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शुक्रवार, 12 मार्च 2021

"बूढ़े मन का आत्मसमान"

 



"बूढ़े मन का आत्मसमान"



जिम्मेदारियों के बोझ तले जीवन निकल जाना है, 


रिक्शा हो या ज़िन्दगी हो, 


उम्र कितनी भी हो, खींचते चले जाना है,




निभाकर सारे रिश्ते जीवन के, 


एक मर्म समझ में आया,


कोई नहीं किसी का अपना,


अपनी नैया खुद खेते जाना,





उम्र की भी परवाह ना होती,


नई ऊर्जा का होता संचार,


आत्मविश्वास भी जाग जाता,


नहीं जब किसी के आगे हाथ फैलाता,





चेहरे की झुर्रियां बयाँ करती,


जीवन की संघर्ष गाथा,


आत्मसम्मान से जीवन जीने की,


आज भी इस बूढ़े तन ने ठाना,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


12-03-2021

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