कुछ पल अपने लिए
कुछ पल अपने लिए
सुबह की पहली सुनहरी किरण को,
आंखों में समा लेती हूँ,
रोज़ सुबह सबके उठने के पहले ,
कुछ इन पलों को अपने लिए जी लेती हूं,
किचन में सबके लिए नाश्ता बना,
सबका टिफ़िन भी तैयार कर देती हूँ,
फिर एक कप चाय खुद के लिए बना,
बालकनी में जा कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,
पति और खुद के ऑफिस की है भागमभाग,
बच्चों के बस की भी है चिंता,
इस बीच आईने के सामने जा बिंदी और सिन्दूर लगाते,
खुद को निहार कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,
ऑफिस की फाइलों के ढेर को निपटा,
सहकर्मियों के भी काम में हाथ बँटा देती हूँ,
ऑफिस से लौटते ट्रेन की खिड़की से बाहर निहारते,
जज्बातों को डायरी में उतारते कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,
घर पहुँच कर बच्चों का होमवर्क कराती,
पतिदेव को चाय और पकोड़े परोसती,
शाम की आरती में आंखें बंद कर,
कुछ पल अपने लिए भी जी लेती हूं,
बच्चों की दिन भर की खुशी में खुश होती,
रात को पति के कांधों पर सर रख सुकून का अहसास करती,
दिन भर के पलों से कुछ पल अपने लिए चुराती,
सच में कुछ पल अपने लिए जी लेती हूं,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
21-07-2021
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें