खुशी का सैलानी
सुख के सैलानी
आज वर्षा का घर फूलों से सजा था। रसोई से पकवानों की खुशबू आ रही थी। नाते रिश्तेदार भी आये हुए थे। आज वर्षा की देवरानी नीति इस घर के पहले पोते को हॉस्पिटल से घर लेकर आ रही थी। सालों बाद इस घर में बच्चे की किलकारी गूँजी थी। वर्षा भी नए मेहमान के आगमन की तैयारी में जुटी हुई थी। एक ओर तो वह अपनी सूनी गोद की कसक भी मन में लिए हुए थी, लेकिन आंखों की कोरों से अपने आँसू छिपाते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए भाग भाग कर सारे इंतज़ाम कर रही थी। सासू माँ भी बड़ी बेसब्री से घर के पहले बच्चे का इंतज़ार कर रही थी
तभी दरवाज़े पर कार आकर रुकी। नीति और नरेश नए मेहमान को लेकर आ चुके थे । सब दरवाज़े की ओर बढ़े। सासु माँ भी पूजा की थाल लिए आगे बढ़ी। देखा तो वर्षा कहीं नजर नहीं आ रही थी। वर्षा सकुचाई सी सबसे पीछे खड़ी थी।
सासूमाँ ने आवाज़ लगाई, "वर्षा, सामने आओ, तुम इसकी बड़ी माँ हो , पहली पूजा तुम ही करो, और स्वागत करो अपने बेटे का।"
वर्षा हतप्रभ सी सामने आई खड़ी ही हुई थी कि देवरानी नीति ने कहा, "बेटा तो अपनी बड़ी माँ के साथ ही घर में प्रवेश करेगा, क्यों बड़ी माँ" कहते हुए नीति ने बेटे को वर्षा की गोद में डाल दिया।
अब तक अपनी आंखों की कोरों से अपने आँसू छिपाती वर्षा की आंखों से आँसुओं का सैलाब निकल पड़ा।
खुशी के आंसुओं से भीगी उसकी पलकें कभी सासूमाँ, कभी नीति, और कभी उसके हाथों के नए मेहमान को निहारती।
नीति ने वर्षा को अपने पास खींच लिया। और सासूमाँ नए मेहमान के गृह प्रवेश की पूजा उसकी बड़ी माँ वर्षा की गोद में कर रही थी। आज ये नया मेहमान खुशी का सैलानी बनकर उसकी ज़िन्दगी में उसकी सबसे बड़ी खुशी बनकर आया था।
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
26-10-2021
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