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बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

वक्त के सिरहाने,,,

 वक्त के सिरहाने


(आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, )


वक़्त के सिरहाने,


आज भी रखी हुई है,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,




जब स्कूल की पहली कक्षा में पहला सबक सीखी थी,



फिर हर रोज़ स्कूल जाने को ज़िद किया करती थी,



हर दिन कुछ नया सीखने को कदम बढ़ाया करती थी,



असफलता से ना हार कर हर रोज़,


 नयी कोशिश किया करती थी,



और आज ये ज़िन्दगी बिना स्कूल जाए ही,

ना जाने कितने ही सबक रोज सीखा रही है,


ना चाहते हुए भी ज़िन्दगी में,

कुछ कड़वे कुछ मीठे अनुभव दे रही है,



लेकर ज़िन्दगी में कड़ी परीक्षा,

नए पाठ पढ़ा रही है,



सुकून की तलाश में भटकते इस मन को,

 रोज़ नयी जिम्मेदारियों से सजा रही है,






वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने दोस्तों के साथ )



वक़्त के सिरहाने,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,




जब दोस्तों की टोली होती थी,


हर त्यौहार मौजों की रंगोली होती थी,



दोस्तो के साथ हर मुश्किल ,


चुटकियों में हल होती थी,



हर शैतानी के बाद,


 बचकर निकल जाने की कला होती थी,



और आज हर लम्हा उन दोस्तों के बिना गुज़रता है, 


हर पल, हर लम्हा उनकी शिद्दत से ज़रूरत महसूस करता है,



जीवन के कुछ खास पलों में ,


उन दोस्तों का साथ चाहता है,



या  उन पुराने पलों में दोस्तों के पास,


 एक बार फिर से लौट जाना चाहता है,





वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने अपनों के साथ )





वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,



जब भाई बहनों के साथ मिलकर घर घर खेला करते थे,


होती थी चॉकलेट एक, जिसके लिए खूब लड़ा करते थे,



एक ही खिलौने से उसी वक्त हम सब खेलने को मचलते थे,


माँ पापा की गोद में एक साथ बैठ जाने को ज़िद करते थे,



और आज जब बड़े हो गए, 


तो मिलने को भी तरसते हैं,



बने हैं त्यौहारों में पकवान ढेर, 


पर साथ खाने को मचलते हैं,



हो जाये कितनी भी रोशनी,


पर उस रौनक को याद करते हैं,



जब साथ मिलकर हर त्यौहार का ,


हर पल जिया करते थे,





वक़्त के सिरहाने,


आइए चलते हैं बचपन के उन ख़ास लम्हों की ओर, जिन्हें हम जिया करते थे, अपने वास्तविक वुज़ूद के साथ )




वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,



जब सर पर माँ का हाथ होता था,


हर कदम पर पिता का साथ होता था,



ग़र कदम लड़खड़ा जाते किसी मोड़ पर,


उस मोड़ पर संभालने , नयी राह दिखाने,


 माँ बाबा का विश्वास होता था,



आज जब बड़े हो गए,

अपनी जिम्मेदारियों में खो गए,


माँ बाबा से दूर, अपनी नयी दुनिया में खो गए,



जीवन के यथार्थ के धरातल पर मन ,


माँ बाबा की दी हर सीख अपनाना चाहता है,



या फिर छोटा बच्चा बन, माँ बाबा की गोद में ,


सुकून से सो जाना चाहता है, 




वक़्त के सिरहाने ,


आज भी रखी हुई हैं,


मेरे बचपन की वो सुनहरी यादें,


मेरे बचपन की वो अनुपम यादें,


मेरे बचपन की वो अनमोल यादें,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


26-10-2021

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