toshi

apne vajood ki talash me.........
Related Posts with Thumbnails

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

होली की शुभकामनाये....

रंगों का त्यौहार है होली........
न जाने कितने रंग समाये है होली के इन रंगों में....
पर मेने सुना है सबसे खुबसूरत रंग तो प्यार का होता है.........
अपनेपन और विश्वास का होता है..........
सच्चाई और इमानदारी का होता है........
क्यों न खो जाये होली के संग..........
जीवन के इन पक्के रंगों में........
बांध ले अपनों को एक अटूट बंधन में..........
और लगाए किसी ऐसे के मस्तक  पर  तिलक...
जिनके बेरंग जीवन में नहीं है किसी अपने का रंग...
देकर उनको ये अनमोल तोहफा...
देखे तो सही अपने जीवन में रंगों का मज़ा...


Read more...

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

मै प्रतिदान नहीं,अपने दिए का सम्मान चाहती हूँ

" वेलेंटाइन डे " पर ख़ास....

मै अनुभव करती हूँ ,
"तुमसे चाहना "
"तुम्हे चाहने' से
कितना भिन्न है ...

अच्छा हो ,
अगर तुम भी
अंतर कर सको
"मुझ से चाहने "
और "मुझे चाहने "
के बीच....

मै प्रतिदान नहीं चाहती,
केवल अपने दिए का
सम्मान  चाहती हू....

संकलन 
'युग्म" से.........

Read more...

आखिर वेलेंटाइन डे का विरोध क्यों........?

पिछले दिनों मेने सुना कि देश में एक नया मुद्दा जोर पकड़ते जा रहा है ...वेलेंटाइन डे के विरोध का ....कुछ लोग जो स्वयं को भारतीय संस्कृति का ठेकेदार(?) बता रहे थे  इस प्रेम  दिवस के विरोध में चेतावनी दे रहे थे इस दिवस को सेलिब्रेट नहीं करने के लिए......इसके अलावा  पिछले कुछ दिनों से स्क्रैप, एस एम एस  के ज़रिये मुझे कुछ विशेष दिनों जैसे कि स्माइल डे , प्रपोज़ डे, चाकलेट डे, टेडी डे, प्रोमिस डे,व्हाइट शर्ट डे  और पता नहीं क्या - क्या " डे"  सेलेब्रेशन के बारे में पता चला....
लोंगो ने मुझे विश किया और मेने भी औरो के देखा देखी अपने कुछ मित्रो को विश किया.....अब तक तो मेने मदर्स डे , फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, रोज़ डे आदी के बारे में ही सुना था लेकिन इन " डे ' के बारे में जानकारी नहीं थी..

मेने इन विरोधकर्ताओ से ये भी सुना कि ये वेलेंटाइन डे  विदेश से आयातित संस्कृति है और यही कारन है कि वो लोग इस प्रेम दिवस का विरोध कर रहे है, मुझे लगा कि शायद इन लोंगो को न्यू इयर सेलेब्रेशन के बारे में नहीं मालूम जिसका  भारत देश में बहुत जोर शोर से आयोजन होता है, या उनकी परिभाषा ब्रिटेन के झंडे तले बदल जाती है ....

समाचार पत्रों में तरह - तरह की चेतावनी, रैली , तोड़ - फोड़ , या प्रेमी युगलों के साथ दुर्व्यवहार शायद  उन धर्म के ठेकेदारों  के अनुसार भारतीय संस्कृति  का परिचायक हो. वर्ष भर विदेश आयातित संस्कृति के पालनकर्ता वेलेंटाइन डे के विरोध में  पहली लाइन में खड़े नज़र आते है..लेकिन १९०६ में हुए स्वदेशी एवं बहिष्कार आन्दोलन की तुलना में  आज का वेलेंटाइन डे का विरोध क्यों अधिक लोकप्रिय नहीं हो सका शायद  इसका जवाब वो धर्म के ठेकेदार बखूबी जानते हो....

