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सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

"मजबूरी"

"मजबूरी"

ये कमाने की मजबूरी भी बड़ी निर्दयी होती है साहेब,
ना स्त्री देखती है, ना पुरुष,
कमाई तो सिर्फ एक बहाना है,असल मुद्दा तो घर चलाना है, 

बेटे को उनके दोस्तों जैसी सायकल और,
बेटी को, उसके मनचाहे गुड़ियों से बहलाना है,

पुरुष बन आजीविका के साधनों को जुटाना और,
स्त्री बन उन साधनों से सबको संतुष्ट करना है,

स्त्री हो अपने बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए चंद पैसे जुटाने दहलीज़ के बाहर कदम बढ़ाना है और,
अपने आत्मसम्मान की रक्षा और अपने वजूद को बचाना है,,,,,

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