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सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

भक्ति का एक रूप यह भी.................


गणेशोत्सव से शुरू हुआ सार्वजनिक उत्सव दुर्गोत्सव आते तक आने चरमोत्कर्ष पर पंहुच जाता है। हर तरफ़ खुशी और जशन का माहौल । लेकिन क्या आपको कभी ऐसा नही लगता की इस खुशी और जशन के माहौल में लोग अपनी सीमा , अपनी मर्यादा भूल जाते है। पूजनीय देवी देवताओ क पवित्र रूप का मखौल लोग इस तरह उड़ते है जैसे अपनी फिक्र धुएं में उड़ा रहे हो। कभी गणेश जी को पेप्सी की बोत्तल पकड़ा दिए तो कभी उनके हाथ में एक डंडा पकड़ा क उन्हें पोलिस बना दिए. कभी क्रिकेट का बैट थमा के सचिन तेंदुलकर बना दिया तो कभी उनके हाथ में ऐ के ४७ पकड़ा कर उन्हें संजय दत्त बना दिया । जो लोग गणेश जी के इन प्रतिरूपो का निर्माण करते है उनकी हिम्मत देवी माँ के किसी प्रतिरूप के निर्माण के समय कहा चली जाती है । वही गणेश जी के इन प्रतिरूपो को आम जनता के समक्ष परोसने वाले लोग क्या कभी देवी माँ के किसी रूप का मखौल उड़ने की हिम्मत कभी कर पाएंगे। शायद नही...........

अब हम थोडी बाते करते है देवी देवताओ के विसर्जन के बारे में। गणेश ए़वं दुर्गा विसर्जन के समय लोंगो का उत्साह देखते ही बनता है लेकिन.........इस जबरदस्त उत्साह का स्वरुप क्या होता है..................बड़े बड़े डी.जे. सेट के पीछे एक दुसरे के ऊपर गिरते पड़ते ( जिसे वे अपनी भाषा में डांस करना कहते है ) बेसुधे (?)लोग (क्योकि डी.जे. में डांस का मज़ा होश में रहकर तो नही ले सकते ) । रात भर जिस डी.जे.की धुन पर वो लोग थिरकते है वो निश्चित ही भजन तो नही होते होंगे । एक तरफ एक ग्रुप जो बड़ी ही भक्ति भावः से भगवन का भजन करते हुए नज़र आते है, वही दूसरी तरफ ये दूसरा ग्रुप जो की अपनी सारी हदों को पार करते हुए , सारी मर्यादाए तोड़ते हुए उस रूप में नज़र आता है जिस रूप में वो अपने परिवार वालो के सामने कभी नज़र नही आना चाहता । और समाज के तथाकथित बुध्हिजिवी वर्ग उस समय अपनी आँखों में काली पट्टी बाँध अपनी नीद पुरी कर रहे होते है । या यु कहे की वो तथाकथित वर्ग भी अपने कानो में रुई भर कर भीड़ में कही शामिल हो.............. ।

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गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

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शनिवार, 4 अप्रैल 2009

कथकली का मजाक कंहा तक उचित है...............


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी



जी
टीवी में प्रसारित "Dance India Dance" जिसमे सुपर स्टार मिथुन चक्रवर्ती शो के ग्रैंड मास्टर हैं उनकी उपस्थिति में 04th april रात 10 बजे प्राचीन भारतीय नृत्य "कथकली" का प्रदर्शन एक हिन्दी फिल्मी गाने पर किया गया थाभारतीय शास्त्रीय नृत्य के लिए यह बहुत ही गौरव की बात है की अब शास्त्रीय नृत्य हर ज़गह लोकप्रिय हो रहे है लेकिन "डांस इंडिया डांस" के इस शो को देखने के बाद शास्त्रीय नृत्य प्रेमियों के लिए यह एक बहुत ही शर्मनाक और दुःख का विषय है की उपरोक्त प्रोग्राम में कथकली नृत्य की किस तरह धज्जियाँ उडाई गई हैबहुत ही फूहड़ गाने "चुम्मा -चुम्मा दे दे " जैसे फिल्मी गाने पर कथकली जैसे प्राचीन नृत्य शैली पर नृत्य का भौंडा प्रदर्शन आख़िर कंहा तक उचित है ? शायद इस डांस की choreographer "मास्टर गीता" को भी यह अहसास नही की उन्होंने कुछ नया प्रयोग करने के चक्कर में सिर्फ़ कथकली ही नही पूरे भारतीय शास्त्रीय नृत्य का किस तरह मजाक उड़ाया है? शायद वो ये भूल गई थी की शास्त्रीय नृत्यों की जीवन्तता आज भी बरक़रार है उनका अपना एक महत्व है ,उनकी अपनी अलग एक पहचान है.प्रयोग तो शास्त्रीय नृत्यों में भी किए जाते है लेकिन झूठी और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का इससे आसन रास्ता शायद उन्हें नही मिला होगा जो मास्टर गीता ने कथकली नृत्य में "चुम्मा-चुम्मा दे दे" गीत का प्रयोग किया.यदि वो इस नृत्य शैली में किसी और गीत का प्रयोग करती तो शायद शास्त्रीय नृत्य प्रेमियों को इतना दुःख नही होता.

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