*कोख़ में अकेली,,,,, आख़िर गलती किसकी,,,,?*
*कोख़ में अकेली,,,,, आख़िर गलती किसकी,,,,*
आज फिर खुशी की घड़ियाँ आई,
माँ बनने की ख़बर जो आई,
समय पंख लगा उड़ने लगा,
कुछ दिनों बाद खुशी दोहरी भी हो गई,
पता जब चला कोख में एक नहीं दो कलियाँ हैं जी रही,
खुशियाँ ही खुशियाँ थी दामन में भर रही,
पल भर में खुशियाँ मायूसी में बदल गई,
जब कोख में जी रही साँसों की पहचान की गई,
एक कली लड़का और एक कली लड़की थी कोख़ में पल रही,
एक ही कली को लाने बाहरी दुनिया में,
सब ने आपस में मिलकर हामी भरी,
कोख में कलियाँ तो दोनों थी मासूम, अधखिली,
थामे दोनों एक दूजे का साथ,
सपने संजोते बाहरी दुनिया के साथ-साथ,
बाहरी दुनिया की मायूसी से बेख़बर,
दोनों थे साथ- साथ, हर पल, हर क्षण,
साथ- साथ अठखेलियाँ करते,
एक दूजे को मनाते, रूठते,
एक दूजे संग खेलते और खिलाते,
हर पल एक दूजे की सांसों को महसूस करते,
एक दूजे की मुस्कुराहट और दर्द भी साथ महसूस करते,
दोनों एक दूजे का हाथ थामे खुशियों में मशगूल थे,
अचानक थोड़ी घुटन महसूस होने लगी,
आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा,
कोई धारदार हथियार उन्हें अपनी ओर आता नज़र आया,
लेकिन यह क्या, वो औज़ार तो केवल एक कली की तरफ बढ़ रहा है,
जहाँ वो कली भागती, वो औज़ार उसकी तरफ ही आता,
घबराहट में साथी से अब हाथ छूट चुका था,
वो धारदार हथियार अब उसे तकलीफ़ पहुंचा रहा था,
वो कली खूब चीखी चिल्लाई और अंत में मौन हो गई,
अकेली रह गई दूसरी कली,
स्तब्ध,,,,,, निःशब्द,,,,, मौन,,,,
वो हथियार अब जा चुका था,
दूसरी कली अब अकेली और शांत थी,
पहचान दोबारा की गई,
पर ये क्या,,,,,, मायूसी अब शोक में बदल गई,
धारदार हथियार ने एक कली ज़रूर कुचल दिया,
लेकिन वो कली लड़की नहीं लड़का थी,
नियति को कौन कब बदल सका है,
कोख़ में अब भी एक कली सुरक्षित सांसें ले रहा था,
वो कली लड़की थी, जो अब भी कोख़ में, स्तब्ध,,,, निःशब्द और मौन,,,,थी
सोच रही थी, आखिर क्यों उसका साथी उससे जुदा हो गया,
आख़िर गलती किसकी थी,
जो जुदा हो गया उसकी,
या फिर वो जो अब भी साँस ले रही है कोख़ में,,,,,,
✍️तोषी गुप्ता✍️
13 फ़रवरी 2021
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