सहती है डरती है सिसकती है नारी,
जब प्रताड़ित करती उसे दुनिया सारी,
फिर पहचान कर स्वयं की शक्ति ,
नयी ऊर्जा उसमें संचारित होती,
कुचल कर हर दमन का सर,
अब एक नयी कली प्रस्फुटित होती,
खुले आसमाँ में खुद अपनी तकदीर लिखती,
नयी स्फूर्ति नयी हिम्मत से एक नया इतिहास गढ़ती,
जब प्रताड़ित करती उसे दुनिया सारी,
फिर पहचान कर स्वयं की शक्ति ,
नयी ऊर्जा उसमें संचारित होती,
कुचल कर हर दमन का सर,
अब एक नयी कली प्रस्फुटित होती,
खुले आसमाँ में खुद अपनी तकदीर लिखती,
नयी स्फूर्ति नयी हिम्मत से एक नया इतिहास गढ़ती,
1 टिप्पणियाँ:
Nice Lines,Convert your lines in book form with
online Book Publisher India
एक टिप्पणी भेजें