ख्वाहिशें
ख्वाहिशें
अक़्सर अपने कमरे की खिड़की से,
बाहर आसमान को निहारते हुए,
खो सी जाती हूँ कहीं,
डूब सी जाती हूं,
अपने ख्वाहिशों के समंदर में,
वो ख्वाहिशें,
जो सोचकर ही सुकून सा दे जाती हैं,
महसूस कर, जीने की नई उम्मीद दे जाती है,
दूर पहाड़ों की बस्ती में,
गहरी और शांत झील,
जैसे बहुत कुछ समाई हो खुद में,
किनारे पर रखी कुर्सी,
बरबस ही मुझे,
अपनी ओर खींचती,
जहाँ बैठ मैं खुद को संवार सकूँ,
खुद को पहचान सकूँ,
खुद से बातें कर, खुद को जान सकूँ,
इस गहरे शांत झील के हृदय में समाए रहस्य को,
सुलझा सकूँ,
दूर क्षितिज से आती रोशनी की किरणों की ऊर्जा को,
खुद में समा सकूँ,
पक्षियों के कलरव के संगीत को अपने जीवन में महसूस कर सकूं,
ठंडी बहती मादक बयार की छुवन को हमेशा के लिए साथ रख सकूँ,
फुरसत के इन पलों को सहेज कर रखना चाहती हूँ सदा के लिए,
इसलिए, नई उम्मीद, नए ख्वाहिशों को जीने,
हर रोज़ बरबस ही दौड़ी चली आती हूँ,
अपने कमरे की खिड़की की ओर,
अपनी नई ख्वाहिशों की ओर,,,,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
3/12/21
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