लौट आओ न
लौट आओ न
देख कर बेटे की सफलता
पिता फुले नहीं समा रहे थे
आखिर बेटा अव्वल था
पूरे प्रदेश में,
जमा पूंजी सब इकट्ठी करके
लगा दिए बेटे का भविष्य सँवारने
होनहार बेटे की
हर कदम पर सफलता देखने
दिन प्रतिदिन आगे बढ़ता बेटा
पिता का नाम रोशन करता
अब बेटा बड़ा अफ़सर बनकर
खूब कमाई भी करता
गाँव की गलियां अब छूटी,
और छूट गए बचपन के यार,
हर कदम पर जो साथ रहते,
उसकी हर सफलता पर खूब तालियाँ बजाते,
बेटा अब रंग चुका था
शहर के रंग में
अपनी व्यस्त दिनचर्या और
गुलाबी शाम के संग में
जिस पिता के साथ अपनी हर खुशी बाँटता
आज उसी पिता से बात करने से कतराता
पिता आस लगाए राह देखते
सूनी गलियों में अपने बेटे के आने की राह ताकते
हर पल हर दिन जिसने अपने बेटे की
हर खुशी चाही,
आज उसी बेटे ने उनकी,
कोई परवाह ना करनी जानी,
पिता की आँख उसे देखने को तरसती
"लौट आओ न बेटा" हर पल कहकर
अब उनकी ज़िंदगी कटती
✍️तोषी गुप्ता✍️
09-07-2021
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