ज़रूरी है,,, एक पहल,,,,,
हर दिन खास होता है, हो भी क्यों न ,,, हर दिन की शुरुआत सूरज की नयी किरणों से जो होती है। इसी तरह आज का दिन भी खास है, और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस होने के कारण ये दिन और खास हो गया। सूरज की नयी किरणों के साथ, उम्मीद की नयी किरणें भी जागी, कि सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में भी स्त्रियों की वास्तविक स्थिति में ज़रूर कुछ सकारात्मक बदलाव आएंगे। वास्तिविकता के धरातल पर एक नज़र डालेंगे तो आप पाएंगे कि आज भी छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं। एक ओर जंहा सरकार विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चलाकर स्त्रियों को स्वरोज़गार या महिला समूहों के द्वारा आत्मनिर्भर बनाने प्रयत्न करती हैं वहीं उच्च मध्यम वर्गीय घरों की स्त्रियां आज भी अपनी उच्च शिक्षा और योग्यता के बावजूद सिर्फ इसलिए दहलीज़ के बाहर कदम नहीं रख सकती क्योंकि इसके पहले उस घर की किसी महिला ने नौकरी नहीं की या घर की आर्थिक जिम्मेदारी नहीं संभाली। आज भी इन सम्भ्रांत घरों के पुरुष प्रधान मानसिकता के पीछे घर की बुज़ुर्ग महिलाओं की घोर रूढ़िवादी मानसिकता के चलते कई बहुएं अपनी शिक्षा और योग्यता का ना सही उपयोग कर पाती और ना ही उस योग्यता को निखार पातीं। आज के दौर में सिर्फ आत्मनिर्भर होने या नौकरी करने की मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत नहीं बल्कि कोशिश ये हो कि घर में हर निर्णय पर घर की सभी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए। हर स्तर पर महिलाओं की स्थिति मजबूत करने की ज़रूरत है। लेकिन उससे पहले ज़रूरत है कि वे महिलाएं स्वयं अपनी स्थिति को मजबूत बनाने प्रयास करें। क्योंकि किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति तब तक संभव नहीं जब तक वो स्वयं से प्रेरित ना हों।पुनः महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,,,,,
हर दिन खास होता है, हो भी क्यों न ,,, हर दिन की शुरुआत सूरज की नयी किरणों से जो होती है। इसी तरह आज का दिन भी खास है, और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस होने के कारण ये दिन और खास हो गया। सूरज की नयी किरणों के साथ, उम्मीद की नयी किरणें भी जागी, कि सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में भी स्त्रियों की वास्तविक स्थिति में ज़रूर कुछ सकारात्मक बदलाव आएंगे। वास्तिविकता के धरातल पर एक नज़र डालेंगे तो आप पाएंगे कि आज भी छोटे नगरों, कस्बों और गांवों में महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं। एक ओर जंहा सरकार विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चलाकर स्त्रियों को स्वरोज़गार या महिला समूहों के द्वारा आत्मनिर्भर बनाने प्रयत्न करती हैं वहीं उच्च मध्यम वर्गीय घरों की स्त्रियां आज भी अपनी उच्च शिक्षा और योग्यता के बावजूद सिर्फ इसलिए दहलीज़ के बाहर कदम नहीं रख सकती क्योंकि इसके पहले उस घर की किसी महिला ने नौकरी नहीं की या घर की आर्थिक जिम्मेदारी नहीं संभाली। आज भी इन सम्भ्रांत घरों के पुरुष प्रधान मानसिकता के पीछे घर की बुज़ुर्ग महिलाओं की घोर रूढ़िवादी मानसिकता के चलते कई बहुएं अपनी शिक्षा और योग्यता का ना सही उपयोग कर पाती और ना ही उस योग्यता को निखार पातीं। आज के दौर में सिर्फ आत्मनिर्भर होने या नौकरी करने की मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत नहीं बल्कि कोशिश ये हो कि घर में हर निर्णय पर घर की सभी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए। हर स्तर पर महिलाओं की स्थिति मजबूत करने की ज़रूरत है। लेकिन उससे पहले ज़रूरत है कि वे महिलाएं स्वयं अपनी स्थिति को मजबूत बनाने प्रयास करें। क्योंकि किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति तब तक संभव नहीं जब तक वो स्वयं से प्रेरित ना हों।पुनः महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,,,,,
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