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बुधवार, 19 जनवरी 2022

मुझे गर्व है, स्त्री हूँ मैं,

 *मुझे गर्व है, स्त्री हूँ मैं,*




मुझे गर्व है, स्त्री हूँ मैं,


क्योंकि, इस सृष्टि की जननी हूँ मैं,



अपनी कोख़ से जन्में सृजन की सृजनकर्ता हूँ मैं,


समस्त सृष्टि की पालनहार हूँ मैं,



एक माँ के रूप में ममतामयी बनकर,


बच्चों के हर दुख की बलैया लेती,



बेटी के रूप में स्नेहमयी बनकर,


खुद की मुस्कान का कारण बनती,



बहन के रूप में सखा बनकर,


हर मुश्किल घड़ी से बचाती,



तो पत्नी के रूप में हमराही बनकर चलती


सारे सुखदुख की बराबर भागी बनती,



लोपामुद्रा, घोषा, गार्गी,अपाला, मैत्रेयी के रूप में,


प्राचीन भारत को समृद्ध करती,



सावित्रीबाई,सरोजनी,कल्पना, इंदिरा,किरण के रूप में,


नव भारत का मान बढ़ाती,



पल पल संसार को संवारती स्त्री हूँ मैं,


मुझे गर्व है स्त्री हूँ मैं,




✍🏻तोषी गुप्ता✍️


18-02-21

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नारी सशक्तिकरण और सक्षमता के आयाम

 *नारी सशक्तिकरण और सक्षमता के आयाम*



सहती है, डरती है ,सिसकती है नारी,


जब प्रताड़ित करती उसे दुनिया सारी,


फिर पहचान कर स्वयं की शक्ति,


नई ऊर्जा उसमें संचारित होती,


कुचलकर हर दमन का सर,


तब एक नई कली प्रस्फुटित होती,


खुले आसमाँ में खुद अपनी तकदीर लिखती,


नई स्फूर्ति, नई हिम्मत से एक नया इतिहास गढ़ती,




सच ही है, स्त्री स्वयं में इतनी सशक्त हैं कि वह सृष्टि के समस्त सकारात्मक पहलुओं का विकास कर सकती है, वहीं सृष्टि में व्याप्त समस्त नकारात्मकता का समूल नाश कर सकती है। ज़रूरत है तो स्त्री को स्वयं को पहचानने की। उसे स्वयं में प्रवाहित होती ऊर्जा को पहचानने की और समय आने पर उसका उचित प्रयोग करने की  नितांत आवश्यकता है। और ये हम नारियों की स्वयं की जिम्मेदारी है कि हम अपनी शक्ति को , अपनी ऊर्जा को, अपनी सक्षमता को अक्षुण्ण रखें और उसे समृद्ध करें। और ये संपूर्ण बातें तभी संभव है जब हम अपनी सोच में स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को शामिल करें , उसे स्वीकार करें और उसे अनुभव करें, क्योंकि हर अच्छे कार्य की शुरुआत सोच से होती है, और अब इन सबको अपनी सामान्य सोच में शामिल करने का वक्त आ गया है। आज के वक्त की मांग भी यही है, कि यत्र, तत्र, सर्वत्र, स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को प्रोत्साहित किया जा रहा है।




प्रकृति ने जब स्त्री और पुरुष की रचना की तब दोनों को समान बनाया, लेकिन कोमलांगी होने के कारण सदैव स्त्री कमतर आंकी जाती रही, और उस सोच का असर यह हुआ कि कदम कदम पर स्त्री को पुरुषोचित सोच का शिकार होना पड़ा। इतिहास में वैदिक काल को स्त्रियों का स्वर्णयुग माना जाता है जहाँ स्त्रियां पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर, शिक्षा, राजधर्म , वैदिक कार्य आदि सभी में पुरुषों की समान भागी हुआ करती थीं। लोपामुद्रा, घोषा, गार्गी, मैत्रेयी, अपाला ऐसे ही न जाने कितनी विदुषियों ने भारतीय संस्कृति में अपनी अक्षुण्ण छाप छोड़ी है, लेकिन समय बितने के साथ और भारतीय संस्कृति में विदेशी संस्कृतियों के आगमन के साथ कि स्त्रियों की स्थिति भारतीय समाज में बदलने लगी। जहां स्त्रियों को अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए घर में कैद होना पड़ा और वहीं से स्त्रियों की दयनीय स्थिति का प्रारंभ हुआ। लेकिन समय बदलने के साथ भारतीय नारियों की स्थिति में भी परिवर्तन शुरू हुआ। रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, रानी अहिल्याबाई होल्कर, जीजा बाई, रानी कर्णावती, रानी पद्मावती, रानी रुद्रम्मा देवी, रानी अवंति बाई आदि जैसी भारतीय वीरांगनाओं ने भारत के इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय संस्कृति की सदैव रक्षक रहीं। वहीं सावित्रीबाई फुले, पंडित रमाबाई, बहिन सुब्बालक्ष्मी, गंगाबाई, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजनी नायडू  आदि जैसी महिलाओं ने आधुनिक भारत में स्त्रियों को उनके यथोचित अधिकारों को दिलाने के लिए अनेक समाज सुधारक कार्य करके समाज में स्त्रियों की स्थिति सुधारने सकारात्मक कदम उठाए जिसका असर यह हुआ कि विश्वपटल में स्त्री क्रांति विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ और जगह जगह स्त्री सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने लगे। वर्तमान में भारतीय महिलाएं सभी क्षेत्रों में पूरी दुनिया में परचम लहरा रही हैं , कल्पना चावला, चंद कोचर, अमृता प्रीतम, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल, किरणबेदी, अरुंधति रॉय, साइना नेहवाल, नैना लाल किदवई, ऐश्वर्या रॉय जैसी महिलाओं ने स्वयं को विश्वपटल पर साबित कर अनेकानेक महिलाओं की प्रेरणा बनीं।


