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सोमवार, 14 जून 2021

वो दबी हुई सी ख्वाहिशें.....

 सब्र/ संतोष 



वो दबी हुई सी ख्वाहिशें,,,,




बचपन से सिखलाया सबने,


करो संतोष जो मिल जाये उसमें,


हो तुम नारी, 


ना करो और की नादानी,


पहले सबकी बारी,


जो बच जाए वो तुम्हारी,


अन्न हो या अधिकार,


जो मिल जाये वही संवार,


चाहत ना करना बेमानी,


वो कहलाएगी मनमानी,





वक़्त अब बदल चला है,


सब्र का बांध अब टूट चुका है,


ज़रूरी है अपने अधिकार की चाहत रखना,


कर्तव्य निभा अब और की ख़्वाहिश करना,


अन्न भी हो तो अंतिम का इंतज़ार ना करना,


सबके साथ बैठ गरम भोजन का स्वाद चखना,


अधिकार हो तो आगे बढ़ लेना,


हो कर्तव्य तो निष्ठा से उसे निभाना,


मनमानी भले ना करना,


अपनी ख्वाहिशों को बयां ज़रूर करना,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


14-06-2021

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