सपने में दादा जी
सपने में दादा जी
गहरी नींद में मैं सोया,
फिर जाने कब अपने सपनों में खोया,
बादलों के गहरे सागर में,
एक नाव में बैठा,
खुद को पाया,
गुमसुम सा बैठा,
निहारता चारों ओर,
बादलों के ऊपर भी,
टिमटिमाते तारे सब ओर,
दूर से पास आती रोशनी अचानक,
पहचान में बदलने लगी,
एक सितारे की पूंछ पकड़,
दादाजी की चाल पहचान आने लगी,
पास आ दादाजी ने हाल चाल जाना,
फिर अपनी बातों से खूब हँसाया,
ढेर सारी मन की बातें दादा जी को बताया,
जो न कह सका किसी से,
वो दादाजी को बताया,
अपनी उलझन भी दादा जी को बताई,
कई शिकायतें भी उनको सुनाई,
खूब बातें करते दादा जी,
मेरी हर उलझन सुलझाते दादा जी,
फिर थक कर सो गया दादा जी के कांधों पर,
फिर खो गया सपने के सपनों में,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
06-08-2021
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