पिछले दिनों मेने सुना कि देश में एक नया मुद्दा जोर पकड़ते जा रहा है ...वेलेंटाइन डे के विरोध का ....कुछ लोग जो स्वयं को भारतीय संस्कृति का ठेकेदार(?) बता रहे थे इस प्रेम दिवस के विरोध में चेतावनी दे रहे थे इस दिवस को सेलिब्रेट नहीं करने के लिए......इसके अलावा पिछले कुछ दिनों से स्क्रैप, एस एम एस के ज़रिये मुझे कुछ विशेष दिनों जैसे कि स्माइल डे , प्रपोज़ डे, चाकलेट डे, टेडी डे, प्रोमिस डे,व्हाइट शर्ट डे और पता नहीं क्या - क्या " डे" सेलेब्रेशन के बारे में पता चला....
लोंगो ने मुझे विश किया और मेने भी औरो के देखा देखी अपने कुछ मित्रो को विश किया.....अब तक तो मेने मदर्स डे , फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, रोज़ डे आदी के बारे में ही सुना था लेकिन इन " डे ' के बारे में जानकारी नहीं थी..
मेने इन विरोधकर्ताओ से ये भी सुना कि ये वेलेंटाइन डे विदेश से आयातित संस्कृति है और यही कारन है कि वो लोग इस प्रेम दिवस का विरोध कर रहे है, मुझे लगा कि शायद इन लोंगो को न्यू इयर सेलेब्रेशन के बारे में नहीं मालूम जिसका भारत देश में बहुत जोर शोर से आयोजन होता है, या उनकी परिभाषा ब्रिटेन के झंडे तले बदल जाती है ....
समाचार पत्रों में तरह - तरह की चेतावनी, रैली , तोड़ - फोड़ , या प्रेमी युगलों के साथ दुर्व्यवहार शायद उन धर्म के ठेकेदारों के अनुसार भारतीय संस्कृति का परिचायक हो. वर्ष भर विदेश आयातित संस्कृति के पालनकर्ता वेलेंटाइन डे के विरोध में पहली लाइन में खड़े नज़र आते है..लेकिन १९०६ में हुए स्वदेशी एवं बहिष्कार आन्दोलन की तुलना में आज का वेलेंटाइन डे का विरोध क्यों अधिक लोकप्रिय नहीं हो सका शायद इसका जवाब वो धर्म के ठेकेदार बखूबी जानते हो....
भारत में किसी भी त्यौहार को मानाने के पीछे धार्मिक भावनाए छिपी रहती है लेकिन पश्चात्य आयातित इस संस्कृति में धार्मिक तो नहीं लेकिन मानवीय भावनाए ज़रूर छिपी हुई है . एक ऐसी भावना जो प्रेम और शांति का प्रतीक है .कोई भी चीज़ अच्छी या बुरी नहीं होती बल्कि उसे देखने का नजरिया अच्छा या बुरा हो सकता है उसी तरह वेलेंटाइन डे का औचित्य बुरा नहीं ,अपितु इसकी आड़ में की जा रही अश्लीलता और भौंडापन बुरा है .भले ही इस त्यौहार में पाश्चात्य की झलक हो लेकिन इसी भारतीय संस्कृति के रक्षक , हमारे बुजुर्गो ने इसे अपना कर युवा पीढ़ी को भटकने से बचने एक नया सन्देश दिया है जिनका इशारा ये विरोधकर्ता नहीं समझ रहे है . समाचार पत्रों के माध्यम से ही पता चला कि बुजुर्गो के विभिन्न संस्थाओ ने,और कई महिला संगठनो ने अपने अपने तरीके से इस प्रेम दिवस को बहुत ही शालीन रूप में अपनाया है . क्या ये शालीनता सिर्फ बुजुर्गो में है? में समझती हू आज कि युवा पीढ़ी इतनी भी गैर जिम्मेदार नहीं कि उन्हें अच्छे या बुरे का भान ना हो. और वो किसी पाश्चात्य संस्कृति को भारतीय संस्कृति के अनुरूप शालीनता से ना अपना सके .
आधुनिकता की होड़ में अपनी संस्कृति से परे हटकर भेडचाल की संस्कृति अपनाना सही नहीं होता .इसलिए दूसरो की गलत चीजों की नक़ल न करते हुए और "वेलेंटाइन डे " को भारतीय परिवेश में सजाते हुए हमारे बुजुर्गो ने युवा पीढ़ी को एक नयी राह दिखाई है . .मुझे मेरे दादाजी की कही एक बात याद आती है.."की यदि हमारे दुश्मन में भी कोई अच्छे गुण है तो हमें उनका अनुसरण करना चाहिए." क्यों ना हम "वेलेंटाइन डे" को भारतीय परिवेश में सजाते हुए कोई ऐसा उदाहरण दुनिया के सामने प्रस्तुत करे जिससे कि दुनिया के सभी लोग इस दिन को भारतीय तरीके से अपनाने को मजबूर हो जाये और प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार चारो ओर प्रेम और शांति कि खुशबू बिखेरे...
"तोषी"........(मुस्कान)
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