 


सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहराने के बाद भी स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता की राह में अभी ढेरों समस्याएं बनी हुई हैं। अपने आप को समाज में साबित करने और अपनी जगह बनाने में उसे आज भी कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। ऐसी ही कुछ समस्याओं और उनके समाधान के बारे में हम आज प्रकाश डालेंगे।



उच्चशिक्षा की प्राप्ति :- सामान्य स्तर पर नारी शिक्षा पर क्रियान्वित कई योजनाओं के चलते अब वर्तमान में लोग नारी शिक्षा के प्रति तो जागरूक हो गए हैं लेकिन अभी इस जागरूकता का असर सिर्फ सामान्य शिक्षा तक ही है। उच्चशिक्षा के लिए स्त्रीयों की राहें अभी भी मुश्किल ही हैं। आज भी उच्चशिक्षा के लिए घर से दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करना कई स्त्रियों के लिए मुश्किल ही है।



समाधान :- समाज में जड़ों तक जाकर जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। जैसे कि नारी शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किया गया वैसे ही अब नारी उच्च शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। लोगों को अब यह समझाए जाने की आवश्यकता है वर्तमान महंगाई के दौर में जहां एक व्यक्ति की आय से घर चलाने में परेशानी हो रही है ,भविष्य में नितांत आवश्यक है, कि घर में एक से अधिक आय के स्त्रोत हों। और यदि घर की स्त्री उच्चशिक्षित हो तो वह घर में आय के स्त्रोत का भी जरिया बन सकती है। स्वयं स्त्री को यह समझने की ज़रूरत है कि सिर्फ साक्षर होना या सामान्य शिक्षा ग्रहण करना बस आज के परिवेश में आवश्यक नहीं बल्कि उच्चशिक्षा प्राप्त कर अब उसे आय के स्त्रोत का जरिया भी उसे बनना होगा।



तकनीकी प्रशिक्षण :- तकनीकी प्रशिक्षण वाले क्षेत्रों में आज भी स्त्रियों की कम पहुँच है, क्योंकि सामान्यतः स्त्रियों को तकनीक के मामले में पुरुषों से कमतर आंका जाता है जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं। भारत में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में टेसी थॉमस, ऋतु करिधल, परमजीत खुराना, मुथैया वनिता जैसी महिलाओं ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान दिया है, लेकिन इन सबके बाद भी तकनीकी प्रशिक्षण वाले क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति नगण्य रहती है।



समाधान :-  शालेय स्तर से ही लड़कियों को तकनीकी शिक्षा लड़कों के साथ ही और लड़कों के बराबर ही दी जाए। इससे लड़कियों में बचपन से ही तकनीकी सूझ उन्नत होगी और लड़कों के साथ और लड़कों के बराबर ही तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के कारण लड़कों में भी इस सोच का विकास होगा कि लड़कियां भी तकनीकी प्रशिक्षण में लड़कों से कहीं काम नहीं है। लड़के और लड़कियों की इस उन्नत सोच और सूझ का असर भविष्य में दिखेगा जब लड़कियां तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर वो बड़े पदों पर आसीन होंगीं।


घर के प्रति जिम्मेदारी :- महिलाओं की सक्षमता में बड़ा हाथ परिवार के सहयोग का होता है ऐसे में महिलाओं की जिम्मेदारी घर के प्रति और अधिक बढ़ जाती है और वो बाहर और घर के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए घर के प्रति और भी संवेदनशील हो जाती है। कई बार ये संवेदनशीलता स्त्री सक्षमता की कमज़ोर कड़ी साबित होने लगती है।


कामकाजी महिलाओं को दोहरी जिम्मेवारी का निर्वहन करना होता है। ऐसी स्थिति में कभी बाहर की तो कभी घर की जिम्मेदारियां हावी हो जाती हैं।



समाधान :- यदि स्त्री स्वयं चाहे तो इस मुश्किल राह से वह स्वयं भी बाहर निकल सकती है। स्त्रियों का चीजों और रिश्तों के प्रति संवेदनशील होना उसका स्वभाव है। लेकिन ये स्त्री को स्वयं करना होगा कि किसी भी रिश्ते को वह अपनी कमजोरी ना बनने दें बल्कि उसको अपनी शक्ति बनाए।