 भारत में किसी भी त्यौहार को मानाने के पीछे धार्मिक भावनाए छिपी रहती है लेकिन पश्चात्य आयातित इस संस्कृति में धार्मिक तो नहीं लेकिन मानवीय भावनाए ज़रूर छिपी हुई है . एक ऐसी भावना  जो प्रेम और शांति का प्रतीक है .कोई भी चीज़ अच्छी या बुरी नहीं होती बल्कि उसे देखने का नजरिया अच्छा या बुरा हो सकता है उसी तरह वेलेंटाइन डे का औचित्य बुरा नहीं ,अपितु इसकी  आड़ में की जा रही अश्लीलता और भौंडापन बुरा है .भले ही इस त्यौहार में पाश्चात्य की झलक हो लेकिन इसी भारतीय संस्कृति के रक्षक , हमारे बुजुर्गो ने इसे अपना कर युवा पीढ़ी को भटकने से बचने एक नया सन्देश दिया  है जिनका इशारा ये विरोधकर्ता नहीं समझ रहे है . समाचार पत्रों के माध्यम से ही पता चला कि बुजुर्गो के  विभिन्न संस्थाओ ने,और कई महिला संगठनो ने अपने अपने तरीके से इस प्रेम दिवस को बहुत ही शालीन रूप में अपनाया है . क्या ये शालीनता सिर्फ बुजुर्गो में है? में समझती हू आज कि युवा पीढ़ी इतनी भी गैर जिम्मेदार नहीं कि उन्हें अच्छे या बुरे का भान ना हो. और वो किसी पाश्चात्य संस्कृति  को भारतीय  संस्कृति के अनुरूप शालीनता से ना अपना सके .

आधुनिकता की होड़ में अपनी संस्कृति से परे हटकर भेडचाल की संस्कृति अपनाना सही नहीं होता .इसलिए दूसरो की गलत चीजों की नक़ल न करते हुए  और "वेलेंटाइन डे " को भारतीय परिवेश में सजाते हुए हमारे बुजुर्गो ने युवा पीढ़ी को एक नयी राह दिखाई है . .मुझे मेरे दादाजी की कही एक बात याद आती है.."की यदि हमारे दुश्मन में भी कोई अच्छे गुण है तो हमें उनका अनुसरण करना चाहिए." क्यों ना हम "वेलेंटाइन डे" को भारतीय परिवेश में सजाते हुए कोई ऐसा उदाहरण दुनिया के सामने प्रस्तुत करे जिससे कि दुनिया के सभी  लोग इस दिन को भारतीय तरीके से अपनाने को मजबूर हो जाये और प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार चारो ओर प्रेम और शांति कि खुशबू  बिखेरे...

 "तोषी"........(मुस्कान)


Read more...

"क्यों खास है मेरे लिए वेलेनटाइन डे........."

सचमुच बहुत ख़ास है मेरे लिए वेलेंटाइन डे.............लेकिन मेरे लिए यह दिन क्यों खास है.................?
यही तो वो दिन है जब मेरे कैरियर को एक नई दिशा मिली थी........प्रिंट मीडिया से इलेक्ट्रानिक मीडिया कि ओर मेरा पहला कदम..............मेरी पहली रिकॉर्डिंग...........वेलेंटाइन डे के इस ख़ास मौके पर एक स्पेशल प्रोग्राम.....१४ फरवरी २००२....दूरदर्शन केंद्र रायपुर से शुरू यह रिकार्डिंग अशोका टावर ,दिशा आन लाइन, फ़ूड ज़ोन, और  कुछ ग्रीटिंग्स - गिफ्ट कार्नर होते हुए वापस दूरदर्शन केंद्र में ख़त्म हुई. पहली रिकॉर्डिंग और वो भी आउट डोर मुश्किल ज़रूर था...........लेकिन तोषी के लिए मुश्किले ज्यादा मुश्किल नहीं होती...और हमारी टीम ने जो सहयोग दिया उसके कारन ही बिना ऑडिशन दिए मुझे मिला पहला प्रोग्राम  मेरे कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ और मुझे साप्ताहिकी, गीतमाला, विभिन्न त्योहारों के स्पेशल प्रोग्राम ,के साथ शिक्षा , कानून , स्वस्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विषयो के परिचर्चा के संचालन का अवसर मिला . शादी के बाद थोडा ठहराव ज़रूर आया है लेकिन मुझे मालूम है ये ठहराव ज्यादा दिन कायम नहीं रहेगा और एक बार फिर मै अपनी उस मनपसंद  दुनिया में ज़रूर लौटूंगी...क्योंकि मीडिया से जुड़े लोग लाईट, कैमरा, एक्शन ......का नशा बखूबी जानते है कि ये खुमारी इतनी  आसानी से नहीं उतरती....... 
"तोषी"...(मुस्कान)

Read more...

