चढ़ा जो रंग ऐसा
*चढ़ा जो रंग ऐसा*
चढ़ा जो रंग ऐसा, पी के प्रीत का,
जग भी मैं भूल गई, जाने कब पी की हो गई,
चढ़ा जो रंग ऐसा, माँ की ममता का,
मैं वारी न्यारी गई, सुध बुध भी खो गई,
चढ़ा जो रंग ऐसा, संस्कारों का,
संस्कृति को स्वीकार कर उसमें समाहित हो गई,
चढ़ा जो रंग ऐसा, देशभक्ति का,
करके त्याग वतन के लिए मैं न्यौछावर हो गई,
चढ़ा जो रंग ऐसा , दोस्ती का,
निभा कर दिल से रिश्ता सब दुख मैं भूल गई,
चढ़ा जो रंग ऐसा , होली की मस्ती का,
टेसू के फूलों की लाली में खुशी से सराबोर हो गई,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
24/03/2021
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