सुरक्षा :- वैसे तो आजकल स्त्री सुरक्षा के हर संभव उपाय हर कदम पर किये जा रहे हैं, लेकिन फिर भी महिलाओं को अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहना पड़ता है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार जहाँ देश में 8 करोड़ महिलाएं यौन उत्पीड़न का सामना कर रही हैं। हर 15 मिनट में 1 महिला छेड़छाड़ की शिकार होती है और हर 29 मिनट पर 1 महिला के बलात्कार का मामला होता है। ये तमाम प्रकार की घटनाएं स्त्री सक्षमता को प्रभावित करती है।



समाधान :- स्त्री सुरक्षा के लिए स्वयं स्त्री को सजग तथा सक्षम रहना होगा। एक स्त्री/लड़की को दूसरी स्त्री/लड़की के लिए मजबूत सहारा बन के आगे आना पड़ेगा। अक़्सर ये देखा गया है कि एक स्त्री पर हो रहे गलत हरकत पर दूसरी मौन रहती है जबकि ऐसी स्थिति में दूसरी स्त्री को पहली स्त्री का साथ देकर विरोध की आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। साथ ही लड़कियों/ महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर भी सीखना चाहिए जिससे वक्त आने पर वो स्वयं अपनी रक्षा कर सके।



पुरुषप्रधान क्षेत्र:- आज भी कई क्षेत्रों को समाज में पुरुष प्रधान क्षेत्र माना जाता है, और जहां आज भी स्त्रियों को पहुंचाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, फिर चाहें वो लड़ाकू विमानों की पायलट गुंजन सक्सेना हो या प्रसिद्ध उद्यमी शोभना भरतिया। सभी को अपने क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ऐसे पुरुष प्रधान क्षेत्र में महिलाओं की कम उपस्थिति है।



समाधान :- स्त्रियों को स्वयं कोशिश करनी चाहिए कि वो हर परिस्थिति में हर मुश्किल का सामना कर सके चाहे वो उस समय अकेली लड़की हो या फिर कुछ ही लड़कियां हों। और ये भी , कि लड़कियाँ हर परिस्थिति में हर मुश्किल कार्य कर सकती हैं। सृष्टि ने ऐसा बनाया है कि वह हर संभव कार्य कर सकती है और किसी भी मामले से वह पुरुषों से कमतर नहीं है। तो चाहे कोई कार्य पुरुष प्रधान क्यों न हो , बुद्धि और श्रम दोनों ही मामले में वो उस कार्य को कर सकती है।



राजनीति /प्रशासनिक/निगम क्षेत्र :- पहले स्त्रियां घर के बाहर जाकर साधारण कार्य करती थीं। जिसमें उनको किसी पुरुष के निम्न कर्मचारी के रूप में कार्य करना होता था। लेकिन अब स्त्रियां हर क्षेत्र में उच्च अधिकारी के रूप में भी कार्य कर रहीं है। राजनीति/प्रशासनिक/निगम क्षेत्रों में भी वो अब प्रमुख के रूप में कार्य कर रही हैं, जहां उन्हें यदा कदा पुरुषोचित अहम का शिकार होना पड़ता है। कहीं पुरुषों के मुकाबले कम वेतन तो कहीं यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है।इसलिए अभी भी महिलाओं की भागीदारी जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है।



समाधान:- स्त्रियों को अपने व्यक्तित्व के हर पहलू का निखार करना होगा। साथ ही उन्हें स्त्रियों के अधिकारों एवं कानूनी सुविधा एवं सुरक्षा की भी जानकारी होनी चाहिए, जिससे कि मुश्किल समय में स्त्री स्वयं अपनी रक्षक पहले बन सके।



महिलाओं का पारस्परिक द्वेष :- अक़्सर ये देख गया है कि महिलाएं ही महिलाओं के प्रति दुर्भावना रखती है। एक महिला ही दूसरी महिला की सबसे बड़ी दुश्मन साबित होती हैं और एक दूसरे की राह में रोड़ा अटकाती हैं। चाहे घर के अंदर हो या फिर घर के बाहर , वक औरत ही दूसरी औरत की सबसे बड़ी प्रतिद्वन्दी नज़र आती हैं। स्त्रियों के इन स्त्रियोचित व्यवहार के कारण भी स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री सक्षमता प्रभावित होती है।



समाधान:- स्त्री जागरूकता ही इसका एकमात्र उपाय है। महिलाओं में आपसी दुर्भावना को समाप्त कर या कम करके ही स्त्री सम्पूर्ण विश्व पटल पर शीर्ष में होंगी इस बात को स्त्रियों को स्वयं समझना होगा और उसी रणनीति के आधार पर ही कार्य करना होगा।  



