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शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

हाथी के दाँत

 हाथी के दाँत




एक बड़े सम्मान समारोह में सुधा जी का नाम पुकारा जा रहा था। आज उन्हें सम्मानित किया जा रहा था उत्कृष्ट समाजसेवी के रूप में। बड़ा नाम था समाज में सुधा जी का । आये दिन अख़बार में उनकी तस्वीर छपती कि भूखे ग़रीब को भोजन कराया, ठंड में कम्बल वितरण किया, कभी किसी स्कूल में ड्रेस, स्वेटर और पुस्तक कॉपी बांटे तो कभी नंगे पैर चलने वाले मजदूरों को चप्पल वितरण किया, किसी अस्पताल जाकर बीमारों के बीच फल बांटे, किसी अनाथालय में दान किया तो कभी किसी वृद्धाश्रम में दान किया। सुधा जी के पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में थे और आये दिन शहर के बाहर रहते। बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे और अपनी दुनिया में व्यस्त थे। घर में बुजुर्ग सास- ससुर और सेवा के लिए आशा दीदी साथ रहती। सम्मान समारोह में मिले बड़े से सम्मान पत्रक और शॉल और ढेरों उपहार के साथ सुधा जी ने घर में प्रवेश किया। आशा दीदी भागती हुई सुधा जी के पास आई और कुछ कहना चाहा, "दीदी , वो गाँव से बेटी का फ़ोन आया है, बारहवीं सत्तर प्रतिशत से पास हुई है, अब आगे की पढ़ाई के लिए शहर आना चाहती है,आप कुछ मदद कर दें तो,,,  सुधा जी ने उसे टोकते हुए कहा,




 "अरी आशा, अभी तो आई हूँ, ज़रा साँस तो लेने दे, फिर कर लेना अपनी बात। और सुन लड़कियों को ज्यादा पढ़ाते नहीं, अब तो उसके हाथ पीले करने की सोच और उसे घर के काम सीखा, अच्छा एक काम कर यहीं बुला ले, मैं उसे अच्छे से घर के सारे काम सीखा दूंगी" कहते हुए सुधा जी ने कुछ सोचते हुए मुस्कुरा दिया।




"नहीं दीदी, बिटिया तो.... आशा कुछ कहती उससे पहले ही सुधा ने उसे झिडकते हुए कहा,जाओ अभी मेरे लिए बढ़िया अदरक की चाय लेकर आ , कहते हुए सुधा जी ने सारा सामान आशा को दिया और वहीं सोफे पर बैठ गईं।




 बहु को आया जानकर ससुर बसंत अपनी लाठी का सहारा लेते धीरे धीरे उनके पास आये और धीरे से बोले, 




"बेटा सुधा, मोतियाबिंद के कारण सब कुछ धुंधला दिख रहा है, और तकलीफ भी बहुत हो रही है, अगर मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो जाता तो थोड़ा आराम मिलता।" 




"क्या पिताजी, थोड़ी तकलीफ हुई नहीं कि आपको डॉक्टर के पास जाना है, अरे सयाने शरीर में तकलीफ तो होगी न , देखिये, अभी कुछ दिन मैं व्यस्त हूँ, अभी ठंड का समय है, मुझे काफी जगह कम्बल और स्वेटर वितरण के लिए भी जाना है, और कुछ सम्मान समारोह भी है। और इस महीने आपकी और माँ की दवाइयों पर भी काफी खर्च हुआ है। अब अगले महीने सोचेंगे।




बसंत के पास बोलने को कुछ नहीं था, वो मायूस होकर हाथ में पत्नी रमा की खाँसी की दवाई की खाली बोतल छिपाते वापस अपने कमरे की ओर जाने लगे। रमा ने भी कमरे से उन्हें चुप रहने का इशारा जो किया था। 




इधर आशा दीदी चाय बनाते अपनी बेटी के भविष्य के लिए चिंतित थी। उधर बसंत और रमा अपने कमरे में अपनी तकलीफ़ छिपाने की नाक़ाम कोशिश करते और सुधा जी हॉल में सोफे पर बैठी कभी अपने सम्मान पत्रक को देख खुश होती तो कभी मोबाइल पर सम्मान समारोह की तस्वीरें देख दम्भ से भर जाती।




तोषी गुप्ता


13-01-2022

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी,  3 फ़रवरी 2022 को 4:52 pm बजे  

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