोगों को ख़बर भी ना हो किसी तरह,


डूब जाऊँ तुम्हारे प्रेमरस में,


जैसे राधा डूबी कृष्णा संग,


सारी रात रास रचाये,


प्रेमरस में भीग जाए अंग अंग,


पनाह पाऊँ तुम्हारे आगोश में,


खिल जाऊँ पाकर साथ तुम्हारा,


सर झुका के तुम्हारे सजदे पर


दुआ मांगू  मैं रब से , मेरा से हो जाऊं हमारा,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


09-07-2021

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सोमवार, 5 जुलाई 2021

शब्द

शब्द



शब्द जो दिल में आते हैं


काग़ज़ में उतार देते हैं,


मन में आये भावों को,


मोती सा माला में पिरो देते हैं,




खुशी हो या ग़म,


भाव ख़ुद ब ख़ुद आ जाते हैं,


ये वो अनदिखे शब्द हैं,


जो दिल में चित्र बनाते हैं,




शब्द ही हैं जो, 


मरहम लगाते हैं,


शब्द ही हैं,


जो तीर से चुभ जाते हैं




ख़्वाबों में जो देखा,


उसे लफ़्ज़ों में ढाल देते हैं,


हकीक़त में मिले दर्द को,


कविताओं में सजा देते हैं





मौन की भाषा को, 


शब्दों का रूप देते हैं,


अनकहे जज़्बात हैं फिर भी,


दिल में उतर शोर मचाते हैं,





✍🏻तोषी गुप्ता✍️


05-07-2021

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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

अंतर्नाद

 अंतर्नाद



आईने के सामने बैठी आँचल खुद को आईने में निहार रही थी। उसने हल्की ग़ुलाबी साड़ी पहनी हुई थी। खुले बालों में कानों में छोटे झुमके पहनी आँचल बहुत सौम्य लग रही रही। कमरे के एक कोने में सरिता कुर्सी में बैठी कभी अपनी बेटी आँचल को देखती तो कभी खिड़की से बाहर मुख्य दरवाजे को। तभी मुख्य दरवाजे पर एक कार आकर रुकी और सरिता में दरवाजे की ओर भागी। उनके पति सौरभ ने दरवाजा खोला और मेहमान अंदर आ गए।



आज लड़के वाले आँचल को देखने आये थे। औपचारिक बातचीत के बाद सरिता ने आँचल को आवाज़ लगाई। कॉलेज की आत्मविश्वासी प्रोफेसर आँचल आज थोड़ी नर्वस थी। धीरे कदमों से उसने कमरे में प्रवेश किया। सबकी नजरें आँचल पर ही थी। शालीनता से उसने सभी के सवालों का जवाब दिया।



कुछ देर बाद लड़के की माता ने कहा, लड़की तो हमें पसंद है, बस रंग ज़रा सा दबा हुआ है, फिर भी हम शादी के लिए तैयार हैं अगर आप शादी में एक कार और शगुन के पाँच लाख रुपये दें तो। 



सौरभ सहमति जताते हुए बोले," जी, ज़रूर,,,"



अब तक शालीनता से सभी के सवालों का जवाब देती आँचल अचानक उठ खड़ी हुई तो सबसे हाथ जोड़ते हुए बोली, क्षमा कीजिये, अब इस घर में और किसी बेटी की कीमत नहीं लगाई जाएगी, मुझे ये शादी मंज़ूर नहीं है" 



"और मुझे भी,,," अपनी तलाकशुदा बड़ी बेटी के साथ बैठी सरिता ने आज अपने अंतर्नाद को छिपाते हुए दृढ़ता से कहा। क़ाश उसने यही जवाब अपनी बड़ी बेटी के रिश्ते के समय दिया होता तो आज उसकी बड़ी बेटी की यह स्थिति नहीं होती।




✍️तोषी गुप्ता✍️


01-07-2021

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गुरुवार, 1 जुलाई 2021

ब्लैकबोर्ड

 ब्लैकबोर्ड 



टीचर दीदी के साथ वो आती। एक कंधे पर एक थैला लटकाए जिसमें गुड़िया की दूध की बोतल, पानी की बोतल, कुछ खिलौने, डायपर और कुछ दवाइयाँ होती। और दूसरे हाथ से गुड़िया को सावधानी से गोदी किये हुए। उम्र यही कोई 11-12 साल रही होगी उमा की। खुद गुड़ियों से खेलने की उम्र में अपने नाज़ुक हाथों से एक जीती जागती गुड़िया को संभालती वह टीचर दीदी की एक आवाज़ पर उसके सामने होती। 



इधर टीचर दीदी क्लास में पढ़ाती और उमा क्लास में ही एक कोने में गुड़िया को गोद लिए रहती। गुड़िया के जागने पर कभी उसे बाहर घुमा लाती तो कभी अपने हाथों को झूला बना गुड़िया को झुलाती। क्लास में रहते अक़्सर उसकी नज़र टीचर दीदी की बातों और उसके पढ़ाने पर होती। बड़े ध्यान से सुनती वह जब टीचर दीदी कुछ समझा रही होती। कभी ब्लैकबोर्ड पर लिखे शब्दों को बड़े ग़ौर से देखती।



 एक दिन टीचर दीदी से गणित का एक सवाल ब्लैकबोर्ड पर लिखा और उसे हल करने बच्चों को बोला, लेकिन कोई उस सवाल को हल ना कर सका। 



अचानक उमा ने टीचर दीदी से कहा, "टीचर दीदी , इसका उत्तर ये होगा ।" 



अवाक सी खड़ी टीचर दीदी अब उमा को देख रही थी। 



"इधर आओ, ब्लैकबोर्ड में हल करके दिखाओ" टीचर दीदी ने कहा,



उमा ने झट चॉक उठाई और सवाल हल कर दिखाया। 



टीचर दीदी बहुत खुश हुई, उसने पूछा "कहाँ तक पढ़ी हो", 



उमा ने उत्साह से बताया "पांचवी तक पढ़े हैं हम, गाँव की पाठशाला में जाते थे, तब ब्लैकबोर्ड में हम ही सवाल हल करते थे, अव्वल आते थे हम। अब भाई स्कूल जाने लगा, इंग्लिश मीडियम, तो माँ बाबूजी ने हमारी पढ़ाई छुड़ा काम पर लगा दिया हमें, भाई की स्कूल फीस भी भरनी है न" सब कुछ एक ही सांस में बोल दिया उमा ने,



उसकी बातें सुन टीचर दीदी ने मन ही मन सोचा, जिसने बिना ब्लैकबोर्ड मन ही मन सवाल हल कर दिया उसे ब्लैकबोर्ड वाली शिक्षा मिल जाये तो उमा ज़िन्दगी में बहुत कुछ कर सकती है। 



अब टीचर दीदी ने उमा को काम के साथ पढ़ाई कराने का भी निश्चय किया और चल पड़ी किसी की ज़िंदगी को ब्लैकबोर्ड से उजला बनाने।




✍️तोषी गुप्ता✍️


01-07-2021

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एक स्त्री का मौन

एक स्त्री का मौन




एक स्त्री के मौन को 


कभी उसकी कमजोरी ना समझना,


कभी बहुत कुछ,उबल रहा होता है,


कभी बहुत कुछ सुलग रहा होता है,


कभी बहुत कुछ,जनम रहा होता है,


कभी बहुत कुछ मर रहा होता है,


कभी बहुत कुछ बदल रहा होता है


कभी बहुत कुछ ठहर रहा होता है,


कभी बहुत कुछ समाहित होता मन में,


कभी बहुत कुछ खाली होता ज़हन से,


कभी बहुत कुछ कुलबुलाता,


कभी बहुत कुछ थम सा जाता,


कभी बहुत कुछ शांत हो जाता,


कभी बहुत कुछ शोर मचाता,


बहुत राज़ छिपे होते हैं


एक स्त्री के उस मौन के पीछे,


वक़्त आने पर ,


बिजली सी कौंध सा,


बोल पड़ता उसका मन,


और तब थम सा जाता वक़्त,


और शांत धीर- गंभीर 


मनन करता पुरुष अपने किये का,


और झुक जाता स्त्री के उस,


मौन की आवाज़ के समक्ष,





✍️तोषी गुप्ता✍️


01/07/2021



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