समाज में व्याप्त और भी कारक हैं जो स्त्री सशक्तिकरण और सक्षमता को सीधे प्रभावित करते हैं। लेकिन अब वक्त है इन समस्याओं का समाधान कर स्त्री  स्वयं अपनी सक्षमता को मजबूत करे। भारत में यदि हम स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री सक्षमता की बात करें तो भारत में शासन द्वारा बहुत सारे सशक्तिकरण और सक्षमता की योजनाएँ चलाई जा रही हैं और उसका लाभ भारत की हर स्त्री तक पहुँचाएं जाने का प्रयास शासन कर रही है लेकिन यह तभी संभव है जब स्त्री स्वयं अपनी सशक्तिकरण और सक्षमता की आवश्यकता को पहचाने और इस ओर पहल करे। स्त्रियों  के लिए सारा आसमान खुला हुआ है, ज़रूरत है तो बस उन्हें स्वयं के आत्मविश्वास को पहचान कर आगे बढ़ने की । और जिन स्त्रियों ने ज़िन्दगी में स्वयं एक मुकाम हासिल कर लिया है ये उनका भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे अन्य स्त्रियों की प्रेरणास्त्रोत बनकर उन्हें सशक्त बनने, सक्षम बनने में अपनी महती भूमिका निभाएं । तभी एक सक्षम नारी वर्ग का विकास हो सकेगा। हर स्तर पर नारी को स्वयं की महत्ता स्वीकार करनी होगी और यह मानना होगा कि हम सशक्त हैं, और सक्षम होना हमारी स्वयँ की जिम्मेदारी है।




✍️तोषी गुप्ता✍️


18-02-2021

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हिंदी मेरी पहचान

 हिंदी मेरी पहचान




संस्कृत से जन्मी हिन्दी


हृदय को छू जाती है,


मन में आते भावों को


उचित शब्द दे जाती है,


भाषा की संतुष्टि,


हिन्दी से जो आती है,


पढ़ूँ भी हिन्दी,लिखूँ भी हिन्दी


हर सोच हिन्दी को भाती है,


है हिंदी जब मातृभाषा,


यूँ तो सबको आती है,


फिर क्यों बोलने में कुछ को,


अक़्सर शरम आती है,


मातृभाषा का अपनी सम्मान करो,


ये भाषा भी राष्ट्रभक्ति सिखाती है,


हिन्दी तो है अब राष्ट्रभाषा,


जो भारत की शान बढ़ाती है,


हिन्दी मात्र भाषा नहीं,


ये भावनाओं का उद्गार है,


आने वाली पीढ़ी को,


यह अमूल्य उपहार है,


मेरी संवेदनाओं को शब्द देती,


यह हिन्दी मेरी पहचान है,


अमूल्य विरासत में मिली


यह हिन्दी मेरा अभिमान है,





✍️तोषी गुप्ता✍️


27-08-2021

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अधूरी ख़्वाहिशें

 अधूरी ख्वाहिशें





ये अधूरी ख्वाहिशें,


बहुत तकलीफ़ देती हैं,


ना जीने देतीं हैं,


और ना रातों को सोने देती हैं,


रात में ये अधूरी ख्वाहिशें,


जाग सी जाती हैं,


हर पल इन ख्वाहिशों को पूरा करने,


नये ताने-बाने बुनती,


एक के बाद एक ख्वाहिशों की,


जैसी एक रील चल पड़ती,


जैसे फ़िल्म में एक सीन के बाद,


दूसरे सीन की दूसरी रील चलती,


एक ख्वाहिश को पूरा करने के सपने संजोते ही,


दूसरी ख्वाहिश कसमसाती हुई,


अपना सर उठाती और मन दौड़ चलता,


पुनः दूसरी ख्वाहिश को पूरा करने सपने संजोने


इस तरह जैसे सारी रात गुजर जाती


और सुबह हो जाती,


फिर उन अधूरी ख्वाहिशों के साथ,


दिन में फिर सर उठाती,


 इन ख्वाहिशों की उलझी लताएँ


और मन चल पड़ता इन ख्वाहिशों को पूरा करने,


और जैसे ही एक ख्वाहिश पूरी होती,


दूसरी ख्वाहिश मुस्कुराती हुई नयी खड़ी हो जाती,


और मन फिर भागता,


इस नयी ख्वाहिश को पूरा करने,


इस तरह हर रोज अधूरी ही रह जाती हैं


 कुछ ख़्वाहिशें , अधूरी ख़्वाहिशें बनकर,




✍️तोषी गुप्ता✍️


19-01-2022

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नई जेनरेशन

नई जेनरेशन



शिवानी अपने पति के साथ बैंगलोर में रहती थी। उसे ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी मिली तो अपने मम्मी पापा को सरप्राइज़ देने अपने मायके आ गई। उसने धीरे से घर का मुख्य दरवाज़ा खोला और अंदर आ गई। अंदर का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था चुपके से शिवानी अंदर गई। देखा हॉल में कोई नहीं था लेकिन माँ पापा के कमरे से आ रही आवाज़ों को सुनकर शिवानी वहीं ठिठक गई।



"पूनम, जितना ये घर मेरा है उतना तुम्हारा भी है। तो इस घर के प्रति तुम्हारी भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है।" 



