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रविवार, 7 मार्च 2010

८ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष....

औरत.......... तुम  फिर से बनोगी दासी ............... अरविन्द झा जी का ये लेख पढ़ा तो कई विचार मन में आने लगे उसके कुछ अंश यंहा प्रस्तुत है... लेकिन सबसे पहले....

एक कटु सत्य से नारी को आगाह करने के लिए अरविन्द झा जी को धन्यवाद्...
लेकिन उनके लेख पर क्षमा जी कि दी इस टिप्पणी से भी मै पूरी तरह सहमत हू ............

 Naaree to aajbhi daasee hee hai! Aisi aurtonki sankhya aajbhi adhik hai,jo pashvi atyacharon se dam tod deti hain...
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एक ओर जंहा देश की बागडोर प्रतिभा पाटिल जैसी सशक्त महिला के हाथो  में है  वंही दहेज़ प्रताड़ना , टोनही प्रताड़ना , भ्रूण हत्या , यौन शोषण जैसी न जाने कितनी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष यातनाओ से उसे रोज गुजरना होता है , यह सच है कि  झूठे दहेज और प्रताडना की शिकायतें दर्ज करवाई जाती है और कई मामले में यह सच भी होती है... लेकिन किसी ने यह जानने कि कोशिश कि , कि उक्त महिला ने झूटी रिपोर्ट दर्ज क्यों करवाई...निश्चित रूप से कई प्रताड़नाये  ऐसी होती है जिसे कोई भी महिला चाहते हुए भी सबके सामने कभी नहीं लाना चाहती ... जिसका कारन सिर्फ  यही हो सकता  है कि आज  महिला अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है...

देश में लगातार प्रति पुरुष महिलाओ का प्रतिशत कम होता जा रहा है लेकिन इसकी जिम्मेदार महिलाये कैसे है ये मै नहीं जानती हां इतना ज़रूर जानती हू कि "घरो में भी रैगिंग होती है " जिसका परिणाम होता है एक बहु कि दयनीय स्थिति . और भ्रूण हत्या जैसा कदम कोई महिला "एक भावी महिला " को शायद उस दयनीय स्थिति से बचाने के लिए ही कर सकती  है और एक औरत जो स्वयं एक माँ है , बेटी है ,बहन है , पत्नी है उसके लिए भ्रूण हत्या जैसा क्रूर कदम उठाने का कारन ज़रूर कोई बहुत बड़ी मजबूरी होती है या उसका पत्थर दिल जिसे पत्थर बनाने में समाज के एक  वर्ग का बहुत बड़ा हाथ है ,  और निश्चित रूप से भ्रूण  हत्या का जिम्मेदार वो महिला नहीं बल्कि वो  वर्ग  है जो कि महिलाओ कि दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार  है . आज भी  वारिस  चाहत में कई पुरुष महिलाओ को केवल एक फैक्ट्री से ज्यादा कुछ नहीं समझते ..............

रही बात वेश्यावृत्ति के महिलाओ के बढ़ावा देने के बारे में तो किसी भी महिला के लिए उसकी इज्जत क्या होती है ये एक महिला से ज्यादा कोई नहीं समझ नहीं सकता क्योकि आज हर रिश्ता कटघरे में खड़ा है जंहा हर रिश्ते में एक औरत कि इज्जत तार - तार हुई है...और कोई भी महिला अपनी ख़ुशी से कभी भी इस धंधे में नहीं आती यह बात सव्रेक्षण में सामने आ चुकी है .फिर  एक बार अपनी ईज्जत खोई महिला का हाथ जब उसके अपने और  इस समाज के बुध्हिजिवी वर्ग का कोई भी पुरुष नहीं थामना चाहता ऐसी स्थिति में .....जब "पेट कि खातिर " एक पुरुष का इमान डगमगा जाता है तो समाज अकेली औरत को दोष क्यों देती है......और फिर विक्षिप्त  महिलाओ के बारे में आप क्या राय देना चाहेंगे जो सड़क के किनारे अपने बच्चे  के साथ लावारिस सी रहती है क्या उस विक्षिप्त के माँ बनाने  का कारन भी वो स्वयं है ........?

यह सच है कि कुछ महिलाओ ने उनको मिले अधिकारों का दुरूपयोग किया है लेकिन मेरा मानना है कि भगवान ने इस दुनिया में हमेशा बुरे लोगो से ज्यादा अच्छे लोंगो का प्रतिशत रखा है और उन महिलाओ को भी ज़रूर सबक मिलेगा जिन्होंने उन्हें मिले अधिकारों को हथियार कि तरह प्रयोग किया है ,लेकिन इन अधिकारों की, पीड़ित महिलाओ को बहुत ज़रूरत है क्योंकि इनके आभाव में वो दासी से भी नारकीय जीवन बिताने में मजबूर है .आज इतने अधिकारों के होने के बाद भी महिलाओ कि स्थिति समाज में अच्छी नहीं मानी जा सकती हां कुछ जागरूक लोग ज़रूर सर्वसुविधायुक्त  एसी कमरे में बैठकर महिलाओ कि अच्छी स्थिति का वर्णन करे पर में उन्हें सलाह देना चाहूंगी कि महिलाओ वास्तविक स्थिति जानने के लिए वो ऐसी ज़गहो का दौरा करे जंहा महिलाये अप्रत्यक्ष रूप से अभी भी कैद है और दासी का जीवन जीने मजबूर है...और ये बात मै अपने प्रत्यक्ष अनुभव से लिख रही हू...................................

आज पुरुष वर्ग और नारी वर्ग को एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप न करके दोनों को साथ मिलकर नारी उत्थान कि ओर कार्य करना होगा.पहले मेरा मानना था कि समाज में नारी कि स्थिति को मजबूत बनाने के लिए नारी को ही आगे आना होगा लेकिन अब मेरा ये मानना है कि समाज में नारी कि स्थिति सुधारने के लिए जितना महिलाओ को जागरूक होना ज़रूरी है उससे कही ज्यादा पुरुषो कि जागरूकता ज़रूरी है ..........

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