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बुधवार, 20 अप्रैल 2022

ब्यूटीपार्लर

 ब्यूटी पार्लर




रोहन आज शिवानी को अपने मम्मी पापा से मिलवाने लेकर आया। आते ही शिवानी ने झुक कर रोहन के मम्मी पापा के पैर छुए और शालीनता से वहीं बैठ गई। शिवानी रोहन के ही साथ उसकी कम्पनी में जॉब करती थी। आज भी वह ऑफिस के फॉर्मल कपड़ों में ही थी और रोहन ने आज ही उसे ऐसे ही कपड़ों में अपने मम्मी पापा से मिलाने ज़िद करके उसे अपने घर ले आया। हल्का साँवला रंग उस पर करीने से पहने फॉर्मल जीन्स और कुर्ती में भी शिवानी सौम्य लग रही थी। रोहन का कहना था कि तुम जैसी हो वैसे ही मम्मी पापा तुम्हें स्वीकार करें तो अच्छा है। बड़ी ही शालीनता से उसने रोहन के मम्मी पापा के पूछे सवालों का जवाब दिया। जब रोहन की मम्मी किचन में गई तो शिवानी भी साथ चल दी। ड्रॉइंग रूम में बैठे रोहन और उसके पापा अभी तक चिंतित ही थे कि पता नहीं रोहन की माँ शिवानी को स्वीकार करेगी या नहीं। तभी रोहन की माँ और शिवानी गर्म पकौड़ियों और हलवा लेकर आ गए। सबने मिलकर पकौड़ियों और हलवे का आनंद लिया।  रोहन प्रश्नवाचक निगाहों से अब भी अपने माँ पापा को ही देख रहा था कि रोहन की माँ ने शगुन का टीका लगाते हुए शिवानी से कहा,"आंतरिक गुणों के ब्यूटीपार्लर से सजी शिवानी हमें बहुत पसंद है।" ये सुन कर रोहन और शिवानी एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठे। शिवानी रोहन की माँ का पैर छूने झुकी ही थी कि उन्होंने शिवानी को गले से लगा लिया।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


19-04-2022

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मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

जीतेगा कौन


 


जीतेगा कौन




दुनिया के इस भ्रम जाल में,


असल चेहरा,


ना किसी का नज़र आता,


कौन किसकी गरदन दबोचे,


कौन किसी का फ़न काट दे,


कौन किस पर अचानक टूट पड़े,


कौन किसी पर कब पलटवार कर दे,


कौन कब किसका शिकार कर दे,


या खुद शिकारी बन किसी की जान ले ले,


कभी डरकर पीछे हट जाते,


तो कभी किसी को दबोच लेते,


जब जिसका पलड़ा भारी होता,


खुद को विजेता समझता,


पर कौन जीता कौन हारा,


इसका फैसला तो वक़्त ही करता,


इंसानी चेहरों के भीतर छिपे,


जानवरों के चेहरे बहुतेरे,


हर कोई लड़ता,


अपनी जीत के लिए,


पर हार होती किसकी,


ये समझ ना पाते,


वो जीते या मानवता हारी,


इसका जवाब भी,


दे ना पाते, 





✍️तोषी गुप्ता✍️


18-04-2022

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बहाना

 बहाना



रहो लाख तुम व्यस्त ,


अपने कार्यों में,


जब मैं आवाज़ लगाऊं,


सुनो, ज़रा मेरा मोज़ा ढूंढ देना,


मिल नहीं रहा,


और हाँ,


रुमाल भी नहीं मिल रहा,


और एक ही पल में,


तुम दौड़ी चली आती,


कपड़ों के ढेर में,


सलीके से वहीं रखा, 


मोज़ा और रुमाल,


मेरे हाथों में थमा देती,


बहाना मेरा,


तुम्हें बुलाने का,


तुम भी ख़ूब समझती,


शायद मन ही मन,


मेरी इस आवाज़ का इंतज़ार भी करती,


तभी तो ,


मेरी एक आवाज़ पर ही,


सारा काम छोड़,


तुम मेरे सामने होती,


सब कुछ समझते हुए भी,


तुम्हारा,


ना समझने का ये अंदाज़,


दिल को भा जाता,


और नया बहाना बना,


तुम्हें बुलाने का,


मेरा इरादा,


और भी पक्का हो जाता,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻



18-04-2022

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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

कशमकश ***

 कशमकश




राह पर चलते ,


कभी ज़िन्दगी में,


ऐसा मोड़ भी आ जाता है,


दोराहे में खुद को,


खड़ा पाकर,


खुद पर तरस आता है,


ना चाहते हुए भी,


अनचाही राह को,


चुनने का वक़्त जब आता है,


मन को मजबूत कर,


उन राहों में अनमने ही बढ़ना हो जाता है,


कर के हालात से समझौता,


एक-एक पल जब बीतता है,


हर अगला कदम ,


कई कई बार थम कर बढ़ पाता है,


मग़र ज़िन्दगी कभी रुकती कहाँ है,


ज़िन्दगी के इस सफ़र में बस,


चलते ही जाना है,


बना कर ग़म को अपना,


खुशियों  की चाबी ढूंढते जाना है,


ज़िन्दगी का हर एक पल,


दिल से जीते जाना है,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


08-04-2022

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