ब्लैकबोर्ड
ब्लैकबोर्ड
टीचर दीदी के साथ वो आती। एक कंधे पर एक थैला लटकाए जिसमें गुड़िया की दूध की बोतल, पानी की बोतल, कुछ खिलौने, डायपर और कुछ दवाइयाँ होती। और दूसरे हाथ से गुड़िया को सावधानी से गोदी किये हुए। उम्र यही कोई 11-12 साल रही होगी उमा की। खुद गुड़ियों से खेलने की उम्र में अपने नाज़ुक हाथों से एक जीती जागती गुड़िया को संभालती वह टीचर दीदी की एक आवाज़ पर उसके सामने होती।
इधर टीचर दीदी क्लास में पढ़ाती और उमा क्लास में ही एक कोने में गुड़िया को गोद लिए रहती। गुड़िया के जागने पर कभी उसे बाहर घुमा लाती तो कभी अपने हाथों को झूला बना गुड़िया को झुलाती। क्लास में रहते अक़्सर उसकी नज़र टीचर दीदी की बातों और उसके पढ़ाने पर होती। बड़े ध्यान से सुनती वह जब टीचर दीदी कुछ समझा रही होती। कभी ब्लैकबोर्ड पर लिखे शब्दों को बड़े ग़ौर से देखती।
एक दिन टीचर दीदी से गणित का एक सवाल ब्लैकबोर्ड पर लिखा और उसे हल करने बच्चों को बोला, लेकिन कोई उस सवाल को हल ना कर सका।
अचानक उमा ने टीचर दीदी से कहा, "टीचर दीदी , इसका उत्तर ये होगा ।"
अवाक सी खड़ी टीचर दीदी अब उमा को देख रही थी।
"इधर आओ, ब्लैकबोर्ड में हल करके दिखाओ" टीचर दीदी ने कहा,
उमा ने झट चॉक उठाई और सवाल हल कर दिखाया।
टीचर दीदी बहुत खुश हुई, उसने पूछा "कहाँ तक पढ़ी हो",
उमा ने उत्साह से बताया "पांचवी तक पढ़े हैं हम, गाँव की पाठशाला में जाते थे, तब ब्लैकबोर्ड में हम ही सवाल हल करते थे, अव्वल आते थे हम। अब भाई स्कूल जाने लगा, इंग्लिश मीडियम, तो माँ बाबूजी ने हमारी पढ़ाई छुड़ा काम पर लगा दिया हमें, भाई की स्कूल फीस भी भरनी है न" सब कुछ एक ही सांस में बोल दिया उमा ने,
उसकी बातें सुन टीचर दीदी ने मन ही मन सोचा, जिसने बिना ब्लैकबोर्ड मन ही मन सवाल हल कर दिया उसे ब्लैकबोर्ड वाली शिक्षा मिल जाये तो उमा ज़िन्दगी में बहुत कुछ कर सकती है।
अब टीचर दीदी ने उमा को काम के साथ पढ़ाई कराने का भी निश्चय किया और चल पड़ी किसी की ज़िंदगी को ब्लैकबोर्ड से उजला बनाने।
✍️तोषी गुप्ता✍️
01-07-2021
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