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बुधवार, 13 जून 2018

सुकून

                                            सुकून                                              
दूसरा महीना शुरू हो गया था वाणी का। वाणी और विनय बहुत उत्साहित थे अपने पहले बच्चे के जन्म के लिए।लेकिन अभी तक वाणी डॉक्टरी चेकअप के लिए नहीं गयी थी । सासूमाँ के रोज़-रोज़ के उलाहनों से तंग आ चुकी थी वो। आखिर कब तक नहीं जाएगी वो डॉक्टर के पास , यही सोच रही थी वाणी। तभी सासूमाँ की आवाज़ सुनाई दी, अरी! जाती क्यों नहीं डॉक्टर के पास, जब तक डॉक्टर के पास जाएगी नहीं, पता कैसे चलेगा कि लड़का है कि लड़की? अग़र लड़की हुई तो? हमारे खानदान में पहला बच्चा लड़का ही होता है, लड़की नहीं होती। " लड़की होगी तो मार डालोगे क्या...?" वाणी ने लगभग चीखते हुये कहा- और रोते हुये अपने कमरे में चली गई। सासूमाँ को वाणी से इस तरह के जवाब की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। दिन बीतते गए। वाणी की ननद का भी नौवां महीना चल रहा था, कभी भी खुशखबरी मिल सकती थी। रोज़ की तरह वाणी रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी कि ननद के ससुराल से फोन आया, उसके पहला लड़की हुई थी। बड़ी खुशी -खुशी सासूमाँ पूरे घर में बताती फिर रही थी कि उनकी बेटी की पहली लड़की हुई है, उनके घर लक्ष्मी आई है। वाणी के चेहरे पर मंद मुस्कान के साथ अपार संतोष का भाव था। पेट मे होती हलचल को बड़े प्यार से सहलाते हुए वाणी ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा- अब तू सुरक्षित है मेरे बच्चे, अब चाहे तू लड़का हो या लड़की, कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा, और मुझे भी।"

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