मन्नत का धागा
*मन्नत का धागा*
जाकर मंदिर, और दरगाह
माँगी जो उसने दुआ,
और विश्वास का बांधा एक मन्नत का धागा,
नाज़ुक तेरे हाथ अपने हाथों में ले लूँ,
चूम लूँ फिर मस्तक तेरा, अंक में तुझें समेट लूँ,
देखकर तेरा मासूम चेहरा, मैं भी ज़रा मुस्कुरा लूँ,
रोता हुआ देख तुझे, बाहों में तुझे अपने समेट लूँ,
तेरे संग दौड़ लगाऊं, घोड़ा बन के तेरी तुझे पीठ पर बिठा लूँ,
तू जब बोले खेल लूँ , तुझे हंसा कर खुद हंस लूँ,
इन हसरतों को अपनी , समेट कर एक धागे में,
लेकर अपने मन को विश्वास में,
बांधा है मैंने भी ये मन्नत का धागा,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
17/03/2021
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