"देखो प्रकाश, मैं पहले भी कह चुकी हूँ, कि घर के सारे खर्चे तुम्हें ही करने होंगे। मैं मानती हूँ कि इस घर के प्रति मेरी भी जिम्मेदारी है और वो मैं अच्छे से निभा रही हूँ, लेकिन मैं अपनी सैलरी ऐसे घर के खर्चों में नहीं लगा सकती" 



"पूनम , तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही। अभी तक तो मैंने कभी तुमसे तुम्हारी सैलरी का एक भी रुपये खर्च करने के लिए नहीं कहा। अब जब मेरा कारोबार कोरोना की वजह से धीमा हो गया है तो घर के लोन की किश्तें चुकाने ही तो बोल रहा हूँ।" प्रकाश ने एक बार फिर पूनम को समझाने की कोशिश की।



"मैंने एक बार कह दिया मैं अपनी सैलरी नहीं दूंगी तो नहीं दूंगी।" कहते हुए पूनम गुस्से से कमरे से बाहर हॉल में आ गई।



हॉल में अचानक शिवानी को देख पूनम हतप्रभ रह गई और थोड़ा झेंपते हुए कहा, "अरे बेटा, तुम कब आई, पता ही नहीं चला।" खुशी से पूनम ने अब शिवानी को गले से लगा लिया।



"बस अभी-अभी पहुंची माँ, और आपकी और पापा की बातें सुनकर यहीं रुक गई।"



"अरे, तू भी क्या लेकर बैठ गई।अभी आई है, जा जाकर फ्रेश हो जा। मैं तेरी पसंद का कुछ बनाकर लाती हूँ।"



तब तक प्रकाश भी हॉल में आ गए थे। शिवानी दौड़कर पापा के गले लग गई। फिर माँ की तरफ मुड़ते हुए कहा, 



"अभी नहीं माँ, पहले मुझे आप लोगों से बात करनी है। माँ , पापा बिल्कुल सही कह रहे हैं। घर के फाइनेंशियल मैटर में भी आपका योगदान होना चाहिए।"



"पर बेटा, घर चलाना घर के पुरुष का काम होता है।"



"माँ आप कब से ये सब मानने लगीं। पापा भी तो घर के छोटे-मोटे काम में आपकी मदद करते हैं न। तो घर चलाने में आप उनकी मदद क्यों नहीं कर सकतीं।"



शिवानी ने आगे कहा,"अब मुझे और विशाल को ही ले लो। हम दोनों ही नौकरीपेशा हैं, और घर के सारे खर्चे आपस में मिलकर करते हैं , वहीं घर के सारे काम भी मिलकर करते हैं। घर फोन, वाई-फाई, टीवी रिचार्ज, गैस रसोई के खर्चे और कार की किश्तें मैं भर देती हूँ, तो फ्रिज़, टीवी की किश्तें और घर के लोन विशाल भर देता है। इस तरह हम दोनों ही घर के खर्चों में बराबर भागीदार रहते हैं। वहीं मेरी शिफ्ट सुबह जल्दी होने के कारण विशाल सुबह मेरी काम में मदद करते हैं। और लंच प्रिपेयर करते हैं। तो ऑफिस से आने के बाद रात का खाना मैं तैयार करती हूँ। इस तरह हम दोनों ही हर काम मिलकर करते हैं। आख़िर घर हम दोनों से है।"



पूनम बहुत शांति से शिवानी को सुन रही थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा,"बहुत बड़ी और समझदार हो गई है मेरी बेटी।" 



"लाओ, कहाँ सिग्नेचर करने हैं। घर का लोन चुका दो और अब से मैं भी घर के खर्चों में तुम्हारा बराबर साथ दूँगी। " मुस्कुराते हुए पूनम ने प्रकाश से कहा।



"इसी बात पर मैं अपनी बेटी के लिए बढ़िया अदरक वाली चाय बनाकर लाता हूँ।"



"नई जेनरेशन कितनी समझदार है आज ये पता चल गया।" कहते हुए पूनम ने शिवानी को गले से लगा लिया। 



शिवानी ने कहा, "ये नई जेनरेशन की नई सोच है माँ"  और तीनों हँस पड़े।




✍️तोषी गुप्ता✍️


19-01-2022

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लुभावने विज्ञापन

 लुभावने विज्ञापन 



आज सुबह त्रिपाठी जी लॉन में अपने पौधों को पानी दे रहे थे कि दरवाजे पर ऑटो आकर रुकी। देखा तो वसुधा मुरझाया से चेहरा लेकर ऑटो से उतर रही थी। किसी अनिष्ट की आशंका से त्रिपाठी जी ने अपनी पत्नी मीरा को आवाज देकर बुलाया तब तक वसुधा अंदर आ चुकी थी। मीरा जी ने वसुधा को गले से लगा लिया तो वसुधा फ़फ़क कर रो पड़ी।मीरा जी ने वसुधा को संभाला और अंदर ले गई। 



कुछ समय पश्चात वसुधा ने सारी बातें अपने माता-पिता को बताई। वसुधा की शादी एक मेट्रीमोनियल साइट के माध्यम से हुई थी। दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन सौरभ की प्रोफाइल देखकर सब बहुत प्रभावित हुए थे। वसुधा भी सौरभ के परिवार वालों को बहुत पसंद आई और जल्दी ही उसकी शादी वसुधा से हो गई। समय बहुत हंसी खुशी व्यतीत हो रहा था और शादी के महज़ कुछ ही महीनों बाद वसुधा इस तरह घर लौट आई। 



आज त्रिपाठी जी बहुत दुखी होकर सोच रहे थे काश उन्होंने सिर्फ लुभावने विज्ञापन पर भरोसा ना करके सौरभ के चरित्र और व्यवहार के बारे में भी थोड़ा पता किया होता तो आज उनकी बेटी वसुधा भी सुखी जीवन व्यतीत कर रही होती।



✍️तोषी गुप्ता✍️

18-01-2022

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दिलीप जी बहुत परेशान रहते थे आज कल। दरअसल उनतीसवें वर्ष में प्रवेश कर गई थी उनकी बेटी बीना। दिलीप जी को बीना की शादी की चिंता सता रही थी। वैसे सर्वगुण सम्पन्न बीना सौम्य और सरल हृदया थी। बैंक की नौकरी भी थी। जो भी बीना से मिलता एक ही बार में उससे प्रभावित हो जाता। लेकिन शादी की बात आते ही लोग मना कर देते। कारण बीना के शरीर के अंदरूनी हिस्से में सफेद दाग़ के कुछ लक्षण थे। हालांकि कपड़े से ढक जाने के कारण बाहर से ना दिखते ना ही बिना बताए किसी को पता चलते। लेकिन बीना ने स्पष्ट तौर से घर में बता रखा था कि वो शादी करेगी तो सच्चाई बता कर करेगी। दिलीप जी और बीना की माँ भी बीना के इस फैसले से संतुष्ट थे। और यही वजह थी कि बीना की शादी कहीं तय नहीं हो पा रही थी।



एक सुबह दिलीप जी मॉर्निंग वॉक में अपने एक पुराने मित्र शर्मा जी से मिले। काफी दिनों बाद मिलने के कारण बातों का दौर चल निकला। और दिलीप जी ने बातों ही बातों में बीना की शादी के बारे में भी उनसे चर्चा की। शर्मा जी के बहुत पूछने पर दिलीप जी ने शादी ना हो पाने का कारण बताया। शर्मा जी अपनी बहन की शादी के दौरान इस पीड़ा से गुजर चुके थे। उन्होंने दिलीप जी को बिना परिवार और समाज की परवाह किये बीना की शादी का विज्ञापन अख़बार में देने की सलाह दी। और दिलीप जी को समझाया भी कि परिवार और समाज की परवाह करने से ज्यादा जरूरी बीना की शादी और सफल शादी शुदा ज़िन्दगी है। 



अब तक कशमकश से गुज़र रहे दिलीप जी को नई राह मिलते नज़र आई और दूसरे ही दिन उन्होंने सच्चाई बताते हुए बीना की शादी का विज्ञापन अख़बार में दे दिया।  कुछ दिनों बाद ही सुभाष का रिश्ता बीना के लिए आया । सुभाष के परिवार वाले भी सुभाष की शादी के लिए इसी समस्या से गुज़र रहे थे। सुभाष और बीना के परिवार वाले मिले। सुभाष भी उच्च शिक्षित और कॉलेज में प्रोफेसर था। सुभाष और बीना भी एक दूसरे से मिलकर खुश थे और दोनों ने विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी थी। 



और वो दिन भी आ गया जब मंडप में बीना को दुल्हन के रूप में देखकर दिलीप जी की आँखें खुशी से नम थी और वो मन ही मन इस बात से संतुष्ट थे कि अच्छा किया जो उन्होंने बीना की शादी का विज्ञापन बिना किसी की परवाह किये अखबार में दे दिया और आज वो अपनी बेटी बीना को दुल्हन के रूप में देख पा रहे हैं। मन ही मन उन्होंने शर्मा जी का भी धन्यवाद किया जो उन्होंने दिलीप जी को नयी राह दिखाई।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


18-01-2022

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शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

