पिता के जज़्बात
भावना/ जज़्बात/ विचार/ ख्याल
पिता के जज़्बात
हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने ,
खुद को कैसे रोकते हो,
दिल में जज़्बात होते हुए भी ,
उसे प्रदर्शित ना कर दिल में कैसे रखते हो,
बच्चे को नौ माह अपने खून से सींच,
अपनी कोख़ में माँ रखती है,
बच्चे के आगमन होने के बाद की रूपरेखा के लिए,
तुम उसे अपने पसीने से सींच दिमाग़ में रखते हो,
हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,
बच्चे के जन्म के बाद सारी रात जागकर,
माँ रतजगा करती है,
बच्चे को चैन से ठंडी हवा में सुलाने,
तुम दिन भर खुद को धूप में जलाते हो,
हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,
बच्चे को टिफ़िन देकर ,
उसे स्कूल भेजने तैयार माँ करती है,
उसके उच्चस्तरीय पढ़ाई लिखाई की जिम्मेवारी,
तुम पूरी करते हो,
हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,
बच्चे को दुनिया में एक सफल इंसान बनने,
संस्कार माँ देती है,
उसे इस क्रूर दुनिया में,
आगे बढ़ने का हौसला तुम देते हो,
हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,
हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने,
खुद को कैसे रोकते हो,
दिल में जज़्बात होते हुए भी,
उसे प्रदर्शित ना कर दिल में कैसे रखते हो,
✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻
01/03/2021
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