प्रकृति/कुदरत
प्रकृति का रूप है सुन्दर,
ये धरा, माँ बन सँवारती जैसे,
ये आसमाँ पिता बन समेटता हमेँ,
ये नदियाँ , ये पर्वत, ये हवाएँ खिलखिलाते,
ये झरने, ये बगीचे, ये पेड़-पौधे चहुँ ओर हरियाली बिखेरते,
ये सूरज की रोशनी, ये चाँद की ठंडक, तारे भी आसमाँ में टिमटिमाते,
ये चिड़ियों की चहचहाहट, ये भँवरे का गुँजन,
ये जंगलों में जीव जन्तुओं का विचरण,
हर पल हमें जीवन का अहसास कराते,
प्रकृति की गोद में हमें विचरण कराते,
हे मानव!! समझो तुम कुदरत का मोल,
नहीं करो तुम इससे खेल,
धरा को श्रृंगार विहीन कर तुम सुख न पाओगे
कुदरत से खेल कर स्वयं का अस्तित्व भी न बचा पाओगे,
अभी भी समय है, कर लो ये तुम ये जतन,
प्रकृति का मोल समझ ,ले लो तुम ये वचन,
करोगे प्रकृति की रक्षा, हर पल हर दम,
प्रकृति है हम सबकी,प्रकृति से हैं हम,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
15/03/2021
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