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

बेकाबू होती भीड़ पर किसका काबू...

घटना १ - २ जनवरी रायगढ़ जिले के दानसरा नामक  गाव में सड़क हादसे में ट्रक से एक व्यक्ति की मौत के बाद आक्रोशित भीड़ द्वारा ४ अन्य ट्रक आग के हवाले कर दिया गया.साथ ही २ प्राइवेट कारो को भी नुकसान पहुचाने की कोशिश की गई....


घटना -२-  ३१ जनवरी को जांजगीर- चांपा जिले के चंद्रपुर में सड़क हादसे में एक व्यक्ति की मौत के बाद आक्रोशित भीड़ ने १० वाहन  फूंक दिए साथ ही मौके का फायदा उठाते हुए देशी विदेशी शराब की दुकानों में लूट पाट कर करीब ३ लाख रूपये उड़ा लिए...

घटना-३- ३१ जनवरी दुर्ग जिले के धमधा में एक ट्रक की चपेट में आने से ५ साल की बच्ची की मौत के बाद आक्रोशित ग्रामीणों ने ट्रक चालक की जमकर पिटाई कर ट्रक में आग लगा दी...


घटना-४- २ फरवरी राउरकेला में एक स्कूल बस से एक छात्र की मौत के बाद आक्रोशित भीड़ ने बस में आग लगा दी...

                                          उपरोक्त सभी घटनाये दुखद ज़रूर है पर  कंही न कंही सभी घटनाओं में लापरवाही पूर्वक वाहन चलाने की धृष्टता  भी नज़र  आ रही है . लेकिन ये सभी घटनाये उस  बेकाबू होती भीड़ की ओर इशारा कर रही है जिस पर उस अप्रिय घटना के बाद काबू नहीं पाया जा सका और एक अप्रिय घटना के घटित होने के फलस्वरूप कई अप्रिय घटनाओ का जन्म हुआ . ऐसी घटनाये आये दिन आपको न्यूज़ पेपर में पढने को मिल जायेंगे जिसमे किसी घटनाक्रम से गुस्साए लोंगो द्वारा क़ानून तोडा गया हो . पर इस बेकाबू होती भीड़ पर बिना किसी अप्रिय घटना को अंजाम दिए काबू  पाने की न्यूज़ आपको किसी न्यूज़ पेपर में नहीं मिलेगी कारन उस बेकाबू होती भीड़ पर किसी का काबू नहीं होता ......

                      अब सवाल यह उठता है कि इस भीड़ में इतना आक्रोश ,इतनी नफरत , इतनी हिंसा आखिर आई कहा से....

                                                 जब हम कोई अखबार पढ़ रहे होते है तो देश कि गौरव गाथा कहने वाले, जनरल नालेज  वाले,वैजानिक तर्कों आदि की  खबरे  कम और नकारात्मक सोच देने वाली खबरे ज्यादा होंगी. इसी तरह इलेक्ट्रानिक मीडिया, जो नकारात्मक, हिंसक और घटिया बातो को लगातार रात- दिन अपने चैनल पर दर्शको को ऐसा मसालेदार तड़का लगाकर परोसता है जिसमे आम  दर्शक सिर्फ ये आस लेकर बैठा रहता है कि अब आगे क्या होगा..लेकिन समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग जो इन समाचार चैनलों को जानकारी का सबसे सही जरिया मानकर अपना अधिकांश वक्त लगाते है  उस वर्ग पर ऐसे घातक न्यूज़ का क्या असर पड़ता होगा वो इस बात से अनजान रहते है या अनजान बने रहने का झूठा दिखावा करते है. टी.आर.पी. की अंधी दौड़ में शामिल और गलाकाट आपसी मुकाबले में  लगे इन न्यूज़ चैनलों का नैतिक मूल्यों से आखिर क्या सरोकार...? और ऐसे माहौल में दर्शको या पाठको की सोच को सरोकारविहीन , गैर जिम्मेदार और लापरवाह होने से कैसे बचाया जा सकता है...?

          हालाँकि इस बेकाबू होती भीड़ का पूरा जिम्मेदार  सिर्फ मीडिया को ठहराना गलत होगा लेकिन फिर भी मेरा मानना यही है कि जब रात-दिन मीडिया दुनिया भर कि नफरत और हिंसा दिखने पर आमादा हो तो इंसानी सोच पर उसका असर पड़ना तो तय है...


          

Read more...

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP