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सोमवार, 7 मार्च 2022

नारी मन की चाह ***

 *नारी मन की चाह*




मोहताज़ नहीं है नारी,एक दिन के सम्मान की,


वो तो चाहे ये सम्मान,हर दिन ,हर पल , हर क्षण, हर कदम, हर नज़र मान की,




ना वो चाहे नाटकीय मंच का अभिमान,


वो तो चाहे वास्तविक जीवन में स्वाभिमान, 




ना वो चाहे स्वयं पर पुरुषोचित्त रुग्ण मानसिकता का अधिकार,


वो तो चाहे हर कदम एक सुरक्षित साथ का हमराह,




ना वो चाहे कहलाना खुद को अबला नारी,


वो तो चाहे वक्त पड़े तो बन जाये वो दुर्गा भी और काली,




ना वो चाहे जीवन ढोना, बन स्वामी की दासी,


वो तो चाहे संवार देना जीवन, बन कर अर्धांगिनी,




ना वो चाहे बाँधा जाए उसे हर पल सीमाओं में,


वो तो चाहे उड़ना ऊंचे, असीम संभावनाओं के आकाश में,




ना वो चाहे प्रताड़ना ऐसी नर आरोपित आक्षेप,


वो तो चाहे सदैव खड़े रहना, संग नर के सापेक्ष,




ना वो चाहे उठे कोई प्रश्न उसके अस्तित्व पर,


वो तो चाहे मान मिले,उसे उसके नारीत्व पर,




वक्त ये आन पड़ा, ये मर्म समझा जाये,


नारी मन की मासूम चाह ये,हर दिल महसूस किया जाये,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


07-03-2022

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