हाथी के दाँत

 हाथी के दाँत




एक बड़े सम्मान समारोह में सुधा जी का नाम पुकारा जा रहा था। आज उन्हें सम्मानित किया जा रहा था उत्कृष्ट समाजसेवी के रूप में। बड़ा नाम था समाज में सुधा जी का । आये दिन अख़बार में उनकी तस्वीर छपती कि भूखे ग़रीब को भोजन कराया, ठंड में कम्बल वितरण किया, कभी किसी स्कूल में ड्रेस, स्वेटर और पुस्तक कॉपी बांटे तो कभी नंगे पैर चलने वाले मजदूरों को चप्पल वितरण किया, किसी अस्पताल जाकर बीमारों के बीच फल बांटे, किसी अनाथालय में दान किया तो कभी किसी वृद्धाश्रम में दान किया। सुधा जी के पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में थे और आये दिन शहर के बाहर रहते। बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे और अपनी दुनिया में व्यस्त थे। घर में बुजुर्ग सास- ससुर और सेवा के लिए आशा दीदी साथ रहती। सम्मान समारोह में मिले बड़े से सम्मान पत्रक और शॉल और ढेरों उपहार के साथ सुधा जी ने घर में प्रवेश किया। आशा दीदी भागती हुई सुधा जी के पास आई और कुछ कहना चाहा, "दीदी , वो गाँव से बेटी का फ़ोन आया है, बारहवीं सत्तर प्रतिशत से पास हुई है, अब आगे की पढ़ाई के लिए शहर आना चाहती है,आप कुछ मदद कर दें तो,,,  सुधा जी ने उसे टोकते हुए कहा,




 "अरी आशा, अभी तो आई हूँ, ज़रा साँस तो लेने दे, फिर कर लेना अपनी बात। और सुन लड़कियों को ज्यादा पढ़ाते नहीं, अब तो उसके हाथ पीले करने की सोच और उसे घर के काम सीखा, अच्छा एक काम कर यहीं बुला ले, मैं उसे अच्छे से घर के सारे काम सीखा दूंगी" कहते हुए सुधा जी ने कुछ सोचते हुए मुस्कुरा दिया।




"नहीं दीदी, बिटिया तो.... आशा कुछ कहती उससे पहले ही सुधा ने उसे झिडकते हुए कहा,जाओ अभी मेरे लिए बढ़िया अदरक की चाय लेकर आ , कहते हुए सुधा जी ने सारा सामान आशा को दिया और वहीं सोफे पर बैठ गईं।




 बहु को आया जानकर ससुर बसंत अपनी लाठी का सहारा लेते धीरे धीरे उनके पास आये और धीरे से बोले, 




"बेटा सुधा, मोतियाबिंद के कारण सब कुछ धुंधला दिख रहा है, और तकलीफ भी बहुत हो रही है, अगर मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो जाता तो थोड़ा आराम मिलता।" 




"क्या पिताजी, थोड़ी तकलीफ हुई नहीं कि आपको डॉक्टर के पास जाना है, अरे सयाने शरीर में तकलीफ तो होगी न , देखिये, अभी कुछ दिन मैं व्यस्त हूँ, अभी ठंड का समय है, मुझे काफी जगह कम्बल और स्वेटर वितरण के लिए भी जाना है, और कुछ सम्मान समारोह भी है। और इस महीने आपकी और माँ की दवाइयों पर भी काफी खर्च हुआ है। अब अगले महीने सोचेंगे।




बसंत के पास बोलने को कुछ नहीं था, वो मायूस होकर हाथ में पत्नी रमा की खाँसी की दवाई की खाली बोतल छिपाते वापस अपने कमरे की ओर जाने लगे। रमा ने भी कमरे से उन्हें चुप रहने का इशारा जो किया था। 




इधर आशा दीदी चाय बनाते अपनी बेटी के भविष्य के लिए चिंतित थी। उधर बसंत और रमा अपने कमरे में अपनी तकलीफ़ छिपाने की नाक़ाम कोशिश करते और सुधा जी हॉल में सोफे पर बैठी कभी अपने सम्मान पत्रक को देख खुश होती तो कभी मोबाइल पर सम्मान समारोह की तस्वीरें देख दम्भ से भर जाती।




तोषी गुप्ता


13-01-2022

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गुरुवार, 13 जनवरी 2022

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

 कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन




कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,


जब सखियों का साथ था,


उनके साथ हर लम्हा जानदार था,


वो घण्टों साथ मे गप्पें लड़ाना,


रूठना और मनाना साथ था,


बागों में तितलियों संग आंख मिचौली खेलते,


और फूलों की खुशबू का खुमार था,


वो बेफ़िक्र सी हंसी थी,


वो बेबाक़ अंदाज़े बयाँ था,


वो बारिश की बूंदों में भीगना,


वो मंद पवन की बयार में झूमना,


हवाओं संग उलझते लटों संग खेलना,


वो दुपट्टा लहरा के ख़ुद उसमें उलझ जाना,


रात में टिमटिमाते तारों को निहारना,


दूधिया रोशनी बिखेरते चाँद संग ढेरों बातें करना,


कभी दिए उजली लौ संग खेलना,


कभी आईने में खुद को देख शरमा जाना, 


औंधे मुँह बिस्तर पर लेटे,


अपनी डायरी के पन्ने भरना,


वो सबसे छिपकर अपने सपनों की दुनिया,


कागज़ पर उकेरना,


बहुत याद आते हैं वो दिन,


और हर पल ये ख़्वाहिश होती,


कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,



तोषी गुप्ता

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कलम

कलम




जब जब कलम चलती है,


मन के भावों को,


कागज़ पर उतार देती है,


अनकहे उद्गारों को,


शब्दों से संवार देती है,


सच का साथ देती ये कलम,


असत्य की कमर तोड़ देती है,


आतताइयों का मुँह बंद कर,


सरल हृदय की ज़ुबाँ को आवाज़ देती है,


कम ना आँकना, कलम की इस ताक़त को,


ये वो धार है जो बिना वार किए,


रक्त की नदियाँ बहा देती है,


ये दो धारी तलवार है,


चाहे तो रंक को राजा,


और राजा को रंक बना देती है, 


माँ सरस्वती का वरदान है ये कलम,


चाहे तो सफलता के शिखर पर पहुँचा,


व्यक्ति का मान बढ़ा देती है,




तोषी गुप्ता

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भूखा गिद्ध

 भूखा गिद्ध 


कोरोना की भयावह स्थिति की रिपोर्टिंग करनी थी। जिसके लिए मैं एक अस्पताल जा पहुंचा। अस्पताल में जगह नहीं थी, लोगों को बेड नहीं मिल रहे थे, ऑक्सीज़न नहीं मिल रहा था, दवाइयाँ और इंजेक्शन नहीं मिल रहे थे। लोग अस्पताल के बाहर ही बरामदों में , कारों, ऑटो और रिक्शे में अपने रिश्तेदारों के एक- एक सांस के लिए जद्दोजहद करते दिख रहे थे। पास ही एक रिक्शेवाला खड़ा था जिसने अपने रिक्शे में एक तख़्ती लगा रखी थी, "कम कीमत पर मुक्तिधाम ले जाने की व्यवस्था" । साथ में उसकी बीवी जिसकी गोद में एक छोटा बच्चा भूख से बिलखते हुए अपने हाथ के अंगूठे को चूस रहा था, और एक छोटी बच्ची जिसकी आंखों के आँसू अब सूख चुके थे जो कातर नज़रों से अपनी माँ को निहार रही थी। बरामदे में एक -एक सांस के लिए लड़ते एक व्यक्ति के पास ही खड़े थे तीनों। अभी-अभी डॉक्टर ने उसकी नहीं बचने की संभावना व्यक्त की थी। अचानक ही मुझे एक फोटोग्राफर की चर्चित फोटो की याद या गई जिसमें एक भूखा गिद्ध , भूख से बदहाल एक छोटे से बच्चे की मौत का इन्तज़ार कर रहा था, ताकि उस बच्चे की मौत के बाद उसका भक्षण कर अपनी भूख शांत कर सके। उस फोटो की जीवंतता आज मुझे उस अस्पताल के बरामदे में नज़र आ रही थी।


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रेंगता कीड़ा

 रेंगता कीड़ा


अनु महसूस कर रही थी, अपने शरीर पर  किसी की बदनीयत छुवन को, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर पर कोई गंदा कीड़ा रेंग रहा हो, बचपन से ना जाने कितनी ही बार वो अपने शरीर पर इन रेंगते कीड़ों को महसूस कर चुकी थी। बेशर्मों की तरह उनके मुस्कुराते चेहरे ऐसे लगते जैसे गाय के भेष में कोई भेड़िया हो। अचानक ही बस ड्राइवर ने ब्रेक लगाई और अनु बिजली की फुर्ती से उस रेंगते कीड़े पर झपट पड़ी, उसी तेजी से अनु के पीछे से आवाज़ आई , आssss अनु की पिछली सीट पर बैठा वो शख़्स अपनी टूटी उंगली पकड़ कर कराह रहा था, और आस-पास बैठे लोग उससे सहानुभूति दिखाते ड्राइवर पर चिल्ला उठे इतनी तेजी से ब्रेक लगाने के लिए। इधर अनु मुस्कुराते हुए बाहर के खूबसूरत नज़ारे का लुत्फ़ उठा रही थी, निश्चिंतता से,,, क्योंकि अब उसके शरीर पर कोई कीड़ा नहीं रेंग रहा था।


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कल किसने देखा है

 कल किसने देखा है



हर एक पल की सांसों के साथ,


ज़िन्दगी गुजरती ही जा रही है,


जी लो इन पलों को जी भरकर,


ज़िन्दगी यूँ ही पिघलती जा रही है,




हंसी यादों के तिनके मुट्ठी में बंद करके,


सहेज कर इन्हें रख लेना ,


रहो जब भी तन्हा, खोल लेना इस मुट्ठी को, 


एक बार फिर दोबारा इन लम्हों को जी लेना ,




बंद कर लो गठरी बुरे अहसासों की,


कि बीते हुए वो लम्हें हर पल तुम्हें सतायेंगे


पड़ने न दो छाँव आज पर उस दर्द की,


कि नयी दास्ताँ से नये लम्हें हर नयी सुबह सजायेंगे,





क्यों करें कल की चिंता,


कि कल किसने देखा है,


जी लें जी भरकर आज में,


कि आज तो सबको जीना है,





सोचकर हर पल को आख़िरी,


जी लें कुछ इस तरह ज़िन्दगी,


हर ख्वाहिशें अपनी पूरी कर लें,


हर पल को मान लें पूरी ज़िन्दगी,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


12 जनवरी 2022

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