बोनसाई
बोनसाई
"अरे ! अभी नीतू की उम्र ही क्या है? अभी-अभी तो दुल्हन बनकर आई थी इस घर में , महज़ डेढ़ साल ही तो हुए हैं उसे इस घर में आये, अब नीतू और नवीन का साथ यहीं तक का था तो इसमें नीतू का क्या दोष?" विभा ने लगभग चिल्लाते हुए अपनी बेटी प्रीति से कहा,
पर माँ,,,, लोग क्या कहेंगे? प्रीति ने भी माँ को समझाने की कोशिश की।
"लोगों की परवाह मैं नहीं करती लेकिन नीतू ऑफिस भी जाएगी और हर वो काम कर सकती है जो वो करना चाहे, जैसा रहना चाहे रह सकती है," विभा ने जैसे ठान रखी थी कि किसी भी कीमत पर वो नीतू का साथ नहीं छोड़ेगी।
प्रीति अब अपने पापा विकास से बोली, "पापा अब आप ही समझाइये न माँ को, अब तो नवीन भैया भी नहीं रहे,बाहर कहीं कुछ ऊँच नीच हो गई तो...
"बस!!!! अब हमें और कुछ नहीं सुनना... मैंने और विभा ने फैसला कर लिया है, हम नीतू को घर में बोनसाई की तरह नहीं रखेंगे, बल्कि हम उसकी पत्तियों शाखों को पल्लवित और मजबूत होते देखना चाहते हैं। अब हमारी एक नहीं दो बेटियाँ हैं, प्रीति और नीतू, और वह जब तक इस घर में है अपनी मर्जी से जी सकती है।" विकास ने विभा की ओर मुस्कुराते हुए देखकर कहा ...और अब तो हमें एक और कन्यादान की तैयारी भी करनी है,क्यों विभा?
दोनों की आंखों से खुशी के आँसू बह रहे थे। परदे की ओट में खड़ी नीतू अपनी कोरों के आँसू पोछते हुए पास ही रखे बोनसाई को बाहर ले जाकर ज़मीन में उसकी जड़ों को जमा दिया।
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
04/05/2021
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