एक स्त्री का मौन
एक स्त्री का मौन
एक स्त्री के मौन को
कभी उसकी कमजोरी ना समझना,
कभी बहुत कुछ,उबल रहा होता है,
कभी बहुत कुछ सुलग रहा होता है,
कभी बहुत कुछ,जनम रहा होता है,
कभी बहुत कुछ मर रहा होता है,
कभी बहुत कुछ बदल रहा होता है
कभी बहुत कुछ ठहर रहा होता है,
कभी बहुत कुछ समाहित होता मन में,
कभी बहुत कुछ खाली होता ज़हन से,
कभी बहुत कुछ कुलबुलाता,
कभी बहुत कुछ थम सा जाता,
कभी बहुत कुछ शांत हो जाता,
कभी बहुत कुछ शोर मचाता,
बहुत राज़ छिपे होते हैं
एक स्त्री के उस मौन के पीछे,
वक़्त आने पर ,
बिजली सी कौंध सा,
बोल पड़ता उसका मन,
और तब थम सा जाता वक़्त,
और शांत धीर- गंभीर
मनन करता पुरुष अपने किये का,
और झुक जाता स्त्री के उस,
मौन की आवाज़ के समक्ष,
✍️तोषी गुप्ता✍️
01/07/2021
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