ज़िद,,,,,,,, कन्यादान
ज़िद
कन्यादान
कनक आईने के सामने बैठी थी। सुधा, कनक को अपने हाथों से दुल्हन के रूप में सजा रही थी। दोनों निःशब्द और मौन। कनक भाव विभोरता से सुधा को निहारे जा रही थी और सुधा उतने ही वात्सल्य भाव से कनक को सजा रही थी।
मंडप में कनक को बिठाने के बाद सुधा कोने में जाकर अपने पति विपिन के पास खड़ी हो गई। विवाह की रस्म शुरू हो चुकी थी। पंडित ने आवाज़ लगाई कन्यादान के लिए कन्या के माता-पिता मंडप में आएं। कनक के माता-पिता मंडप की ओर बढ़े ही थे कि, सहसा कनक ने आवाज़ लगाई, रुकिए पंडित जी, मैं चाहती हूँ आज मेरा कन्यादान मेरी दूसरी माँ यानि मेरी सास और मेरे दूसरे पिता यानि मेरे ससुर जी करें। इतने समय से खुद को रोके सुधा और विपिन की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी।
सुधा और विपिन के इकलौते बेटे की शादी के छः माह बाद ही हुए असमय मौत के बाद कनक को सुधा और विपिन ने ही संभाला था।अपनी ज़िद से कनक अपने ससुराल में ही रहती थी। सुधा ने अपनी ज़िद से कनक को बड़ी मुश्किल से दूसरी शादी के लिए राज़ी किया था। और आज कनक ने सुधा और विपिन को कन्यादान का अधिकार देकर उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी खुशी दे दी।
इधर मंडप के नीचे सुधा और विपिन, कनक का कन्यादान कर रहे थे, उधर कनक के माता-पिता अपनी बेटी के इस फैसले से खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। सभी की आँखों से खुशी की अविरल अश्रुधारा बह रही थी।
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
02/03/2021
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