बंधन
*बंधन*
बंधे परों से उड़ने की चाह ,
और,
मौन में बन्द उसकी अंतरात्मा की आवाज़,
वो उड़ना तो चाह रही है,
लेकिन, बचपन में बांध दी गई है,
लड़की होने की दहलीज़ में,
यौवन में उड़ना चाही, तो,
लोक, लाज, ने जकड़ लिया
उसके परों को और मज़बूती से,
फिर लांघ कर बाबुल की दहलीज़,
पहुँची पिया के घर,
जकड़ लिया बहु होने के संस्कारों ने,
फिर माँ बन ममता ने,
और फिर बीतते समय के साथ फ़र्ज़ ने,
उड़ने की चाह में, ज़िन्दगी के
अब उस मोड़ पर खड़ी थी,
जहाँ, लग रहा था उसे ,
जैसे उड़ना भूल ही गई हो वो,
ऊँचे आसमान को निहारते,
झूठी आस में बंधी नन्ही चिड़िया,
अब भी इसी आस में
अपनी सारी ज़िन्दगी बीता देना चाहती है कि,
कभी तो ये बंधन खुलेंगे,
और वो उड़ सकेगी,
अपनी ऊँची उड़ान,
और छू सकेगी आसमान!!
✍️तोषी गुप्ता✍️
05 फ़रवरी 2021
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