संस्कार
*बुनियाद*
*संस्कार*
शान्तनु टेबल पर सर झुकाए अपने फाइलों में व्यस्त था। तभी 2 व्यक्ति टेबल के सामने रखी चेयर में आकर बैठते हुए बोले, कैसे हैं शान्तनु बाबू। हमारे काम का कुछ हुआ। शान्तनु ने सर उठा कर देखा, दोनों व्यक्तियों ने एक फाइल और एक पैकेट शान्तनु की तरफ बढ़ाते हुए कहा, अब मान भी जाइये शान्तनु जी, इन फाइलों में सिग्नेचर कर दीजिए।कब तक ईमानदारी की राह में चलते हुए आप अपनी तरक्की रोकेंगे। आप भी तरक्की कीजिये और हमें भी तरक्की का मौका दीजिये। सहसा शान्तनु की आंखों के सामने उसके परिवार की सारी ज़रूरतों का दृश्य घूम गया। बाबूजी का मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराना था, माँ के घुटने का ऑपरेशन अब ज़रूरी हो गया था। बेटी का एक बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला करवाना था, और बेटे की स्कूल की फ़ीस भरनी थी, अब उनकी और स्वाति की तबियत भी तो खराब रहने लगी थी। फिर 2 साल ही तो बचे हैं उनके रिटायरमेंट को। मन तो हो रहा था, तुरंत पैकेट उठा कर रख ले, और फाइलों में सिग्नेचर कर दे। लेकिन शान्तनु ने हाथ जोड़कर विनम्रता से उन्हें मना कर दिया। शान्तनु अब उन्हें वापस जाते हुए देख रहा था, और सोच रहा था आज बाबूजी के बुनियादी संस्कारों की वजह से ही मैं ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन कर पा रहा हूँ। और साथ ही उसने एक कंपनी में पार्ट टाइम जॉब के लिए आवेदन भेज दिया और स्वयं से बातें करने लगा कि, आय तो बढ़ानी पड़ेगी लेकिन अपनी आय बढ़ाने के लिए वो ग़लत रास्ता कभी नहीं अपनाएगा।
09/02/2021
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